जो व्यक्ति एक परिवारवाला होता है, उसके ऊपर अपने परिवार का दायित्व भी होता है. वह यदि गृहस्थ के दायित्व को छोड़ दे, तो उचित बात नहीं होती. घर के प्रमुख व्यक्ति पर अर्थार्जन का भी दायित्व होता है. यदि वह अर्थार्जन नहीं करता है और घर में निठल्ला बैठा रहता है, तो वह व्यक्ति अपने कर्तव्य से च्युत हो जाता है. संसार में कर्तव्य को निभाना बड़ी बात है.
जिसका जो कर्तव्य है, उसके प्रति जागरूक रहना आदमी का सद्गुण होता है. जो अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है, वह दुनिया में कुछ अयोग्य व्यक्ति होता है. साधु का अपना कर्तव्य होता है और गृहस्थ व्यक्ति का अपना कर्तव्य होता है. साधु का कर्तव्य है- अपने साधना करना, लोगों को धर्मोपदेश सुनाना, गोचरी करना, सेवा करना आदि. उसी तरह गृहस्थ का कर्तव्य है- अर्थार्जन करना, घर-परिवार की व्यवस्था को चलाना-संभालना, पुत्र-पुत्रियों की शादी करना, माता-पिता की सेवा करना. हर आदमी को अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए, किंतु कर्तव्य के साथ फलाकांक्षा नहीं होनी चाहिए. गीताकार ने ठीक ही कहा है कि आदमी नियत कर्म करे. उसमें आकांक्षा और आसक्ति का त्याग हाेना चाहिए. वही सात्त्विक त्याग होता है.
– आचार्य महाश्रमण