तकनीक के मौजूदा युग में हमारे सामने की चीजें जिस तेजी से बदल रही हैं, उसका पूर्वानुमान लगाना आसान नहीं है. आज हम जिन चीजों की कल्पना भर कर पाते हैं, उनमें से कई चीजें निकट भविष्य में साकार हो जाती हैं. यह विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में हो रहे नये अनुसंधान की मदद से मुमकिन हो पाता है.
इस समय भी विकसित देशों में ऐसी कई नयी तकनीकों पर काम चल रहा है, जो भविष्य में जीवनशैली में बड़ा बदलाव ला सकती हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं भविष्य की ऐसी ही आठ तकनीकों के बारे में…
लीप मोशन
लीप मोशन एक ऐसी तकनीक है, जो भविष्य में डेस्कटॉप कंप्यूटर चलाने के तरीके को एकदम से बदल देगी. दरअसल, मौजूदा समय में डेस्कटॉप कंप्यूटर चलाने में हमें कीबोर्ड और माउस चलाने के लिए हाथ पर ज्यादा जोर देना पड़ता है, लेकिन लीप मोशन तकनीक के माध्यम से डेस्कटॉप कंप्यूटर को अंगुलियों से ही नियंत्रित किया जा सकेगा और वह भी बिना उसे छूए हुए.
इससे न केवल आप वेब ब्राउजिंग कर पायेंगे, बल्कि इमेज और मैप्स को भी जूम कर पायेंगे. साथ ही डॉक्यूमेंट्स भी साइन कर पायेंगे. अपनी अंगुलियों को घुमाते हुए आप सिंगल यूजर वाले (अकेले खेला जानेवाले) गेम भी खेल पायेंगे. इसकी बड़ी खासियत यह भी बतायी गयी है कि बाजार में आने के बाद आप इसे महज 70 डॉलर में खरीद पायेंगे. उम्मीद की जा रही है कि निर्धारित रकम चुकाते हुए इसे आप प्लेस्टेशन गेम से भी खरीद पायेंगे.
‘लीपमोशन डॉट कॉम’ के मुताबिक, लीप मोशन कंट्रोलर ऐसा टेक्नोलॉजी सेंसेज है, जिसके माध्यम से आप अपने हाथ को सहज रूप से मूव करते हुए कंप्यूटर स्क्रीन के आगे बैठे वर्चुअल रियलिटी का आनंद ले सकते हैं. खासकर थ्रीडी ऑब्जेक्ट्स देखने और आउटर स्पेस के लिए यह बेहद मजेदार तकनीक होगी, जिससे आपको जादुई ताकत मिलने का एहसास हो सकता है. यूएसबी प्लग इन होने पर मैक या पर्सनर कंप्यूटर स्टार्ट होगा और लीप मोशन कंट्रोलर आपके कीबोर्ड और माउस के साथ काम करना शुरू कर देगा.
इनविजिबल बाइक हेलमेट
क्या आप पारंपरिक भारी भरकम हेलमेट सिर पर बांध कर नहीं निकलना चाहते? मौजूदा बाइक हेलमेट से आप बोर हो गये हैं या कुछ अलग तरह का हेलमेट चाहते हैं? तो फिर यह टेक्नोलॉजी आपके लिए ही है. स्वीडन के विशषज्ञों द्वारा बनाये गये इस तकनीक का कॉन्सेप्ट कारों में दुर्घटना के समय बचाव के लिए लगाये गये एयरबैग से लिया गया है.
नायलोन से बना यह अदृश्य हेलमेट शर्ट के कॉलर के चारों तरफ मफलर बांधने की तरह पहना जाता है, जो बाहर से दिखाई नहीं देता. किसी दुर्घटना की स्थिति में यह डिवाइस तत्काल हरकत में आता है और बाहर की ओर खुलते हुए सिर के चारों ओर हेलमेट की तरह घेरा बना लेता है. इस तरह यह डिवाइस बाइक चालक को सिर में चोट लगने से बचा लेता है. ‘एनबीसी न्यूज’ के मुताबिक, स्वीडन की एक यूनिवर्सिटी में इंडस्ट्रियल डिजाइन का अध्ययन कर रहे टेरेसा एल्सटिन और एना हॉप्ट ने पहली बार वर्ष 2005 में इस डिवाइस पर काम शुरू किया.
इन दोनों ने अगले सात वर्षों तक इस डिवाइस को डेवलप करने के साथ इसमें कई सुधार और परीक्षण किये. इसमें इनबिल्ट कंप्यूटर और ऐसे सेंसर लगे हुए हैं, जो बाइक चालक की प्रत्येक गतिविधियों (एक सेकेंड में 200) पर नजर रखते हैं. किसी भी तरह के झटके सहने के मामले में यह डिवाइस पारंपरिक हेलमेट के मुकाबले तीन से चार गुना ज्यादा बेहतर है. इसकी एक बड़ी खासियत यह भी है कि यह इंसान के सिर के साथ गले की भी सुरक्षा करता है.
आइ ट्राइब
आइ ट्राइब डेनमार्क की एक स्टार्टअप कंपनी है, जो आइ ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी से जुड़े उत्पाद तैयार करती है. इन उत्पादों को वह सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को बेचती है, जो इसकी मदद से आइ ट्रैकिंग डिवाइस बनाते हैं.
आइ ट्राइब के सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से यूजर महज आंखों के इशारे से स्मार्टफोन, कंप्यूटर या टैबलेट को निर्देश दे सकता है. इस तकनीक का आधार कॉमन आइ-ट्रैकिंग से लिया गया है और फ्रंट-फेसिंग कैमरा और कुछ गंभीर कंप्यूटर-विजन अल्गोरिथम को मिला कर इसे नया रूप दिया गया है.
‘आइ ट्राइब डॉट कॉम’ के मुताबिक, आइ ट्रैकिंग की प्रक्रिया में फीचर्स को लोकेट करने के लिए सेंसरों का इस्तेमाल किया जाता है और यह अनुमान लगाया जाता है कि यूजर क्या खोज रहा है.
यह तकनीक इंफ्रारेड इल्युमिनेशन पर आधारित है और इसमें सटीक प्वॉइन्ट के निर्धारण के लिए एडवांस मैथेमेटिकल मॉडल्स का इस्तेमाल किया जाता है. विभिन्न प्रकार के माहौल में सटीक और विश्वसनीय रूप से इसे कारगर बनाने के लिए पूरी तरह से ऑटोमेटिक बनाया गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल अनेक एप्लीकेशंस में किया जा सकता है. इसके माध्यम से डिजाइन, लेआउट और एडवरटाइजिंग के प्रदर्शन का विश्लेषण किया जा सकता है. इसके अलावा, वेहिकल सेफटी, मेडिकल डायग्नोसिस और एकेडमिक रिसर्च में भी यह तकनीक कारगर साबित हो सकती है.
ऑकुलस रिफ्ट
मौजूदा दौर में वर्चुअल रियलिटी पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है. वर्चुअल रियलिटी गेमिंग को ऑकुलस रिफ्ट के प्रारूप में पेश किया जा रहा है. थ्रीडी हेडसेट से जुड़ा यह उपकरण मानसिक रूप से यह महसूस करायेगा कि आप वाकई में वीडियो गेम के भीतर हैं.
पामर लकी नामक व्यक्ति ने पहली बार इस कॉन्सेप्ट को विकसित किया. बाद में फेसबुक ने भी इसमें अपना योगदान दिया. रिफ्ट के वर्चुअल वर्ल्ड में दुनिया को आप हाइ-रिजोलुशन डिस्प्ले में देख पायेंगे. मार्केट में कुछ प्रीमियम प्रोडक्ट भी हैं, जो बिलकुल इसी तरह से काम करते हैं, लेकिन रिफ्ट इसे आपको महज 300 डॉलर में मुहैया कराने की कोशिश में जुटा है. परीक्षण के दौरान पामर ने इसमें अनेक विसंगतियां पायी हैं, जिसके निदान में वे जुटे हैं.
इसे नेक्स्ट-जेनरेशनल गेमिंग की शुरुआत समझा जा रहा है. कुछ गेमिंग सीरिज के साथ इसे मुहैया भी कराया गया है. इस दिशा में काम काफी आगे बढ़ा है और कंपनी ने उम्मीद जतायी है कि वर्ष 2016 की पहली तिमाही में इसे बाजार में लॉन्च किया जा सकता है. ऑकुलस की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, कंपनी ने 1,500 से ज्यादा इंडस्ट्री लीडर्स और डेवलपर्स को अपने साथ जोड़ने में कामयाबी हासिल की है. कंपनी को उम्मीद है कि अभी और साझेदार साथ आयेंगे.
फेस क्लोनिंग तकनीक
आज दुनियाभर में मानवीय रोबोट बनाये जा रहे हैं, जो इंसानों की तरह चलते-फिरते और काम करते नजर आते हैं. लेकिन ये रोबोट शक्ल-सूरत में इंसानों की तरह मिलते-जुलते नहीं लगते. इन रोबोट को इंसानों का हमशक्ल दिखने के लिए फेस क्लोनिंग तकनीक विकसित की गयी है.
इसे डिजनी ने विकसित किया है. यह कंपनी इसका इस्तेमाल रोबोटिक्स में करना चाहती है, ताकि इंसान की हूबहू नकल बनायी जा सके. स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में डिजनी रिसर्च टीम ने एक नये रोबोट को बनाते समय इस तकनीक का इजाद किया, जिसे ‘फेस क्लोनिंग’ के नाम से जाना गया. इस तकनीक में थ्रीडी डिजिटल स्कैनिंग और एडवांस्ड सिलिकॉन स्किन का इस्तेमाल किया गया है, जो एनीमेट्रोनिक रोबोट के चेहरे के हावभाव को इस तरह से दर्शाता है, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा वास्तविक दिखे. ज्यूरिख स्थित डिजनी रिसर्च टीम के शोधकर्ता डॉ बर्न्ड बिकेल का कहना है, ‘हमारे मैथॉड की मदद से किसी व्यक्ति का रोबोटिक क्लोन बनाया जा सकता है.
इसमें स्किन को डिजिटल तौर पर डिजाइन किया जाता है और इंजेक्शन मॉल्डिंग व मॉडर्न रैपिड प्रोटोटाइपिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है.’ डिजनी रिसर्च टीम के एक अन्य शोधकर्ता डॉ पीटर कॉफमैन का कहना है, ‘हमारा शोध सिलिकॉन स्किन के सृजन को फोकस करता है. इसके लिए हम स्किन की मोटाई को मापते हैं और वास्तविक इंसान की तरह चेहरा बनाने का प्रयास करते हैं.’
फेस स्कैनर
किसी व्यक्ति के नाम के बजाय आप उसके चेहरे को देख कर पहली नजर में यह समझ जाते हैं कि पहले कभी आप उस व्यक्ति से मिल चुके हैं या नहीं. सामाजिक इंटरेक्शन और आइडेंटिटी निर्धारण में इंसान के चेहरे की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. किसी खास व्यक्ति को खोजने के लिए उसकी तसवीर या वीडियो की जरूरत होती है. फेस स्कैनर टेक्नोलॉजी के माध्यम से आप उपलब्ध वीडियो से भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति के चेहरे को सेलेक्ट करते हुए उसकी पहचान कर सकते हैं.
इस खास डिवाइस को आप अपने चश्मे में भी फिट कर सकते हैं या इस मकसद से इस डिवाइस से युक्त खास चश्मे भी खरीद सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अपराधियों को पकड़ने के लिए यह क्रांतिकारी आइडिया हो सकता है. जांच एजेंसियों के लिए यह तकनीक भविष्य में सक्षम तरीके से कारगर साबित हो सकती है, क्योंकि भीड़ में मौजूद किसी खास इंसान को पहचानने में आसान होगी.
बाजार में आज बहुत से मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम हैं, लेकिन मोजिला ने एक नया मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया है, जिसमें यूजर्स को नियम-कानूनों से ज्यादा आजादी हासिल होगी. यह है फायरफॉक्स ओएस, िजसे गोंक, गेकनो और गैना सॉफ्टवेयर लेयर से बनाया गया है.
इसका साधारण अर्थ यह है कि इसे ओपेन सोर्स बनाया गया है और यह अपने साथ एचटीएमएल5 और सीएसएस3 जैसी वेब टेक्नोलॉजीज कैरी करता है. आनेवाले समय में यह तकनीक स्मार्टफोन बाजार को एकदम से बदल देगा, क्योंकि इससे फोन करना, वेब ब्राउजिंग, गेम खेलना आदि अलग तरीके से मुमकिन होंगे.
फ्यूल सेल वेहिकल्स
फ्यूल सेल वेहिकल्स में हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है. पारंपरिक वाहनों में जहां गैसोलिन या डीजल का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं फ्यूल सेल कारों और ट्रकों में मोटर को चलाने के लिए ऊर्जा पैदा करने हेतु हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है.
चूंकि इसके तहत पूरी ऊर्जा इलेक्ट्रिसिटी के रूप में मुहैया करायी जाती है, इसलिए फ्यूल सेल वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहन के रूप में भी जाना जाता है. लेकिन अन्य इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले इसकी प्रक्रिया कुछ अलग होती है. इसमें हाइड्रोजन गैस को इलेक्ट्रिसिटी में तब्दील किया जाता है. इससे बाइप्रोडक्ट के तौर पर केवल पानी और ताप का निर्माण होता है, यानी फ्यूल सेल वाहन से बहुत कम मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होने के कारण प्रदूषण नहीं के बराबर होता है.
गैसोलिन व डीजल जैसे ऊर्जा के मौजूदा प्रमुख माध्यमों के मुकाबले इससे बहुत कम प्रदूषण होता है. इसका दूसरा बड़ा फायदा यह भी होगा कि इससे ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद मिलेगी. वाहनों में हाइड्रोजन ईंधन भरना उतना ही आसान है, जितना उनमें डीजल या पेट्रोल भरना. दूरी तय करने के मामले में भी यह किसी डीजल या पेट्रोल वाहन से कम नहीं है. फिलहाल अमेरिका के कुछ इलाकों में ही इसकी शुरुआत हुई है और वहां हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशंस बनाये गये हैं.