वाशिंगटन: भारत को छोडकर उभरते बाजारों को लगातार पांचवें साल वृद्धि में नरमी का सामाना करना पडा है और यह दौर पहले के अनुमानों से संभवत: लंबा खिंच रहा है. यह बात विश्वबैंक ने कही है.विश्वबैंक ने अपनी रपट, ‘ उभरते बाजारों में नरमी: कठिन समय या दीर्घकालिक कमजोरी’ में कहा है कि 2010 से उभरते बाजारों की वृद्धि पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नरमी, पूंजी प्रवाह का धीमा पडना और जिंस मूल्य में नरमी और अन्य वाह्य चुनौतियों का प्रभाव पडा है.
इससे उत्पादकता में कमी और राजनीतिक अनिश्चितता बढने से घरेलू समस्याएं और भी बढी हैं. विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री और वरिष्ठ उपाध्यक्ष कौशिक बसु ने कहा ‘‘बरसों तक ईष्याजनक तेज आर्थिक वृद्धि दर्ज करने के बाद उभरते बाजार दबाव में आ गये हैं और इनकी वृद्धि आपस में अलग अलग तरह की हो गयी है.” उन्होंने कहा है कि आर्थिक वृद्धि में गिरावट से इनके यहां निपट गरीबी को दूर करने का लक्ष्य और कठिन हो जाएगा क्योंकि गिरावट गहरे पैठ बनाती जाती है और उन क्षेत्रों में ज्यादा केंद्रित होती जाती है जो संघर्षों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.” रपट में कहा गया कि उभरते बाजार में नरमी इन बाजारों में वृद्धि के सुनहरे दौर के बाद आई है.
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