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मत्रि के साथ रहो, फ्रेंड का त्याग करो

मित्र के साथ रहो, फ्रेंड का त्याग करोभागवत कथा संपन्न. फ्रेंड मिल जाय, तो बच्चों को खराब लगने लगती हैं मां-बाप की बातें : फ्लैगयुवाओं में फ्रेंड का कंसेप्ट बढ़ा, लेकिन मित्र का घटासंवाददाता, पटनाश्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन श्री देवकी नंदन ठाकुर जी महाराज ने युवाओं में बढ़ रही आत्महत्या की घटनाअों पर कहा […]

मित्र के साथ रहो, फ्रेंड का त्याग करोभागवत कथा संपन्न. फ्रेंड मिल जाय, तो बच्चों को खराब लगने लगती हैं मां-बाप की बातें : फ्लैगयुवाओं में फ्रेंड का कंसेप्ट बढ़ा, लेकिन मित्र का घटासंवाददाता, पटनाश्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन श्री देवकी नंदन ठाकुर जी महाराज ने युवाओं में बढ़ रही आत्महत्या की घटनाअों पर कहा कि जब बच्चे को फ्रेंड मिल जाते है, तो उनको अपनी मां-बाप की बातें खराब लगने लगती है. क्योंकि फ्रेंड उसे कहते हैं, जो फ्रॉड व फेक हो. जबकि मित्र उसे कहते है, जो किसी भी परिस्थिति में आपके साथ रहता है. ऐसे में जब फ्रेंड बनेंगे और हम अपने मां-बाप व परिवार से दूर जायेंगे, तो हमारे अंदर हर बुराई आयेगी, जो बाद में अचानक हमें डिप्रेशन में डाल देगा और हम आत्महत्या करेंगे. कथा के माध्यम से युवाओं को संदेश देते हुए ठाकुर जी महाराज ने कहा कि अच्छाई को अपने जीवन में उतारो, मेमोरी में सेव करो. बुराई को डिलीट करो. आज अच्छा होगा, तो कल भी तुम्हारा अच्छा होगा. इसलिए आज में बेहतर कर्म करो, धर्म से जुड़ाव रखो और प्रभु की भजन करो. मित्र के साथ रहो, फ्रेंड का त्याग करो. मित्रता करनी है, तो सुदामा व कृष्ण की तरह करो देवकी नंदन ठाकुर जी ने श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता को समझाते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण उज्जैन नगरी विद्याग्रहण के लिए जा रहे थे, तभी बीच रास्ते में एक बच्चे की रोने की आवाज आयी. श्रीकृष्ण ने अपने सारथी को कहा, देखो कौन रो रहा है. हमें पुकार रहा है. सारथी ने देखा और कहा एक छोटा ब्राह्मण है. श्रीकृष्ण उसके पास पहुंचे और पूछे, कहां कांटा चुभा है, हम निकाल देते है. ब्राह्मण ने कृष्ण के वस्त्र को देख अपने पैर में लगे कांटा को निकलवाने से मना कर दिया. फिर भी कृष्ण ने उस कांटे को निकालने की कोशिश शुरू की, जब हाथ से कांटा नहीं निकला, तो भगवान ने अपनी दांत से उस कांटे को निकाला. अगर मित्र ऐसा हो, तो तुम मानों कि तुम भगवान की शरण में हो. वह ब्राह्मण कोई और नहीं सुदामा थे.अधूरा ज्ञान, पाप के समान होता है श्री ठाकुर ने कहा कि अधूरा ज्ञान पाप के समान है. शायद यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जब 16,108 लड़कियों से शादी की, तो समाज के लोग यह कहते है. कि भगवान ने इतनी शादी की, तो हम क्यों नहीं कर सकते है. श्री ठाकुर जी महाराज कहते है कि यह अधूरा ज्ञान है, जोकि भगवान पर भी आरोप लगाता है. उन्होंने कथा के माध्यम से उस घटना को बताया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया. जब भौमासुर नामक राक्षस लड़कियों को पकड़ कर कारावास में बंद कर देता है और कहता है कि हम सबसे अधिक विवाह करेंगे. जब इसकी जानकारी नारद जी के माध्यम से भगवान को मिली, तो उन्होंने राक्षस को मारा और सभी 16,108 लड़कियों को छुड़ाया और घर जाने को कहा. लेकिन, लड़कियां जाने को तैयार नहीं थी. क्योंकि समाज में अब उसे कोई नहीं अपनाता, तो भगवान ने धर्म की स्थापना के लिए यह किया और सभी को शरण दिया. ताकि वह गलत रास्ते पर नहीं जाये या आत्महत्या नहीं करें. पापी पेट नहीं, इच्छा है सब यही कहते है कि पापी पेट के लिए सब करते है. लेकिन पेट कभी नहीं कहता कि आप रोज महंगे पकवान खाओ. तब ही हमारी भूख खत्म होगी. यह हमारी इच्छा है, जो पापी है और हमें रोज गलत करके या दूसरे का हक मार कर खाने को कहता है. इसलिए जीवन में कभी किसी का हक नहीं खाओ, वरना तुम्हें दरिद्र होने से कोई नहीं बचा सकता है. खाना खाते या बनाते समय कभी जूता-चप्पल नहीं पहनो. क्योंकि ऐसा करना पाप है. हम इसी भोजन के लिए दिन भर भटकते है और हम इसका ही अनादर करते है. भजन करो, भगवान की शरण में रहोठाकुरजी महाराज ने संत कबीर के बारे में बताया कि वह एक बार एक किसान के पास पहुंचे. उससे पूछा, तुम भजन करते हो. किसान ने कहा, समय नहीं मिलता है. बाद में समय मिलेगा, तो भजन करेंगे. ऐसे करते-करते किसान ने कभी भजन नहीं किया है और जब कबीर दोबारा पहुंचे, तो मालूम चला कि किसान तो मर गया. उसके बाद संत कबीर ने आंखें बंद कर उस किसान के बारे में सोचा, तो देखा कि वह अपने ही घर में बैल बन कर जन्म लिया है. बच्चे उसे हल में जाेत रहे है. पूरी जिंदगी वह पिटते रहा और बैल जब मर गया, तो उसका मांस व चमड़ा दोनों बेच दिया गया. चमड़ा बेचने के बाद भी उसे चैन नहीं मिला और वह तबले में पिटने लगा और उसकी धुन पर लोग झूमते रहे. इस कारण से भजन करो, भगवान की शरण में रहो.

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