किसानों के लिए गन्ने की मिठास हो रही है कम -स्थानीय निजी गन्ना मिल मालिक द्वारा मनमाने तरीके से कम कीमत पर करते हैं गन्ने की खरीद — अनुमंडल क्षेत्र में अधिक मात्रा में होती थी गन्ना की खेती — कम कीमत लिये जाने से गन्ना किसान हो रहे है हताश और निराश प्रतिनिधि, उदाकिशुनगंज अनुमंडल के गन्ना उत्पादक किसान निजी ईख मिल मालिकों के शोषण की चक्की में पीसे जाने को मजबूर है. बनमनखी सुगर मिल के बंद हो जाने से स्थानीय निजी गन्ना मिल मालिक द्वारा मनमाने तरीके से कम कीमत पर गन्ना खरीदा करते हैं. कम मूल्य मिलने के कारण ही गन्ना की खेती दिन ब दिन घटती ही जा रही है. बहुतायत मात्रा में की जाती थी खेती. आंकड़ों के मुताबिक 1988-89 में गन्ना की रोपनी 1630.50 और खुंटी 1665.30 हेक्टेयर, 1989-90 में रोपनी 1645.72 और खुंटी 1666.47 हेक्टेयर, 1990-91 में रोपनी 1831.81 और खुंटी 1600.88, 1991-92 में 1929.28 और खुंटी 1656.52 हेक्टेयर खेतों में खेती की जाती थी. लेकिन 1992-93 में गन्ना की रोपनी घटकर मात्र 1022.92 हेक्टेयर तथा खुंटी 1981.50 हेक्टेयर, 1993-94 में घट कर 8964 एकड़ पांच डिसमल जमीन में एवं 1994-95 में 7724 एकड़ 50 डिसमल में गन्ना की खेती गयी. वर्तमान समय में तो खेती घट कर 6213 एकड़ पर सीमित हो गयी है. क्यों कम हुई खेती अनुमंडल में एक भी सरकारी या सहकारी चीनी मिल नहीं है. निजी बड़ा पॉवर क्रेसर की संख्या 17 है और छोटा पॉवर क्रेसर की संख्या 50 है. सरकारी चीनी मिल नहीं रहने के कारण ही निजी मिल मालिक द्वारा किसानों से 125 रूपये से 140 रूपये प्रति क्विंटल गन्ना की खरीद की जा रही है. जबकि सरकारी प्रावधान के अनुसार दो सौ रुपये से 225 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना का मूल्य निर्धारित है. किसानों की लाचारी होती है कम कीमत पर गन्ना बेचने की. यही वजह रहा है कि किसान गन्ना की खेती करने से विमुख हो रहे है. हालांकि जब 1969 ई चीनी मिल बनमनखी की स्थापना की थी तब सबसे अधिक गन्ना की आपूर्ति इसी अनुमंडल से की जाती थी. तब उक्त मिल सहकारी सहयोग समिति द्वारा संचालित था. लेकिन 1977 ई में राज्य सरकार ने उक्त मिल का अधिग्रहण कर राज्य चीनी निगम के हवाले कर दिया जो आधुनिकतम चीनी मिलों में से एक था. आरंभ में प्रतिदिन दस हजार क्विंटल गन्ने की पेराई करने की क्षमता थी. जिससे प्रति दिन एक हजार क्विंटल चीनी तैयार की जाती थी. लेकिन अधिग्रहण के बाद इन चीनी मिल पर ग्रहण लगने लगा और 1996 में चीनी मिल स्थायी तौर पर बंद हो गया. जिससे गन्ना के खेती पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा. अगर सरकारी या सहकारी स्तर पर बड़ा चीनी मिल के स्थापना की जाती है तो गन्ना के खेती में काफी इजाफा हो सकेगा. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है. अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो गन्ना की खेती नाम मात्र का रह जायेगा.– कहते हैं ग्रामीण लक्ष्मीपुर गांव के किसान किशोर यादव ने कहा कि जब उदाकिशुनगंज में चीनी मिल स्थापना की बात चली थी तो किसानों में उम्मीद जगी थी. किसानों को लगा था अब क्षेत्र के किसानों को गन्ना का उचित मूल्य मिलेगा. साथ ही किसानों को हर संभव सुविधा मुहैया की जायेगी. जिससे क्षेत्र के किसान उन्नत तरीके से गन्ना की खेती कर अधिक पैदावार ले सके. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो सका. वहीं पवन यादव ने बताया कि अनुमंडल क्षेत्र में गन्ना की खेती बहुतायत होती है. यहां की भूमि भी गन्ना की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. लेकिन गन्ना उत्पादक किसान उदास और हताश हो चुके है. वहीं अमर यादव का कहना है कि अनुमंडल के किसानों को गन्ना का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसान हताश हो रहे. और क्षेत्र में अब गन्ना की पैदावार भी कम हो चुकी है.
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किसानों के लिए गन्ने की मिठास हो रही है कम
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