रांची: धान खरीद की प्रक्रिया में एक निजी पार्टी को शामिल कर लिया गया है. नेशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेस लि. नाम की यह फर्म भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के लिए धान खरीदेगी. एफसीआइ ने इस कंपनी का चयन द.छोटानागपुर, पलामू व कोल्हान प्रमंडल के कुल 11 जिलों में धान खरीद के लिए किया है. उत्तरी छोटानागपुर व संताल प्रमंडल के शेष 13 जिलों में राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) को लैंपस-पैक्स के जरिये धान खरीदना है.
इधर उक्त कंपनी ने राज्य के चावल मिल मालिकों से कहा है कि वह उसके लिए धान खरीदें. कंपनी उनसे चावल लेकर एफसीआइ को देगी. इधर राज्य के राइस मिलर्स एसोसिएशन इससे सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि जब सारा काम वहीं करेंगे, तो अंतर राशि (धान 1410 रु प्रति क्विंटल व मिलिंग खर्च के बाद चावल 2422 रु प्रति क्विंटल का अंतर मूल्य ) का मुनाफा कंपनी क्यों लेगी. संघ ने एफसीआइ से मांग की है कि सीधे उन्हें ही धान खरीद प्रक्रिया में शामिल कर लिया जाये. इधर सूखाग्रस्त घोषित झारखंड में धान खरीद पर ही सवाल उठने लगे हैं. सरकारी रिपोर्ट में जहां राज्य भर में 37 फीसदी फसल नुकसान की बात कही गयी है, वहीं गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार, फसल नुकसान 50 फीसदी से अधिक है.
जानकारों के अनुसार, सूखाग्रस्त राज्य में किसान हित के नाम पर धान खरीदने में कोई हर्ज नहीं है. पर तथ्य बताते हैं कि इससे अनियमितता व फरजीवाड़े को बढ़ावा मिलेगा. दरअसल अब तक राज्य के किसानों का पंजीकरण भी नहीं हुअा है. इसके तहत किसानों के नाम व पते सहित उनके खेत का रकबा भी पंजीकृत किया जाना है, ताकि किसान के नाम पर दूसरे लोग इस योजना का लाभ न लें. इधर खाद्य आपूर्ति विभाग के सूत्रों के अनुसार, अब तक सिर्फ 20 फीसदी किसानों का ही निबंधन हुआ है. हालांकि जानकार इसे भी कागजी बयान बताते हैं. यानी अधूरी तैयारी के साथ एक दिसंबर से धान खरीद शुरू हो गयी है. दरअसल, राज्य सरकार ने खरीफ 2015-16 में छह लाख टन धान खरीद का लक्ष्य तय किया है, जो वर्ष 2011-12 में हुई बेहतर फसल वर्ष के खरीद लक्ष्य (चार लाख टन) से भी अधिक है. इधर राज्य सूखाग्रस्त है तथा दूसरी अोर किसान पंजीकृत नहीं हुए हैं, तो धान खरीद किनसे व कितनी होगी.
कमेटी का निर्णय पलटा
सरकार ने धान खरीद की प्रक्रिया तय करने तथा इसकी समीक्षा के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी गठित की थी. कमेटी ने तय किया था कि जिन लैंपस-पैक्स पर धान खरीद का करीब 31 करोड़ रुपये बकाया है, उनके मार्फत धान खरीद नहीं होगी. इधर इन सभी लैंपस-पैक्स को भी धान खरीद की प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया है. राइस मिलर्स एसोसिएशन ने इस पर भी आपत्ति जतायी है. उसका कहना है कि जब बकायेदार मिल मालिकों को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है, तो लैंपस-पैक्स को कैसे किया गया. गौरतलब है कि राज्य के कुल 113 में से 73 चावल मिल मालिकों पर गत तीन वर्षों से 71 करोड़ रु बकाया है.
धान खरीद में घोटाले की शिकायत लंबे समय से होती रही है. जब राज्य में धान की पैदावार मारी गयी है, तो इसे बेचेगा कौन? झारखंड के 90 फीसदी से अधिक किसान सीमांत किसान है. लंबा टारगेट (छह लाख टन) होने से इधर-उधर से सस्ता चावल खरीद कर इस योजना में गड़बड़ी हो सकती है. इससे पहले मिल मालिकों पर 71 करोड़ बकाया है, पर सरकार चुप है. अाम आदमी के घर 10 हजार रु के लिए कुर्की हो जाती है. धान खरीद की प्रक्रिया में प्राइवेट पार्टी का भी कोई अौचित्य समझ में नहीं आता.
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एफसीआइ से धान खरीद के लिए चयनीत प्राइवेट पार्टी का हमलोगों ने विरोध किया है. धान खरीद व मीलिंग हम करेंगे, तो मुनाफा कंपनी क्यों लेगी? हम कंपनी तथा बकायेदार लैंपस-पैक्स को धान खरीद में कोई सहयोग नहीं करेंगे. इधर सुखाड़ में धान खरीद के अौचित्य पर हमलोगों ने सवाल उठाया है, पर सरकार ने निर्णय लिया है, तो इसमें हम क्या करें.
सियाराम सिंह, अध्यक्ष राइस मिलर्स एसोसिएशन