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पाठकों को पुस्तकालय तक लाने के लिए कुछ तो करे सरकार

पाठकों को पुस्तकालय तक लाने के लिए कुछ तो करे सरकार पाठकों की राह देख रहीं पुस्तकेंनवगठित सरकार के शिक्षित विधायकों से लोगों की बनी है अपेक्षा रंगरोगन के लिए खर्च हुए, पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए कोई राशि नहीं सभी महत्वपूर्ण व दुर्लभ पुस्तकों को दीमक चाट गयाप्रतिनिधि, सहरसा मुख्यालयजिला मुख्यालय स्थित एकमात्र प्रमंडलीय पुस्तकालय […]

पाठकों को पुस्तकालय तक लाने के लिए कुछ तो करे सरकार पाठकों की राह देख रहीं पुस्तकेंनवगठित सरकार के शिक्षित विधायकों से लोगों की बनी है अपेक्षा रंगरोगन के लिए खर्च हुए, पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए कोई राशि नहीं सभी महत्वपूर्ण व दुर्लभ पुस्तकों को दीमक चाट गयाप्रतिनिधि, सहरसा मुख्यालयजिला मुख्यालय स्थित एकमात्र प्रमंडलीय पुस्तकालय का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है. पिछले दस वर्षों से यहां कोई पाठक नहीं आता. शासन प्रशासन भी इसकी दशा सुधारने के प्रति गंभीर नहीं है. तभी तो पुस्तक व पुस्तकालय कर्मियों के लिए कोई योजना नहीं भेजी जाती है. हां, बाहर से चमक-दमक दिखाने के लिए यदा-कदा पैसे जरूर दिये जाते रहे हैं. लगभग साल भर पूर्व रंग-रोगन व मरम्मती के लिए 4.99 लाख रुपये खर्च किये गये थे. लेकिन पुस्तकों के लिए अठन्नी तक नहीं दी गयी. प्रमंडलीय पुस्तकालय का हाल बदहाल हो गया है. अक्सर बंद रहने वाले इस पुस्तकालय की लगभग सभी पुस्तकों को दीमक ने चाट खाया है. एक भी किताब पन्ना पलटने के लायक नहीं रहा है. हालत यह है कि यहां एक अदद दैनिक अखबार या मासिक पत्रिका तक नहीं मंगायी जाती है. नवगठित सरकार में जिले के सभी नवनिर्वाचित व अति उच्च शिक्षित विधायकों से लोगों ने पुस्तकालय के दिन बहुरने की आस लगायी है. ऐतिहासिक है पुस्तकालयजिला बनने के साथ 1954 में स्थापित केंद्रीय पुस्तकालय की शुरुआत सर्वप्रथम पूरब बाजार स्थित शंकर प्रसाद टेकरीवाल के आवासीय कमरे में हुई. कुछ वर्षों के बाद स्थान बदलते इसे जिला स्कूल में स्थानांतरित किया गया. फिर डीबी रोड स्थित डीबी कॉलोनी मध्य विद्यालय के कमरे में पुस्तकालय को शिफ्ट किया गया. केंद्रीय पुस्तकालय का चौथा स्थानांतरण जिला परिषद का कमरा व बरामदा था. बार-बार जगह बदलने के पीछे एक कारण यह भी रहा था कि पुस्तकालय आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गयी और पाठकों के लिये हर स्थान छोटा पड़ता गया. वर्ष 2000 तक जिला परिषद के कमरे में चलने तक पुस्तकालय के सदस्य पाठकों की संख्या सैकड़ों में थी. वर्ष 2001 में तत्कालीन विधायक शंकर प्रसाद टेकरीवाल के प्रयास से पुस्तकालय के अपने भवन का निर्माण सुपर बाजार में कराया गया. इसका उद्घाटन तत्कालीन सांसद दिनेश चंद्र यादव ने 2001 में किया था. कंप्यूटर हो रहा बेकारपुस्तकालय में दो बड़े-बड़े कमरे है. कमरों में अलमारी व अलमारी में किताबें सजी है. पाठकों के इंतजार में टेबुल व कुर्सियों पर धूल की परत चढ़ गयी है. नये भवन में शिफ्ट होने के साथ ही पुस्तकालय को दो कंप्यूटर व एक जेनेरेटर आवंटित हुआ था. पुस्तकालय कक्ष में रखे एक कंप्यूटर के उपर चढ़ा प्लास्टिक का कवर आज तक नहीं उतारा जा सका है. वहीं दूसरा कंप्यूटर किसी साहब के आवास पर चल रहा है. तो जेनेरेटर भी किसी साहब के दफ्तर में चल रहा है. देख-रेख, रख-रखाव के अभाव में भवन चूने लगे हैं. बिजली वायरिंग उखड़ने लगा है. पुस्तकालय का दूसरा कमरा गोदाम में तब्दील हो चुका है. हालांकि पूर्व के एसडीओ पंकज दीक्षित के प्रयास से नगर परिषद ने स्थानीय शहरी विकास अभिकरण की योजना मद की चार लाख 99 हजार की राशि से जीर्णशीर्ण भवन का रंग रोगन व आंशिक मरम्मती कराया था. दो शौचालयों का निर्माण भी कराया था. लेकिन पाठकों को बुलाने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सका है. विशेष पुस्तकें उपलब्ध हैं यहांपुस्तकालय पर भले ही किसी प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता या कथित समाजसेवियों की सकारात्मक नजर नहीं है. लेकिन यह प्रमंडलीय पुस्तकालय दुर्लभ पुस्तकों से भरा-पड़ा है. प्लांट पैथोलॉजी, जापान की शासन व्यवस्था, गूंगे सुर बांसुरी के, गांधी धर्म और समाज, प्रेमचंद्र परिचर्चा, अजेय राष्ट्रभावना, रावण तेरे रूप अनेक, द बर्ड्स, माया, प्रेम में भगवान, सफेद कौआ, राजघाट की सानिध्य में, वह, नवरंग, उगते सूरज की किरण, कुरान सार, राहबीती, वृत विहार, अंजीर, मेरी शवयात्राएं जैसी दुर्लभ किताबें पाठकों के इंतजार में व रखरखाव के अभाव में धूल फांक रही है.लाइब्रेरी है, लाइब्रेरियन नहींसुबह दस बजे से अपराह्न चार बजे तक चलने वाले इस प्रमंडलीय पुस्तकालय में पुस्तकालयाध्यक्ष का पद वर्षों से रिक्त है. लिहाजा यहां का सारा भार एक मात्र आदेशपाल भोगी लाल पंडित के भरोसे है. श्री पंडित को 350 रुपये महीने की तनख्वाह मिलती है. वह भी बीते कई महीने से नही मिली है. पुस्तकालय की साफ -सफाई के लिये 50 रुपये महीने की पगार पर एक झारूदार अरविंद पासवान को रखा गया है. वेतन के अनुसार ही कभी-कभार उसके दर्शन हो जाते हैं.फोटो – पुस्तकालय 1 व 2 – सुपर मार्केट स्थित पुस्तकालय भवन व अंदर दीमक की चाटी हुई पुस्तकें

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