जिले के 1717 विद्यालयों में 717 विद्यालय हैं भवनहीन फोटो – 07कैप्सन- पेड़ के नीचे पढ़ाई करते बच्चे 64 विद्यालयों के पास जमीन भी उपलब्ध नहीं भूमि दान देने की जटिल प्रक्रिया के कारण भू-दाता खींच रहे हाथभवन के अभाव में पेड़ के नीचे पढ़ने को विवश हैं छात्रठंड के मौसम में ऐसे विद्यालयों में बच्चों के अभिभावकों की बढ़ी चिंताप्रतिनिधि, सुपौलमौसम में आये बदलाव के बाद ठंड ने दस्तक दे दी है, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि जिले के भवनहीन विद्यालयों के बच्चे इस ठंड के मौसम में किस प्रकार पेड़ के छांव में पढ़ाई करेंगे. जिले में आज भी सैकड़ों विद्यालय भवन व भूमिहीन हैं. यहां शिक्षकों द्वारा किसी के दरवाजे पर अथवा पेड़ की छांव में बच्चों को पढ़ाया जाता है. जिले के कोसी तटबंध के भीतर तो स्थिति काफी विकट है. यहां कागजों पर ही विद्यालय का संचालन हो रहा है. भवन व भूमि की अनुपलब्धता के कारण लोगों को यह पता भी नहीं चलता कि विद्यालय कहां है. नतीजतन इन स्कूलों के शिक्षक घर बैठे वेतन का लाभ ले रहे हैं. सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि जिन विद्यालयों को भूमि उपलब्ध है, वहां भी भवन निर्माण नहीं हो पाया है. नतीजतन छात्रों को सालों भर पेड़ नीचे पढ़ने को विवश होना पड़ रहा है.अनिवार्य शिक्षा का उड़ रहा मजाक सर्व शिक्षा अभियान के तहत छह से चौदह वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए मुफ्त अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने एवं इसे प्रभावी बनाये जाने के बाद भी जिले में संचालित 1717 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में से 717 विद्यालय भवनहीन हैं. शिक्षा विभाग के अनुसार इनमें दो सौ से अधिक ऐसे विद्यालय हैं, जिन्हें राशि उपलब्ध कराये जाने के बावजूद भवन निर्माण का कार्य पूरा नहीं किया जा सका है. कई स्थानों पर विद्यालय शिक्षा समिति एवं प्रधानाध्यापक के बीच आपसी तालमेल को लेकर भवन निर्माण में बाधा उत्पन्न हो रही है, जबकि कई स्थानों पर पूर्ण राशि उठाव के बावजूद भवन निर्माण का कार्य पूरा नहीं किया जा सका है. जानकारों की मानें, तो इन विद्यालयों में भवन निर्माण का कार्य पूरा कराने के लिए जवाबदेह शिक्षा विभाग के अभियंता एवं पदाधिकारी भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इसका खामियाजा इन विद्यालयों में नामांकित छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ता है. 64 विद्यालय है भूमिहीनसरकार द्वारा विद्यालयी शिक्षा से वंचित छात्रों को विद्यालय लाने के लिए अनेक योजनाएं भी चलायी जा रही हैं, लेकिन जिले में आज भी 64 विद्यालय ऐसे हैं, जिन्हें भूमि तक उपलब्ध नहीं हो पायी है. भूमि उपलब्ध नहीं रहने के कारण इन विद्यालयों में भवन निर्माण की दिशा में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है. नतीजतन यहां इंद्रदेव की कृपा पर ही छात्रों की पढ़ाई निर्भर है. इन विद्यालयों को भूमि उपलब्ध कराने में विभाग ने भी अपने हाथ खड़े कर दिये हैं. इससे ऐसे विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों के अभिभावकों की चिंता बढ़ गयी है.भूमि दान देने की जटिल है प्रक्रिया शिक्षा विभाग एवं राज्य सरकार द्वारा भूमिहीन विद्यालयों को भूमि उपलब्ध कराने के लिए लोगों से दान में जमीन मांगी गयी है. इसके एवज में जमीन दाता के परिवार किसी एक व्यक्ति के नाम पर विद्यालय के नाम करण की बात कही गयी है. पर, भूमि दान करने की प्रक्रिया काफी जटिल रहने के कारण भू-मालिक जमीन देने से इनकार कर दे रहे हैं. जानकार बताते हैं कि जमीन दान देने वाले भू-दाताओं को कई बार जिला कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. इस वजह से लोग अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि इन भूमिहीन विद्यालयों को किस प्रकार जमीन उपलब्ध होगा.
जिले के 1717 वद्यिालयों में 717 वद्यिालय हैं भवनहीन
जिले के 1717 विद्यालयों में 717 विद्यालय हैं भवनहीन फोटो – 07कैप्सन- पेड़ के नीचे पढ़ाई करते बच्चे 64 विद्यालयों के पास जमीन भी उपलब्ध नहीं भूमि दान देने की जटिल प्रक्रिया के कारण भू-दाता खींच रहे हाथभवन के अभाव में पेड़ के नीचे पढ़ने को विवश हैं छात्रठंड के मौसम में ऐसे विद्यालयों में […]
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