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हस्त शल्पि से महिलाओं के स्वावलंबन की राह आसान (बॉटम)

सिन्होरा : डुमरांव़ सुहागिन महिलाओं के लिए अमर सुहाग की निशानी सिन्होरा का विशेष महत्व है़ परंपरा के रूप में शुरू से इस्तेमाल होते आ रहे सिन्होरा की मांग लगन के दिनों में बढ़ जाती है़ मंडियों में सजे खूबसूरत और आकर्षण सिन्होरा हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं. लेकिन इनके स्वरूप देने में कितने […]

सिन्होरा : डुमरांव़ सुहागिन महिलाओं के लिए अमर सुहाग की निशानी सिन्होरा का विशेष महत्व है़ परंपरा के रूप में शुरू से इस्तेमाल होते आ रहे सिन्होरा की मांग लगन के दिनों में बढ़ जाती है़ मंडियों में सजे खूबसूरत और आकर्षण सिन्होरा हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

लेकिन इनके स्वरूप देने में कितने लोगों की मेहनत लगी रहती है. यह शायद हम नहीं जान पाते़ इसी कड़ी में प्रभात खबर ने कुछ ऐसी महिलाओं से बातचीत की जो सिन्होरा को नये लुक में ढाल कर रंग-बिरंगे नगों व अपने कला की बदौलत गढ़ती है.

इसी धंधे के सहारे परिवार को स्थायित्व दे रही है़ंमिल रही अलग पहचाननगर पर्षद क्षेत्र के छठिया पोखरा के समीप एक छोटे से मकान में 7-8 महिलाएं आम की लकड़ी से बने डुमरांव के सिन्होरा को अपने हुनर की बदलौत रंग-बिरंगे नगीनों को सजाकर एक अलग पहचान दे रही है़ं

मेहनत से मिली रकम से इन महिलाओं का घर-परिवार आसानी से चलता है़ महिलाओं ने बताया कि इसके लिए न कोई पढ़ाई की और न ही प्रशिक्षण लिया़ कला को देख कर काम करने की ललक बढ़ी और आज इस कला से ही परिजनों का पेट पलता है़ ललक ने बनाया आत्मनिर्भररूपाली ने सिन्होरा कारोबार से कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है़

सिंहोरा पर हस्तशिल्प कला में कारीगरी कर रही महिला सुधा, दुर्गा, रानी, कलावती व मोहनी के हाथों से सजे सिंहोरा की लगन के दौरान मांग बढ़ जाती है़ रूपाली बताती हैं कि इस कला से इन महिलाओं को जीने की राह आसान हो गया है़ लगन में कुछ ज्यादा कमाई करती है जिसे वह अपने भविष्य के लिए बचा कर रखती है़

सरकार से नहीं मिलता सहयोगमहिला हस्तशिल्प कला हो या शिल्पकार ऐसे हुनर वाले महिलाओं को सरकारी संस्थाओं द्वारा कोई सहयोग नहीं मिलता़ शिल्पकारों को भारत सरकार द्वारा 50 हजार का ऋण बैंकों से मिलने का प्रावधान है़ लेकिन बैंक लोन नहीं देते़ पैसे के अभाव में अपने कला के बदौलत कमाने को विवश है़ं.

हर दिन महिलाओं द्वारा 25-30 सिंहोरा को तैयार किया जाता है़ दिल्ली से आता है मैटेरियल कारोबारी महिलाएं बताती हैं कि कि सिंहोरा के सजावट के लिए दिल्ली से मैटेरियल मंगाया जाता है़ जिसमें 30 तरह के रंग-बिरंगे नग, चमकदार व लच्छेदार लैस, शीशे की कटीन आदि की खपत होती है़

इसके अलावे आग में तपा कर कुछ अलग से सजावट सामग्री बनायी जाती है़ यह भी दो तरह का होता है, वैशाली व कुसुमी़ इन सामग्री से सिंहोरा में चमक बढ़ायी जाती है़सिंहोरा का बाजार भाव3 ईंच-70 रुपये प्रति पीस 4 ईंच-110 रुपये प्रति पीस 5 ईंच-150 रुपये प्रति पीस6 ईंच-190 रुपये प्रति पीस7 ईंच-220 रुपये प्रति पीस 8 ईंच-250 रुपये प्रति पीस

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