नयी दिल्ली : बसपा के बादमंगलवारको जदयू ने जीएसटी सहित केंद्र सरकार के आर्थिक सुधारों से जुड़े कदमों को समर्थन देने का ऐलान किया लेकिन असहिष्णुता और कुछ केंद्रीय मंत्रियों के विवादित बयानों को लेकर राज्यसभा में सरकार को विपक्षी के हमलों का सामना करना पड़ा. संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर ‘‘भारत का संविधान और उसके प्रति प्रतिबद्धता” पर उच्च सदन में चल रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुए जदयू के केसी त्यागी ने कहा कि आजादी के इतने बरसों के बाद भी इस देश के किसी भी नागरिक पर अगर धर्म को लेकर उंगली उठती है तो यह अत्यंत चिंताजनक है.
उन्होंने कहाकि हमारा संविधान हर नागरिक को कई तरह के अधिकार प्रदान करता है जिनका हनन कोई नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि राजनीतिक आजादी तो मिल चुकी है लेकिन आर्थिक आजादी और सामाजिक आजादी अभी मिलना बाकी है. हमें यह गौर करना होगा कि क्या हम आर्थिक आजादी और सामाजिक आजादी की राह पर वास्तव में बढ़ पाए हैं.
दलितों का जिक्र करते हुए त्यागी ने कहा कि उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है और जनगणना के अनुसार, ढाई लाख परिवार आज भी सर पर मैला ढोते हैं. करीब तीन लाख दलित परिवार भीख मांग कर गुजारा करते हैं. यह शर्मनाक है. ‘‘बाबा साहेब अंबेडकर ऐसा हिन्दुस्तान कभी नहीं बनाना चाहते थे. त्यागी ने कहा कि राजनीतिक एवं संवैधानिक पदों पर मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है. जदयू नेता ने कहा कि रोजेदार के मुंह में जबरन खाना डालने की घटना हुई थी. अगर नवरात्र पर्व के दौरान व्रत रखने वाले किसी हिंदू को जबरन भोजन कराया जाता तो क्या होता. क्या पाकिस्तान में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार का बदला हिन्दुस्तान में रह रहे मुसलमानों से लिया जाएगा.
त्यागी ने कहा कि छह दिसंबर को बाबा साहेब अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस है. लेकिन छह दिसंबर को ही इस देश में एक धार्मिक ढांचा ध्वस्त किया गया था. संविधान की शपथ लेने के बावजूद यह हुआ. हमें आत्मावलोकन करना होगा कि हम कहां जा रहे हैं और हमें कहां जाना चाहिए. दादरी घटना का जिक्र करते हुए त्यागी ने कहा कि यह वाक्या न तो दुर्घटना थी और न ही घटना. किन्तु इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए. त्यागी ने कहा कि सरकार में शामिल कुछ लोगों के बयान जले पर नमक छिड़कने का काम करते हैं.
उन्होंने कहा, जिस शेख अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीर कभी दो राष्ट्र की परिकल्पना को स्वीकार नहीं करेगा, आज उसी शेख अब्दुल्ला के परिवार को पाकिस्तान भेजने की बात की जाती है. विभाजन के दौरान विकल्प होने के बाद भी भारतीय मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये थे. उन्होंने कहा कि जनता के राष्ट्रपति कहलाने वाले डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में कहा गया कि कलाम मुसलमान थे लेकिन देशभक्त थे. क्या मुसलमाान होना गुनाह है. एक मंत्री की ओर से अपनी पार्टी पक्ष में वोट देने वालों को रामजादे और अन्य के लिए अपशब्द का उपयोग करते हुए बयान आया था. क्या यह भाषा हमारे संविधान की भाषा है.
केसी त्यागी ने कहा कि न यह भाषा हमारे संविधान की है और न ही यह भाषा महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की है. अंबेडकर अपने विरोधियाें को कभी नहीं कहते कि उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाएगा. आपके मंत्री इस तरह बोलते हैं. हमें सोचना होगा कि सहिष्णुता वास्तव में क्या है. त्यागी ने कहा, जीएसटी, बीमा विधेयक :एफडीआई की सीमा 26 फीसदी से बढ़ा कर 49 फीसदी करने संबंधी: पर हम आपका समर्थन करते हैं. कोयला और खान :विधेयकों: पर भी हम आपके साथ हैं. लेकिन आप अपने पांच छह मंत्रियों से कहें कि वे संविधान का समर्थन तो करें.
जदयू नेता ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि लडाई कांग्रेस के साथ करें, न कि महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी को नजरअंदाज करें. उनकी विरासत भारत की विरासत है. हम अटल बिहारी वाजपेयी, दीनदयाल उपाध्याय और कुशाभाउ ठाकरे को पूरा सम्मान देते हैं. आपको यही सम्मान गांधी, नेहरु और इंदिरा को देने में क्या दिक्कत है. देश के लिए इन नेताओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि देश की दशा दिशा तय करने वाले संविधान के निर्माण में अंबेडकर का योगदान अमूल्य है और ।,11,369 शब्दों वाला हमारा संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है. उन्होंने कहा कि संविधान सभा को यह संविधान तैयार करने में दो साल 11 महीने का समय लगा था लेकिन आज भी देश की आधी आबादी के लिए महिला आरक्षण विधेयक 19 साल से लंबित है जबकि संविधान निर्माता अंबेडकर ने महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की वकालत की थी.
डेरेक ने सरकार से कहा कि आप इस बारे में कानून बनाएं, हम आपके साथ हैं. उन्होंने कहा कि कई महत्वपूर्ण विधेयक लंबित पड़े हैं. वह भी उनकी वजह से जो जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रुप से नहीं चुने गये हैं. तृणमूल नेता ने कहा कि पिछली सरकारों के समय जितने विधेयक पारित होते थे उनकी तुलना में अध्यादेशों की दर एक या डेढ़ फीसदी होती थी. लेकिन बीते 15 माह में 10 विधेयक पारित हुए और तीन तीन अध्यादेश जारी हुए हैं. यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है. डेरेक ने कहा कि सहयोगात्मक संघवाद की बात की जाती है लेकिन अमल के समय सूरत बदल जाती है. केंद्र की ओर से राज्यों को दिए जाने वाले कोषों में कमी की जा चुकी है और खास तौर पर पूर्वोत्तर को दिये जाने वाले पिछडा क्षेत्र अनुदान कोष :बीआरजीएफ: को तो पूरी तरह रोक दिया गया है.
तृणमूल नेता ने संसद में गतिरोध के मुद्दे पर वित्त मंत्री अरुण जेटली पर ‘‘काउबॉय कॉन्स्टीटयूशनलिज्म” अपनाने का आरोप लगाया. वाम दलों को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि वे स्वतंत्रता संघर्ष में भाग न लेने के अधिकार पर सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि उन्होंने खुद ऐसा ही किया था.