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गरीबों की सेवा से बढ़ कर कोई सेवा नहीं

गरीबों की सेवा से बढ़ कर कोई सेवा नहीं गरीबों को दुख दर्द को जानने वाला ही सच्चा इनसान : संगीता (फोटो नंबर-5,6) कैप्शन- गरीब परिवार को वस्त्र देती संगीता, साथ में खड़े विद्यार्थी, अपने कार्य पर खुशी जताते बच्चे (लीड) औरंगाबाद (ग्रामीण) विदेश से पढ़ाई कर औरंगाबाद में शिक्षा का अलख जगा रही संगीता […]

गरीबों की सेवा से बढ़ कर कोई सेवा नहीं गरीबों को दुख दर्द को जानने वाला ही सच्चा इनसान : संगीता (फोटो नंबर-5,6) कैप्शन- गरीब परिवार को वस्त्र देती संगीता, साथ में खड़े विद्यार्थी, अपने कार्य पर खुशी जताते बच्चे (लीड) औरंगाबाद (ग्रामीण) विदेश से पढ़ाई कर औरंगाबाद में शिक्षा का अलख जगा रही संगीता सिंह अब समाजसेवा के क्षेत्र में भी कूद गयी है. समाजसेवा को हथियार मानते हुए रविवार को समाजसेवा के पहले कार्य को अंजाम दिया. अपने संस्थान के विद्यार्थियों के साथ स्लम बस्ती पहुंच कर गरीब परिवारों का हाल जाना और उनके बीच वस्त्र के साथ-साथ अन्य सामान का वितरण किया. संगीता कुमारी तुषानी एजुकेशन हब संस्था की निदेशक हैं. उन्होंने कहा कि गरीबों का दुख दर्द को जानने वाला ही सच्चा इनसान है. गरीबों की सेवा से बढ़ कर कोई सेवा नहीं है. संगीता कुमारी रविवार को रामाबांध बस स्टैंड के समीप स्लम एरिया में दर्जनों छात्र-छात्राओं के साथ पहुंची और गरीबों की जीवन शैली, खान-पान व उनके निवास जैसे विषयों पर वार्ता की. अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाने का प्रयास किया. संगीता का मानना है कि शिक्षा का मतलब पुस्तकें रटना नहीं बल्कि सर्वांगीण विकास है. आज के युग में शिक्षा वह हथियार है जिससे सब कुछ पाया जा सकता है. शिक्षा को ग्रहण करने वाले देश-विदेशों में अपना और अपने समाज का नाम रोशन कर रहे हैं. संपन्न लोग शिक्षा ग्रहण करने में आगे होते हैं,लेकिन जिनके पास खाने व रहने के भी लाले पड़ गये हो वैसे लोगों को शिक्षा से जोड़ना व उनको शिक्षा दिलाना बेहद जरूरी है. अशिक्षित लोगों को शिक्षित करने में समाज के लोगों को सामने आना होगा. हमने तो इसकी शुरुआत कर दी है. गरीब बच्चों के बीच टॉफी वितरण करते हुए छात्रा सृष्टि, काजल, आकांक्षा, साक्षी, श्रुति, छात्र अंकुर, हर्ष, शुभम व हिमांशु ने कहा कि जब हमलोगों को गरीब बच्चों की सेवा करने की सूचना या जिम्मेवारी दी गयी तो हमारे अंदर प्रसन्नता की भावना उमड़ पड़ी. सुबह होते ही उस पल का इंतजार करने लगे. गरीबों बच्चों के बीच कुछ काम कर एहसास हुआ कि ये हमलोग की तरह क्यों नहीं बन सकते हैं या रह सकते हैं. गरीब परिवार की बुजुर्ग महिलाओं व पुरुषों ने बच्चों को आशीर्वाद देते हुए धन्यवाद कहा.

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