डॉ विनय को मिला अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान’एक मनोचिकित्सक के नोट्स’ के लिए किया गया सम्मानितसम्मान के तौर पर दिया गया प्रशस्ति पत्र व 11 हजार 111 की राशिवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरअयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति समिति की ओर से आठवां अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान जाने-माने मनोचिकित्सक व लेखक डॉ विनय कुमार को दिया गया. यह सम्मान उनकी पुस्तक ‘एक मनोचिकित्सक के नोट्स’ के लिए क्लब रोड स्थित एक रेस्टोरेंट में रविवार को आयोजित समारेाह में प्रदान किया गया. समारोह की अध्यक्षता कर रहे जाने-माने समाजवादी चिंतक व लेखक सच्चिदानंद सिन्हा ने उन्हें सम्मान पत्र सौंपा. सम्मान के तौर पर डॉ विनय को 11 हजार 111 का चेक भी दिया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ अयोध्या प्रसाद खत्री पर बने वृतचित्र के प्रसारण से हुआ. उसके बाद आलेख पाठ करते हुए अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि समाज के बगैर मनुष्य की कोई परिभाषा नहीं. इसके मूल में भाषा का होना व जीवन में रोशनी, रंग व प्रवाह का होना जरूरी है. मंच संचालन मनोज कुमार वर्मा व धन्यवाद ज्ञापन समिति के संयोजक वीरेन नंदा ने किया. मौके पर समिति के कामेश्वर प्रसाद दिनेश सहित शहर के साहित्यकार मौजूद थे.अनुभव पर हिंदी में पहली पुस्तकवरीय कवि अरुण कमल ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों ने अपने अनुभव पर पुस्तक लिखी है. लेकिन सभी पुस्तकें अंग्रेजी में है. डॉ विनय ने अपनी भाषा हिंदी में पुस्तक लिख कर भाषा को समृद्ध किया है. इनके कई लेख मैंने कई बार पढ़े. इनकी लेखनी बार-बार पढ़ने की इच्छा जगाती है. डॉ विनय ने कई बीमारियों के हिंदी नाम भी बनाया है. डॉ विनय काफी अच्छा काम कर रहे हैं. श्री अरुण ने किताब के कई प्रसंगों का भी जिक्र किया. कवि पंकज सिंह ने कहा कि डॉ विनय अमेरिकी साम्राज्यवाद से भली भांति परिचित हैं. अमेरिका की बढ़ती लालसा का उन्होंने विरोध किया है. उनके लेखन में असहमित का स्वर है. डॉ विनय ने अपने मूल व्यवसाय से अलग रचनाशीलता को जगह दी. समाज की चिंताओं व सरोकारों को विस्तार दिया. बाजार ने मनुष्य को बनाया ऑब्जेक्टलेखन पर अपनी बात रखते हुए सम्मानित लेखक डॉ विनय कुमार ने कहा कि हम जो भी ग्रहण करते हैं, वही पल्लिवत होकर हमारे जीवन में दिखता है. पिता को अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करते देख प्रेरणा मिली. दादा जी की गहन अध्ययन परंपरा भी मेरे अंदर आयी व मां के लोकगीत गायन से हमारे अंदर ग्राम्य संवेदना का सृजन हुआ. यही तीनों मेरे लेखन का आधार रहा है. मुझे लिखना ही था. लेखन में कोई बेईमानी नहीं कर सकता. लिखते समय सच बाहर आ जाता है. मेरे जीवन के सारे बिखराव भी मेरी कविता में आये हैं. आज के समय में मनुष्य नहीं चाहते हुए भी अकेला है. बाजार ने उसे ऑब्जेक्ट बना दिया है. यही वजह है कि देश में आत्महत्या 43 फीसदी बढ़ी है. एक आकलन के अनुसार 2020 तक अवसाद हृदय रोग के बाद दूसरी सबसे बड़ी बीमारी होगी.व्यवस्था बदले बिना मानसिक रोग से मुक्ति नहींसमारोह की अध्यक्षता करते हुए समाजवादी चिंतक व लेखक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहा कि मानसिक रोग का संबंध काफी पहले से है. 1932 में आइंस्टाइन ने फ्रायड को पत्र लिखा था, फ्रायड ने कहा था कि मनुष्य के भीतर दो तरह की चेतना होती है. प्रेम की भावना व विद्वेष की भावना. दोनों में संघर्ष चलता रहता है. प्रेम के अभाव में अशांति आती है. 1933 का युद्ध इसका उदाहरण है. हृदय में प्रेम की भावना हो, लेकिन यह होगा कैसे. समाज जो व्यवस्स्था बनेगी, वह कैसी होनी चाहिए. जब तक समाज की व्यवस्था नहीं बदलती तब तक यह संभव नहीं है कि मनोरोग से मुक्त हुआ जाये. आज जो दुनिया का आर्थिक आधार है, उसमें तो कतई संभव नहीं. वर्तमान में जो तकनीकी सभ्यता है, उसकी दिशा यही है कि ज्यादा से ज्यादा उपभोग को बढ़ावा मिले. वैश्वीकरण उसका विस्तृत रूप है. श्री सिन्हा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस सभ्यता को स्वीकार करते हुए हम दूसरी दिशा में बढ़ सकते हैं. वर्तमान सभ्यता आकांक्षा को जन्म देती है. हमें बताया जाता है कि हम उसके बिना जिंदा नहीं रह सकते. लेखक डॉ विनय कुमार सभ्यता को दूसरी दिशा देना चाहते हैं. वे लोगों के बीच सबंधों की मधुरता लाना चाहते हैं.
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