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मछुआरों का गांव एशिया का सिरमौर बना

सिंगापुर, हांगकांग और चीन से लौटने के बाद हरिवंश सिंगापुर पहला पड़ाव था. सिंगापुर, अपने अनुशासन, सफाई तेज विकास, हाईटेक और अनूठे प्रबंधकीय कौशल के कारण पश्चिम के लिए पहली है. पूरब के लिए अनुकरणीय मॉडल. वह देश, जो सीधे थर्ड वर्ल्ड (तीसरा दुनिया) से फर्स्ट वर्ल्ड (विकसित देश) की श्रेणी में पहुंचा. 35 वर्षों […]

सिंगापुर, हांगकांग और चीन से लौटने के बाद हरिवंश
सिंगापुर पहला पड़ाव था. सिंगापुर, अपने अनुशासन, सफाई तेज विकास, हाईटेक और अनूठे प्रबंधकीय कौशल के कारण पश्चिम के लिए पहली है. पूरब के लिए अनुकरणीय मॉडल. वह देश, जो सीधे थर्ड वर्ल्ड (तीसरा दुनिया) से फर्स्ट वर्ल्ड (विकसित देश) की श्रेणी में पहुंचा. 35 वर्षों की कहानी, सिंगापुर के आधुनिक निर्माता ली क्वान यी के शब्दों में कहें तो, छह वर्ष की उम्र में मैं लकड़ी की बैलगाड़ी पर चढ़ता था. अपने दादा के रबर बगानों में मैं सुपरसॉनिक कामकार्ड (अति तेज जहाज) से उड़ा. टेक्नोलॉजी ने मेरी दुनिया बदल दी.
सिंगापुर की दुनिया क्या थी? ईस्ट इंडिया कंपनी के स्टैंफोर्ड रैफल्स ने 1819 में इसे ढूंढा. 120 मछुआरों की रिहायशी जगह. रैफल्स भारत से चीन, समुद्री रास्ते जा रहा था. व्यापारी था, व्यापार की दृष्टि से इस दीप के महत्व को समझा. भदेस भाषा (ले मैन लैंग्वेज) में कहें, तो यह मछुआरों का गांछ था. 640 वर्ग किमी से भी कम धरती में फैला. पहले अंगरेजों का आधिपत्य रहा, फिर जापानी शासन. मलयेशिया से भी नियंत्रित रहा. गुजरे 50 वर्षों में जिस देश को तीन ताकतों ने संभाला, जहां अंगरेज, ऑस्ट्रेलियाई, जापानी, ताइवानी और कोरियाई सैनिकों का शासन रहा, वह देश महज 35 वर्षों में (1965-2000) इतना आगे कैसे निकल गया? मछुआरों का गांव एशिया का सिरमौर कैसे बना?
देर रात सिंगापुर एयरलाइंस की खिड़की से जब आसमान के तारे दिख रहे थे. तब ये सवाल हम साथियों के दिमाग में कौंध रहे थे. 1965 में सिंगापुर का समग्र राष्ट्रीय उत्पाद तीन बिलियन डॉलर हो गया. प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से दुनिया में आठवें नंबर का देश. लगभग बालू की रोत पर बसा देश. प्राकृतिक संसाधनों का घोर अभाव. 40 लाख की कुछ आबादी.
76 फीसदी चीनी, 15 फीसदी मलाया मूल के लोग और 6.5 फीसदी भारतीय जड़ से जुड़े यह आबादी प्रोफाइल है. स्वतंत्र देश बनने के पहले प्रति व्यक्ति आय एक हजार डॉलर थी और अब 30 हजार डॉलर है. यही मुल्क दक्षिण पूर्व एशिया का हाईटेक लीडर है. व्यापार – विज्ञान का केंद्र है. एशियान का संस्थापक सदस्य, दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति की समर्थ हस्ती 40 लाख की आबादी का यह देश इतना आगे कैसे निकल गया? 100 करोड़ लोगों का देश भारत इस हाल में क्यों है? चांगी हवाई अड्डे पर उतरते ही ऐसे सवालों की बाढ़ हमारे मन-मस्तिष्क में मौजूद थी.
हवाई अड्डे के सिंगापुरी कर्मचारियों की विनम्रता, तेज गति से औपचारिकताओं का समापन, सिंगापुर के नागरिकों के लिए अलग इमीग्रेशन खिड़की, ताकि उन्हें पंक्ति में खड़ा न होना पड़े. यूरोप, अमेरिका, हांगकांग व चीन में भी विदेश से आ रहे अपने नागरिकों के लिए अलग इमीग्रेसन खिड़किया, आतिथ्य और आवभगत का बंदोबस्त है. सिर्फ भारत में बाहर से लौट रहे भारतीय आम तौर पर संदेह की दृष्टि से देखे जाते हैं. उनके लिए कोई अलग व्यवस्था नहीं है. एक देश, व्यवस्था स्तर पर भावात्मक तौर से अपने नागरिकों से कटा है. सिंगापुर का चांगी हवाई अड्डा कांपीटेंस (कार्य कुशलता) और कर्ट्सी (विनम्रता) का जीवंत उदाहरण है, सफाई, सौंदर्य बोध, साज-सज्जा और अद्भुत कलात्मक चीजें, लगातार जहाज उतर और उड़ रहे हैं. कहीं भागदौड़-तनाव नहीं. बिल्डिंग कंस्ट्रकशन (निर्माण) हो रहा है. पर जरा भी गंदगी नहीं. सारी चीजें तरतीबवार व व्यवस्थित हैं.
10-10, 12-12 लेन की सड़कें. किनारे-किनारे पेड़ों की मोहक कतारें. कांट-छांट से एक समान दीखते छतनार पेड़, सड़कों के बीच में हरी झाड़ियां, सुंदर बहुमंजिली बिल्डिंगों की कतारें, हतप्रभ और स्तब्ध करनेवाली बिल्डिंगें, ओवर फ्लाई. आर्किटेक्स ने नायाब नमूने. साफ-सुथरी व चमकती सड़कें. 120-130 की सामान्य रफ्तार पर भागती गाड़ियां, कहीं हार्न नहीं. अपनी इफीशियेंट व्यवस्था, सौंदर्य और अनुशासन में पश्चिम के बड़े शहरों को पीछे छोड़ता सिंगापुर, सचमुच एशिया का गौरव लगता है. मुंबई में ही सिंगापुर के एक जानकार ने कहा था, आंख बंद कर जाइये, सिंगापुर में ठगनेवाले टैक्सी ड्राइवर या व्यवस्था नहीं मिलेगी. इस धरती पर उतरते और होटल पहुंचते ही यह इंप्रेशन (धारणा) स्वत: पुष्ट हुआ.
पुनश्च: सिंगापुर को घूमते-देखते और उस पर लिखते हुए, भारतीय दृष्टि डंक मारती है. भारतीय राजनेता, शासक और विचारक कहते हैं कि 40 लाख की आबादी को मैनेज करना और 100 करोड़ का प्रबंध करना अलग है. कहां तुलना हो सकती है? यह असमर्थता का रुदन है. अकर्म और संकल्प की पराजय है. पराजित पौरुष और अकर्मण्य सृजन की वेदना. 40 लाख की बात छोड़ें, चार हजार की आबादी या 400 की आबादी के किसी गांव को हम मॉडल बना पाये हैं? पुनर्निर्माण या पुनर्रचना का कौन-सा अध्याय हमारे गौरव का प्रसंग है? सच तो यह है कि प्रबंध कौशल (चाहे 400 लोगों के लिए हो या 100 करोड़) संकल्प, श्रम, अनुशासन, ईमानदारी, उच्च श्रेणी की विजनरी लीडरशिप, से ही कोई गांव, समाज या देश इतिहास में नयी इबारत लिखता है. सिंगापुर की 40 लाख की आबादी ने विकास का नया अध्याय लिखा, पर 100 करोड़ की आबादी का हमारा देश पहचान हीं बना सका.

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