-हरिवंश-
छह जगहें जेहन में बस जाती हैं. उनकी स्मृति आते ही इतिहास, अतीत और पुरानी घटनाएं सजीव हो उठती हैं. वर्तमान को टटोलती, खंगालती और आंकती. कुछ इस तरह बिहार का खगड़िया जिला मेरी स्मृति में है. धर्मयुग, मुंबई (80 के दशक के पूर्वार्द्ध), रविवार, कोलकाता (90 के दशक के उत्तरार्द्ध) और फिर प्रभात खबर (रांची, 2000 के बाद) में काम करने के दिनों से ही. नेशनल हाइवे 31 पर स्थित. बेगूसराय से गुवाहाटी तक को जोड़नेवाली सड़क के किनारे.
पांच बड़ी नदियों का क्षेत्र, जिसे मशहूर दियारों का इलाका कहते हैं. कहते हैं, राजा टोडरमल भी उस इलाके का सर्वे नहीं करा सके. भौगोलिक कठिनाई और क्रूरता दोनों विरासत में मिले. और भी बहुत कुछ खगड़िया की स्मृति से जुड़ा है. जेहन में है.
खगड़िया से पहली बार गुजरा फरवरी, 2011 में. पटना से भागलपुर जाने के क्रम में. इसी तरह दूसरी यात्रा हुई 14 दिसंबर, 2011 (यह यात्रा 14,15,16 दिसंबर को मुख्यमंत्री की त्रिदिवसीय बांका की सेवा यात्रा देखने के क्रम में थी) को. दोनों बार गुजरना हुआ, ठहरना नहीं. कोहरे से घिरा था, खगड़िया. सड़क के किनारे एक ढाबा. पुरानी बातें-स्मृतियां मन में उभरीं. कड़ाके की ठंड थी. पुरानी घटनाओं के आईने में आज के खगड़िया (बिहार) को जानने की कोशिश करता हूं. वहां उपस्थित युवा साथियों से.
80 के दशक में जातिगत नरसंहार को लेकर खगड़िया पूरे देश में गूंजा. 11 नवंबर, 1985 को तौफिर दियारा (लक्ष्मीपुर) में बिंद जाति के एक टोले पर हमला कर, उनके घरों को जला दिया गया. कई लोगों की हत्या की अपराधी गिरोहों ने. इस हत्याकांड के बाद रणवीर यादव चर्चित हुए थे. बताया गया, यह घटना दो जातियों के बीच चल रही दुश्मनी का परिणाम थी. खगड़िया से सात नदियां बहती हैं. पांच बड़ी – कोशी, कमला, बागमती, गंगा और गंडक. दो छोटी नदियां – करेह और बूढ़ी गंडक.
ये नदियां जब अपनी धारा बदलती हैं, तो कटाव होता है, फिर भूमि विवाद. यहां खूनी गिरोह थे. यहां से एक सांसद होते थे, तुलमोहन राम. कांग्रेसी. जयप्रकाश आंदोलन के दिनों में उनका नाम देश में गूंजा. शायद मधु लिमये ने लोकसभा में प्रसंग उठाया था. उन्होंने तत्कालीन रेल मंत्री ललित बाबू को किसी खास व्यवसायी-पार्टी को प्राथमिकता के आधार पर रेलवे-वैगन आवंटन करने के लिए पत्र लिखा था. आरोप लगा कि यह प्रसंग लेन-देन से जुड़ा है. फिर लालूजी के कार्यकाल में एक सांसद का नाम गूंजा, जो खगड़िया के ही रहनेवाले थे. उन्होंने पटना सचिवालय में एक वरिष्ठ आइएएस को जूते से पीटा था. याद रखिए, यह सब महज घटनाएं नहीं थीं. बिहार के हालात के परिणाम थे. एक वरिष्ठआइएएस को पीटा जाये, वह भी पटना सचिवालय में और कुछ न हो. यहां तक कि आइएएस एसोसिएशन भी कोई सार्थक पहल नहीं कर सका. अगर राज्य की राजधानी में यह हाल था, तो खगड़िया में ऐसे राजनीतिज्ञ अपने जिले में, गांव-घर में क्या करते होंगे? यह कल्पना की बात नहीं थी.
उन्हीं दिनों सुना, खगड़िया से होकर गुजरनेवाले, आने-जानेवाले वाहनों को रंगदारी टैक्स देना पड़ता या हर वाहन चालक को ढाबा याद रखने होते. वहां से गुजरनेवाली गाड़ियों को यहां रुकना अनिवार्य था. बसों को रंगदारी टैक्स देना पड़ता था. एक बस ड्राइवर ने उस रूट का अपना अनुभव सुनाया था. नेपाल से उस रास्ते नेपाली लड़कियां बिहार-झारखंड आती थीं. कई बार उन्हें जबरन बसों से उतार लिया गया. फिर उनका पता नहीं चला. कोई रिपोर्ट नहीं लिखी गयी. न किसी में बोलने का साहस होता था.
अलौली विधानसभा क्षेत्र (खगड़िया) के शहरबन्नी गांव के हैं, रामविलास पासवान. इनके घर आने-जाने के लिए नौका ही सहारा थी. उनके भाई पशुपति कुमार, अलौली से आठ बार विधायक रहे. लेकिन अलौली गांव या विधानसभा क्षेत्र के किसी मामूली हिस्से की तकदीर नहीं पलटी. सड़कों के बारे में लोग कहते हैं कि तब सड़कें नहीं गड्ढे थे या गड्ढे ही सड़कें थीं. पग-पग पर ट्रक उलटे-पलटे मिलते थे. गिरोहों के आतंक थे. जिस गिरोह का जहां इलाका होता था, वहां उसकी पूजा (रंगदारी टैक्स) अनिवार्य थी. यह नेशनल हाइवे लाइफ लाइन है. बेगूसराय-पूर्णिया-गुवाहाटी लिंक रोड. बिहार-झारखंड के इस इलाके का उत्तर-पूर्व से संपर्क माध्यम. औरतों के लिए यह इलाका तो अभिशाप माना जाता था. दियारे अपहृत लोगों को लील जाते थे. खासतौर से कमजोर और गरीब महिलाओं का जीवन तो उनके अपने हाथ में था ही नहीं.
पुरानी स्मृतियों में बसा यह खगड़िया आज कहां है? यह जानने की उत्सुकता थी. भौगोलिक रूप से ही यह बिहार के लिए कठिन क्षेत्र नहीं था. कानून-व्यवस्था तथा विकास की दृष्टि से कठिनतम क्षेत्रों में से एक. 1981 में अलग जिला बना. पहले मुंगेर जिले का हिस्सा था. वहां की स्थिति जानने से मौजूदा बिहार की दिशा और दशा साफ होती है. एक पकता चावल, पूरे भात की स्थिति बताता है. उसी तरह सबसे कठिन चावल (खगड़िया) किस हाल में है?
आप यकीन कर सकते हैं, जहां औरतों के प्रति क्रूरता चरम पर थी, वहां आज औरतों की क्या स्थिति है? शिक्षिकाएं, एएनएम नर्स, आंगनबाड़ी सेविकाएं तथा सहायिकाएं, पंचायत मित्र आदि पदों पर बड़े पैमाने पर महिलाएं काम कर रही हैं. खगड़िया के युवकों ने बताया कि वे रोज बस से आती-जाती हैं. दूर-देहात, गांवों में. पैदल. जहां उनका काम है. देर शाम में काम कर इन्हीं दियारों-गांवों से लौटती हैं. जहां नेशनल हाइवे में यात्रा करनेवाली बसों से औरतों-लड़कियों का अपहरण होता था, आज उसी सड़क से स्वत: उतर कर महिलाएं अकेले ही अपने कार्यक्षेत्र पर आती-जाती हैं. शाम में लौटती हैं. यह अद्भुत परिवर्तन है. अविश्वसनीय और स्तब्धकारी. यह स्थानीय लोग कहते हैं. अब बसों से रंगदारी टैक्स नहीं वसूला जाता. सड़क किनारे की एक बदनाम होटल को पुलिस ने ध्वस्त कर दिया. दूसरा होटल है, पर अब कोई जोर-जबरदस्ती और रंगदारी नहीं. अपराधी जेलों में हैं. उभरते अपराधियों ने अपना रास्ता बदल लिया है. खगड़िया में नक्सली गतिविधियां शांत हैं. अलौली घटना के दोषी बोढ़न सदा तथा योगी सिंह जेल में हैं. छह वर्षों में दो बड़ी घटनाएं हुईं. पहली सितंबर, 2009 में. फुलतोड़ा नौका हादसा. दूसरी अक्तूबर, 2009 में. अमौसी के भूमि विवाद में 16 लोगों की गोली मार कर हत्या. कई पुलिस अफसर सस्पेंड हुए. तुरंत 27 लोग पकड़े गये. स्पीडी ट्रायल चल रहा है. दोषी सजा की प्रतीक्षा में हैं.
विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण बात है. गली-मुहल्ले तक सड़कें ठीक हो गयी हैं. परबत्ता में विद्युत सब ग्रिड बन रहा है. बिजली की स्थिति पहले से बेहतर है. और सुधरेगी. शहर और गांव की सड़कें भी अच्छी हैं. भागलपुर जाने के क्रम में हाइवे पर सड़क कुछ दूर खराब है, पर काम हो रहा है. डूब-दलदल क्षेत्र होने से सड़कें लगातार खराब होती हैं, पर इन्हें ठीक रखने की गति भी तेज है. अलौली के शहरबन्नी (रामविलास पासवान का गांव) गांव जाने के लिए अब नाव की जरूरत नहीं पड़ती. नीतीश राज में बिहार राज्य पुल निर्माण निगम द्वारा बनाये गये पुल से ही इस गांव के लोग दो मिनट में उस पार जाते हैं. इस पुल के बनने से दरभंगा और समस्तीपुर के बीच की दूरी भी कम हो गयी है. डुमरी घाट के पास बागमती नदी पर बनाये गये स्टील पाइप पुल से भी कोशी की, राजधानी पटना से दूरी काफी घट गयी है. स्कूल-कॉलेजों के नये-नये भवन बने हैं. आरटीपीएस काउंटर पर या प्रखंड मुख्यालय पर सैकड़ों की भीड़, इस होते बदलाव का परिणाम है.
कहां गये खौफ पैदा करनेवाले? खगड़िया के युवा बताते हैं, 70 फीसदी बाहुबलियों के दिन मंडल कार्यालय से लेकर अदालत तक दौड़-धूप में बीत रही है. कुछेक ठेकेदार बने हैं या जीवन की धारा बदल किसी और क्षेत्र में चले गये. नक्सलियों का गढ़ माना जानेवाला दियारा अब शांत है. बोढ़न सदा तथा योगी सिंह को पुलिस ने पकड़ लिया है. वहां के लोगों के लिए यह गिरफ्तारी अविश्वसनीय सच था. अब सभी महंगी गाड़ियों के काले शीशे उतार दिये गये हैं. शौक से हथियार रखने का फैशन भी बंद हो गया.
खगड़िया के सामान्य लोगों से बात करने पर इस बदलाव की सघनता (इंटेनसिटी) का एहसास होता है. यह मुक्त हवा में सांस लेने जैसा है. बाहर से इस बदलाव को समझा जा सकता है, बुद्धि से. पर वहां रहनेवाले इसे महसूस करते हैं, मन से. मन और बुद्धि का फर्क गहरा है. खगड़िया के लोगों से यह सब सुनते हुए, उनके चेहरों के भाव को देख कर अच्छा लगता है. मामूली इनसान के जीवन में इस बदलाव का फर्क भला राजनीतिज्ञ या बुद्धिवादी कैसे समझ सकते हैं? पर खगड़िया यही नहीं ठहरा है.
इससे भी बड़ी बात हुई है. खगड़िया में पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर की राजनीति पर महिलाओं का कब्जा है. इस घोर सामंती और रूढ़िवादी माहौल में. हर दिन सैकड़ों महिलाएं स्कूल और अस्पताल में नौकरी करने जा रही हैं. बैंकों से महिलाएं खुद रुपये निकालती और जमा करती हैं. सड़कों पर कतार लगा कर बच्चियां स्कूल जाती हैं. स्कूल ड्रेस में. साइकिल से. यह सब एक बड़े बदलाव की शुरुआत के संकेत हैं. सबसे रोचक बात सुनी. अलौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक के बारे में. यह अनुसूचित जाति की सीट है. इसी सीट पर रामविलास पासवान के भाई आठ बार विधायक रहे हैं. उन्हें हटाया किसने? जदयू के रामचंद्र सदा ने. उनके बारे में पूछा, कौन हैं? क्या इनका भी बाहुबल है? खगड़िया के लोगों ने बताया, रामचंद्र सदा ट्यूशन पढ़ाते थे. खेतिहर मजदूर की पृष्ठभूमि से. गांधी के अंतिम जमात के इनसान. पास में एक पैसा नहीं. फटेहाल. एक रुपये का विधायक कहलाते हैं. पूछा, एक रुपया क्या है? लोगों ने कहा कि बस एसएमएस या फोन कर दीजिए, इसमें खर्च आता है एक रुपया. वह आपके हर दुख-दर्द में साथ खड़े मिलेंगे. ईमानदार विधायक. नीतीश जी चुनाव प्रचार में आये, तो भारी भीड़ जमा थी. वैसे भी अपने भाषण में नीतीश कुमार एक सीमा के नीचे विरोधियों पर टीका- टिप्पणी नहीं करते. पर यहां भारी भीड़ से एक ही लाइन पूछा? आपका मन अभी भरा नहीं? उनका आशय पशुपति कुमार के आठ बार विधायक बनने और कुछ न करने से था. भारी भीड़ ने जबरदस्त ढंग से ताली बजा कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. फिर एक गरीब दलित रामचंद्र सदा चुनाव जीत गये. विधायक रामचंद्र सदा के बारे में उपस्थित सभी युवा खगड़ियावासियों से सुन कर अच्छा लगा.
सिहरन और ठिठुरन के बीच खगड़िया के बदलाव की बातें सुन कर कई प्रसंग याद आये. हाल के दिनों में देर रात बारह-एक बजे के बीच पटना-गया, गया-पटना रास्ते पर आना-जाना हुआ. जहानाबाद, सेनारी, किंजर, नदौल, मसौढ़ी, पुनपुन वगैरह के इलाकों से. जिन इलाकों से दिन में गुजरना सिहरन भरा होता था. अब देर रात में गुजरते हुए भी परेशानी नहीं. हाल के दिनों में देखा चौड़ी होती सड़कें, सूने और बंजर खेतों में लहलहाती फसलें. काम में लगे लोग. लगा दुख, वैमनस्य और कटुता के अतीत का वह बोझ-गठरी समाज उतार रहा है. इन इलाकों से गुजरते हुए नीतीश कुमार के चुनाव के दिनों में, भाषण में कही एक बात याद आती है, ‘हम तनाव की खेती नहीं करते.’ सामाजिक न्याय की ताकतों को मजबूत करते हुए, महिलाओं को महत्व देते, वह पूरे बिहारी समाज को अपने साथ खींच पाने में सफल हुए हैं.
खगड़िया के बदलाव के सूत्र को समझने की कोशिश करता हूं. तब याद आता है 14 दिसंबर को आइजीसी (इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर) कांफ्रेंस में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की कही बात. देश-विदेश के विख्यात विद्वान जमा थे. श्री मोदी ने प्रसंग सुनाया कि 2005 में जब वे लोग चुनाव जीते, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मीडिया ने उनकी तीन प्राथमिकताएं पूछी. उनका जवाब था, गवर्नेंस, गवर्नेंस और गवर्नेंस (बेहतर शासन, बेहतर शासन और बेहतर शासन). राज्यसत्ता नामक संस्था, जो लगभग मिट गयी थी. उसके प्रताप को पुनर्स्थापित (हालांकि बिहार में यह कभी उस रूप में स्थापित नहीं रही) किया. डॉ शैवाल गुप्ता ने आइजीसी के उद्घाटन सत्र में अर्थशास्त्री एडम स्मिथ को कोट (उद्धृत) किया कि स्टेट पावर के मजबूत होने के क्या परिणाम होते हैं? बिहार ने राज्यसत्ता को, कानून को मजबूत करने की कोशिश की है. इसलिए खगड़िया भी बदल रहा है. पटना-गया के नक्सल इलाके भी नये रूप-भूमिका में हैं. यह अंदर के बिहार में बनते एक नये माहौल का सूचक है. बिहार में एक नया माहौल बन रहा है.
(इस रिपोर्ट को तैयार करने में अनेक तथ्य और सूचनाएं अपने साथी-सहकर्मी रजनीश और मिथिलेश से मिली)