-हरिवंश-
निश्चित रूप से मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को छोटानागपुर के विभिन्न सरकारी महकमों की सरकारी स्रोतों से जानकारी मिलती होगी, पर इन सरकारी विभागों की नाजुक स्थिति, भ्रष्ट अफसरों और अराजक कार्यकलापों के संबंध में सही और खरी बातें न सरकारी कारिंदे बताते होंगे और न ही भ्रष्ट राजनेता, क्योंकि भ्रष्टाचार, अक्षमता, अपराध और आतंक की गंगोत्री इनसे ही निकलती है. तथ्यों आंकड़ों की कसौटी पर कसा जाये, तो छोटानागपुर में तैनात विभिन्न विभाग के सदर अफसरों की अक्षमता की पोल खुलती है.
पुलिस : रांची शहर में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो, जब चोरी-डकैती-हत्या या अपहरण नहीं होता हो. वर्ष 1991 में रांची में दर्ज पुलिस मामले (लूट-डकैती आदि) 37.53 लाख के थे. इनमें से चार लाख रिकवर किये गये. वर्ष 1992 में 10 करोड़ की लूटपाट की घटनाएं रांची पुलिस ने दर्ज की, रिकवरी हुई मात्र 84 हजार रुपये की. यह सभी जानते हैं कि दर्ज घटनाओं की तुलना में अदर्ज घटनाएं अनगिनत हैं. एक तरफ पुलिस के रख-रखाव पर रोजाना खर्च बढ़ रहा है, दूसरी और वह जनता को सुरक्षा प्रदान करने के अपने बुनियादी धर्म में भी विफल है. हाल में शहर में की घरों में भयानक डकैतियां हुईं, पर पुलिस एक भी शातिर अपराधी को पकड़ नहीं सकी. दूसरी ओर निर्दोष, बुजुर्ग गांधीवादी नारायण दास ग्रोवर को एक बिचौलिए से मिल कर अपमानित करने में पुलिस को एक क्षण नहीं लगा.
भ्रष्ट अफसर : विभिन्न सरकारी महकमों में 10-10 वर्षों से एक ही जगह पर अफसर पदस्थापित हैं. कुछ महीनों पूर्व ‘प्रभात खबर’ ने विभिन्न सरकारी महकमों के ऐसे 75 अफसरों की सूची प्रकाशित की थी, जिनके खिलाफ बिहार सरकार विजीलेंस द्वारा जांच करा रही है. विजीलेंस के अनुसार ही इनमें से अनेक अधिकारी करोड़ों खा चुके हैं. पर इन भ्रष्ट अधिकारियों की सेहत पर रत्ती भर भी फर्क नहीं है.
प्रशासन : पिछले एक वर्ष में (वर्ष 1992) रांची में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा 92 दिन बंद कराया गया. डरा कर-धमका कर. शहर के किसी हिस्से में निकल जाइए, दस बदमाश लोग गाड़ी रोक चंदा वसूलते मिल जायेंगे. राज्यपाल एक सप्ताह पूर्व रांची से टाटा जा रहे थे, तो चंदाखोरों ने उनकी गाड़ी भी रास्ते में रोकने की कोशिश की. दो दिनों पूर्व टाटा-रांची रोड पर, रांची से 30 किलोमीटर दूर दिन दहाड़े सरकारी बस में डकैती हुई. सूखे से पीड़ित इस अंचल में क्या विकास कार्य हुए हैं, यह कोई निष्पक्ष अफसर जांच कर बता सकता है. रांची शहर में लगभग 8-10 उपसमाहर्ता ऐसे हैं, जिन पर विजीलेंस जांच चल रही है, वे यहां भी जम कर लूट-खसोट कर रहे हैं.
चंदाखोर : कोई राजनीतिक दल या उनका युवा संगठन ऐसा नहीं है, जो यहां लोगों को डरा धमका कर चंदा न वसूल रहा हो. कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोरचा, भारतीय जनता पार्टी और सत्तारूढ़ जनता दल, चार सबसे बड़े चंदाखोर दल हैं. जब ये चंदाखोर नेता अपने अभियान पर निकलते हैं, तो पुलिस-प्रशासन इनके सहायक होते हैं. शहर के नामी-गिरामी माफिया गुटों का इन दलों से जीवंत संपर्क है. चंदा देनेवाले बड़े माफिया ठेकेदारों के साथ अफसर-नेता कैसे घूम रहे हैं, यह सार्वजनिक तथ्य है.
आरएमसीएच : एक ओर यह छवि है पुलिस और प्रशासन की, दूसरी ओर आरएमसीएच जैसे जनहित वाले संस्थान आज बंदी के कगार पर पहुंच गये हैं. मामूली दवाएं वहां नहीं हैं. कुव्यवस्था और गंदगी का आलम अलग़
लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अगर जन उपयोगी और जनहित के काम बंद हो जाएं. अफसर बिचौलिए हो जाएं. माफिया गिरोह राजनेताओं के हमसफर बन जाएं. तब क्या स्थिति होगी, क्या यह कल्पना कठिन है?