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व्यवस्था के तीन तथ्य! असल मुजरिम!

हरिवंश सारधा ग्रुप चिट फंड कंपनी प्रकरण का असली मुजरिम कौन है? सुदीप्त सेन या इस देश की व्यवस्था? सुदीप्त सेन तो महज एक मोहरा या पात्र है. असल मुजरिम तो इस देश के शासक हैं. याद करिए, उदारीकरण के तुरंत बाद शेयर बाजार में घोटालों और चिट फंड घपलों की बाढ़ आ गयी. हर्षद […]

हरिवंश

सारधा ग्रुप चिट फंड कंपनी प्रकरण का असली मुजरिम कौन है? सुदीप्त सेन या इस देश की व्यवस्था? सुदीप्त सेन तो महज एक मोहरा या पात्र है. असल मुजरिम तो इस देश के शासक हैं. याद करिए, उदारीकरण के तुरंत बाद शेयर बाजार में घोटालों और चिट फंड घपलों की बाढ़ आ गयी. हर्षद मेहदा प्रकरण, फिर केतन पारीख प्रकरण. उसी दौर में चिट फंड कंपनियों और पारा-बैंकिंग कंपनियों की भी बाढ़ आयी. याद करिए, जेवीजी, हेलियस, कुबेर और न जाने कितनी ही चिट फंड कंपनियों का रातोंरात उदय हुआ. कुछेक ने हेलीकाप्टर से डिपॉजिट मोबलाइजेशन (जमा संग्रह अभियान) शुरू किया. इन्हें बड़े-बड़े नेताओं का संरक्षण था. इनके हेलीकाप्टरों में बड़े-बड़े नेता यात्रा करते थे. इन कंपनियों के पक्ष में अखबारों में बड़े-बड़े एडवरटोरियल (दरअसल, खबर बिकने की शुरुआत यहीं से हुई) छपते थे. तब प्रभात खबर ने सवाल उठाया कि अर्थशास्त्र का वह कौन-सा फार्मूला या चमत्कार है कि तीन वर्ष में धन दोगुना हो जायेगा? यह सरासर ठगी है. प्रभात खबर पर मुकदमे हुए. पर हमने लगातार रपटें छापीं. देशज मान्यता है कि लोभी के गांव में ठग उपवास नहीं रहते. यही हुआ. लाखों लोग तबाह हुए. आत्महत्याएं हुईं. जेवीजी, हेलियस, कुबेर वगैरह के लोगों पर शुरू में कुछ कार्रवाई हुई, फिर कुछ पता नहीं. न धन उगाहनेवाली कंपनियों का और न ठगे गये लोगों का. जमशेदपुर में चंडीगढ़ की एक कंपनी ने 33 हजार निवेशकों को ठगा. वर्ष 2000 में. लगभग सौ करोड़ रुपये. 2007 में गोल्डन फारेस्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने झारखंड में 85 हजार लोगों को ठगा. 250 करोड़ रुपये उगाहे और गायब. झारखंड, बिहार और बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में न जाने कितनी चिट फंड कंपनियां, लोगों को ठगने का काम कर रही हैं. पर यह सिलसिला बंद नहीं हुआ. अब नया प्रकरण सामने है. पूर्वी सिंहभूम के इलाके में सारधा ग्रुप के दो सौ एजेंट थे और लगभग पांच सौ निवेशक. दरअसल, मूल प्रश्न यह है कि 1994 के बाद बार-बार ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति क्यों हो रही है? आज सारधा ग्रुप है. पहले जेवीजी, हेलियस, कुबेर वगैरह थे. फिर कोई चंडीगढ़ की कंपनी थी. फिर कोई गोल्डन फारेस्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गयी. यानी 1994 के बाद से ठगी का यह धंधा लगातार चल रहा है. पात्र बदल रहे हैं. कंपनियों के नाम बदल रहे हैं. लेकिन ठगने का यह धंधा अबाध चल रहा है. पर यह तो सिर्फ और सिर्फ कानून-व्यवस्था से ही रुक सकता है. एक चौकस व्यवस्था ही इस तरह की गतिविधियों पर पाबंदी लगा सकती है. पर यह क्यों नहीं हो रहा? यह काम तो इस देश की सरकार या राज्य सरकारें या राजनीति ही कर सकती है. संसद कर सकती है. विधानमंडल कर सकता है. उन फोरमों पर क्यों ऐसे कानून नहीं बने, जिनके होने से दोबारा कोई चिट फंड कंपनी इस तरह ठगी का काम नहीं कर सकती? लोगों के अरबों लुट जाने के बाद अब केंद्र सरकार की नींद खुली है. कारपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने 73 कंपनियों की जांच के आदेश दिये हैं. बंगाल विधानसभा अब इस विषय पर दो दिन बहस करनेवाली है. पर चाहे केंद्र सरकार हो या संबंधित राज्य सरकार, अब किस चीज का पोस्टमार्टम होगा? पहले ही सख्त कानून बने होते, तो आज यह नहीं होता.
हद तो तब हो गयी, जब ममता बनर्जी ने सारधा ग्रुप द्वारा ठगे गये लोगों के लिए पांच सौ करोड़ के राहत कोष की घोषणा की. वह भी दस फीसदी जनता पर टैक्स लगा कर. जब ऐसी कंपनियां लोगों को ठग रही थीं, तो ममता बनर्जी की सरकार या अन्य संबंधित सरकारें क्या कर रहीं थी? केंद्र सरकार क्यों खामोश रही? अब जो जनता ठगी गयी, उसी पर दोबारा टैक्स लगा कर, उसी से पैसे वसूल कर, उसे ही राहत दी जायेगी. दुनिया की कोई समझदार व्यवस्था ऐसा कदम नहीं उठा सकती. तंबाकू खानेवालों ने क्या अपराध किया है कि उन्हें पुन: कर देकर अपनी जेब खाली करनी होगी. वह भी शासकों की गलती के कारण. नेता-अफसर या शासक, जो इसके असल मुजरिम हैं, वे क्यों नहीं अपनी तनख्वाह-सुविधाओं से इस लूट की भरपाई करते?
दरअसल, माजरा कुछ और है. ऐसी चिट फंड कंपनियों के असल संरक्षक हैं, इस देश की व्यवस्था के बड़े लोग. परदे के पीछे रह कर उन्हें बढ़ानेवाले या पालने-पोसनेवाले. बंगाल में भी बड़े-बड़े नेताओं के नाम आ रहे हैं. एक ताकतवर केंद्रीय मंत्री की पत्नी का नाम भी उछला है. एक मामले में वकील की भूमिका का निर्वाह करने के संबंध में. जेवीजी से लेकर सारधा ग्रुप तक, सारी कंपनियों के पीछे या इस तरह के धंधे में डूबी कंपनियों के असल प्राणदाता, समाज और व्यवस्था के प्रहरी हैं. इन धंधेबाजों की पार्टियों में बड़े-बड़े नेताओं की उपस्थिति देखिए. दरअसल, जब तक यह जाल नहीं टूटेगा, तब तक ठगी का यह धंधा नहीं रुकनेवाला. एक कंपनी जायेगी, दूसरी आयेगी. यह सिलसिला चलता रहेगा.

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