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नीतीश कुमार का सक्सेस फार्मूला

-हरिवंश- लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार और बिहार की ओर देश-विदेश की मीडिया का ध्यान गया. 2009 के लोकसभा चुनावों में मिली सफलता (32 सीटें एनडीए को और उसमें से 22 जदयू को) के बाद नेशनल मीडिया में नीतीश कुमार की चर्चा बढ़ी. पर इन चुनावों में अचानक उन्हें यह सफलता नहीं मिली. साढ़े तीन […]

-हरिवंश-

लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार और बिहार की ओर देश-विदेश की मीडिया का ध्यान गया. 2009 के लोकसभा चुनावों में मिली सफलता (32 सीटें एनडीए को और उसमें से 22 जदयू को) के बाद नेशनल मीडिया में नीतीश कुमार की चर्चा बढ़ी. पर इन चुनावों में अचानक उन्हें यह सफलता नहीं मिली. साढ़े तीन वर्षों पहले नीतीश

कुमार सत्ता में आये. तब बिहार देश का सबसे डिफिकल्ट और अनगवर्नेबल स्टेट था. आज भी बिहार को आगे ले जानासबसे गंभीर प्रशासनिक चुनौती है.15 वर्षों तक लालू प्रसाद और उनकी पत्नी ने बिहार में राज किया. अपनी सत्ता केशुरुआती दिनों में ही लालू प्रसाद बार-बार यह फ्रेज दोहराते थे, सार्वजनिक तौर पर कि राजा के शब्द ही कानून हैं.

उनके कहने का आशय था कि मुख्यमंत्री राज्य का राजा होता है और उसके शब्द कानून. स्थिति यह हुई कि बिहार केसारे इंस्टिट्यूशनस् एक-एक कर बिखरते गये या ध्वस्त होते गये. सारी प्रभा मंडल और सत्ता मुख्यमंत्री के आसपाससिमट कर रह गयी.ऐसी पृष्ठभूमि में नीतीश कुमार सत्ता में आये. उनकी पहली चुनौती थी, स्टेट पावर की पुन: वापसी. कानून का

राज और संविधान का प्रताप स्थापित करना. यह काम उन्होंने चुपचाप शुरू किया. एक साइलेंट वर्कर की तरह. बिहारजैसे सामंती मानस में यह नया प्रयोग था. रामविलास पासवान ने नीतीश कुमार के कामकाज को देख कर टिप्पणी कीकि वह ‘ग्लोरिफाइड क्लर्क’ हैं. नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में खुद 17 – 18 घंटे काम करना शुरू किया. उनकेबारे में एक मशहूर फ्रेज है, ‘सोलह घंटे के मुख्यमंत्री’. उन्होंने एक साफ सुथरा और प्रभावी शासन बनाने की शुरुआतकी. प्रशासन और व्यवस्था की बारीकियों पर ध्यान देनेवाले वह मुख्यमंत्री हैं. वह सचिवालय स्थित अपने कार्यालय

रोज जाने लगे, जबकि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी कभी- कभार मुख्यमंत्री दफ्तर जाते थे. इसी तरह सेक्रेटेरियेट में लोगों को समय से आने और नये मानस से काम करने का माहौल बनाना शुरू किया. हालांकि बिहार के सरकारीकर्मचारी काफी डिफिकल्ट और बात-बात पर हड़ताल पर जानेवाले लोग हैं. पर सरकार उनके अनुचित मांगों के आगेझुकी नहीं. उसने कंप्यूटराइजेशन से लेकर समय पर उपस्थिति सुनिश्चित (इनश्योर)किया. अच्छे और ईमानदारअफसर महत्वपूर्ण पदों पर बैठाये जाने लगे. इसी तरह जिलों में भी सरकारी कार्यालयों को और जीवंत बनाने कीकोशिश हुई. फिर ब्लॉक स्तर तक सरकार की उपस्थिति का एहसास स्वत: लोगों को होने लगा. पहली बार पटना सेलेकर गांव तक राजसत्ता के सिंबल के रूप में सरकार सक्रिय और प्रभावी नजर आने लगी.

इसी तरह पुलिस विभाग को चुस्त दुरूस्त बनाया गया. पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी. क्योंकि बिहारन सिर्फ अशासित राज्य था बल्कि देश में उसकी ख्याति ‘एबडक्सन कैपिटल’ (अपहरण की राजधानी) औरऔरगेनाइजड क्राइम में शीर्ष पर माना जाता था. उसी दौरान बिहार पर कई चर्चित फिल्में भी बनी जिसमें प्रकाश झाकी दो फिल्में ‘अपहरण’ और ‘गंगाजल’ मशहूर रहीं. इसी तरह बिहार के एक्टर मनोज वाजपेयी ने ‘शूल’ फिल्म मेंकाम किया. इन फिल्मों में बिहार की स्थिति की झलक साफ-साफ दिखायी देती है. खुद नीतीश कुमार अपना एकअनुभव बार-बार सुनाते हैं. वह केंद्रीय रेल मंत्री थे. बिहार आये थे. शाम सात बजे एक निजी कार्यक्रम से लौट रहे थे.

पटना शहर में एक मुख्य चौराहे पर उनकी गाड़ी के ठीक आगे पांच-सात लोग खुलेआम रिवाल्वर व हथियार लेकर चलरहे थे. उनकी गाड़ी का ड्राइवर भय से धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था. यह स्थिति थी, बिहार की. इसलिए सत्ता संभालतेही उनका पहला प्रयास था, अपराध पर नियंत्रण. कमोबेश हर दल में अपराधी राजनेताओं, जो डॉन कहे जाते थे,उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति थी. अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. और अपराधी पुलिस पर भारी थे. डॉन,अपराधी राजनेता सरेआम पुलिस को अपमानित करते थे. एसपी भी जान बचाकर भागते थे. 2003 और 2004(राबड़ी राज) में कुल 10500 और 9867 अपराधी पकड़े गये. नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली, तो वर्ष 2007 में1,37,946 और 2008 में 1,36,932 अपराधी पकड़े गये. नीतीश सरकार ने हाई कोर्ट से आदेश प्राप्त करस्पेशल कोर्ट का गठन कराया ताकि ‘स्पीडी ट्रायल’ हो सके. वर्ष 2006 से 2008 के बीच स्पीडी ट्रायल से लगभग 30 हजार अपराधियों को सजा हुई है. स्पीडी ट्रायल की शुरूआत जनवरी 2006 से हुई. तब से अब तक (जनवरी 2006 से मई 2009 तक) कुल 34,416 अपराधियों को सजा हो चुकी है. लगभग 6000 अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा मिली है. 2006 के बाद, लगभग 90 अपराधियों को मौत की सजा मिली है. गृह सचिवअफजल अमानुल्लाह के अनुसार, इस वर्ष के आरंभिक चार महीनों में साढ़े चार हजार अपराधियों को सजा मिली,जिनमें से पांच सौ लोगों को आजीवन कारावास की सजा मिली है.

यह अकल्पनीय और अप्रत्यशित सरकारी कदम था. लोगों को यकीन नहीं था कि ऐसा संभव है. शायद देश केकिसी हिस्से में अपराध के खिलाफ इस तरह का सुनियोजित अभियान नहीं चला हो. पर तब देश की मीडिया या किसीने इसे गंभीरता से गौर नहीं किया. गंभीर अपराध के आरोप से घिरे बिहार के पांच बड़े अपराधी राजनेता सजा पा चुकेहैं. मोहम्मद शहाबुद्दीन, पप्पू यादव, आनंद मोहन, सूरजभान और मुन्ना शुक्ला. इन नामों का क्या खौफ,आतंक और असरथा, यह बिहार के लोग ही जानते हैं. राजनीतिक दलों में इन्हें महत्व देने की होड़ थी. अपराधी बिहार के युवाओं केनायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत बन गये थे. आज बिहारी समाज देख रहा है कि अपराधी होने की क्या कीमत है.अपराध में नियंत्रण का यह काम नीतीश कुमार और उनकी सरकार ने चुपचाप किया. सिस्टम और संस्थाओंको जीवित कर. उनके दल के विधायक और सांसद भी कानून के इस पंजे से नहीं बचे. इससे नीतीश कुमार के प्रतिलोगों का भरोसा बढ़ा. नीतीश कुमार की पार्टी के ही एक चर्चित विधायक ने पटना के सबसे बेहतरीन होटल में शराबपीकर पैसे देने से इनकार कर दिया . होटल के लोगों ने मुख्यमंत्री के यहां शिकायत की. उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने काआदेश मिला. इस तरह नीतीश कुमार ने अपना निजी इकबाल बनाया. न उनके घर के किसी व्यक्ति का प्रशासन में

हस्तक्षेप है. न उनके परिवार या रिश्तेदारी का कोई सदस्य उनके आसपास होता है. उन्होंने एक क्लीन औरइफिसीयेंट एडमिस्ट्रेशन की बुनियाद डाली है. कामकाज में चीफ मिनिस्टर आफिस का अप्रोच, कारपोरेट स्टाइल काहै.अपराधियों के खिलाफ अभियान का असर एबडक्सन पर पड़ा और एबडक्सन की संख्या स्वत: घटने लगी.
फिरौती के. लिए अपहरण का गिरता ग्राफ.

वर्ष 2004 – 411

वर्ष 2005 – 251

वर्ष 2006 – 194

वर्ष 2007 – 89

वर्ष 2008 – 66

वर्ष 2009 (मार्च तक.) – 19

जिस बिहार में यह स्थिति हो गयी थी कि लोग बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर रहे थे. महिलाएं सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जातीं थीं. बच्चों के अपहरण पर स्कूलों के बच्चे, जूलूस निकाल कर सुरक्षा की मांग कर रहे थे.

उस बिहार के लोगों ने अपहरण में कमी से राहत महसूस की. भय का माहौल घटने लगा. जिस पटना शहर में शामहोते ही लोग घरों तक सिमट जाते थे, आज हालात बदल गये हैं. अब महिलाएं भी रात 11 बजे तक रेस्टूरेंट याबाजारों में बड़ी संख्या में मौजूद दिखाई देती हैं. इसका असर पड़ा कि पटना में जमीन के भाव और फ्लैटों के भावलगातार बढ़ने लगे. बिहार से लोग जमीन और घरबार बेचकर पलायन कर रहे थे. पटना, देवघर और भागलपुरवगैरह के इलाके में बड़े पैमाने पर जबरन बंगालियों के घर कब्जा किये गये. बिहार के कई हिस्सों में डरा-सता करजमीन जायदाद पर कब्जा का अभियान चला, तब बिहार से लोग यूं ही घरबार छोड़कर बाहर जाने लगे. अबहालात भिन्न है. इस मंदी में देश के लगभग हर हिस्से में रियल स्टेट का भाव बड़े पैमाने पर घटा. इकोनामिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में खासतौर से पटना में रियल स्टेट का भाव लगातार बढ़ रहा है.

कानून व्यवस्था ठीक होने का असर चुनावों में साफ दिखा. बिहार में पहले के चुनावों में हुई हिंसा के आंकड़ेदेखें और इन चुनावों में हुई हिंसा के आंकड़े.

लोकसभा चुनावों में हुई हिंसा

1989 – 40मौत 150 घायल

1999 – 76 मौत 147 घायल

2004 – 15 मौत 78 घायल

2009 – 7 मौत 17 घायल

इस चुनाव का उल्लेखनीय पहलू है कि चुनाव होगार्डस् के जवानों ने कराये. होगार्डस् यानी हाफ पैंट पहनकर लाठी भांजने वाले. कम प्रशिक्षित पुलिस बल. जहां अत्यंत आधुनिक और सुसज्जित बल चुनाव में हिंसा नहींरोक पाते थे, वहां महज एक निहत्था होमगार्ड जवान के खड़ा होने से शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न हुए. कितना बदलगया है बिहार. आज से पांच वर्ष पहले, सपने में भी कोई इस स्थिति की कल्पना नहीं कर सकता था. ऐसा क्योंहुआ? इस बार भी जो सात मौतें हुईं, उनमें से कुछ नक्सली हिंसा का परिणाम है. नक्सली हिंसा भिन्न प्रवृति औरप्रकृति का है.

बड़े पैमाने पर अपराधियों की गिरफ्तारी और स्पीडी ट्रायल में हुई सजा ने राजसत्ता का प्रताप (रूल आफ लॉ एंड रूल आफ स्टेट पावर) पुन: स्थापित कर दिया. यह एक सिस्टमेटिक चेंज है.इस एक चेंज ने नीतीश कुमार को इस कास्ट रिडेन स्टेट में असाधारण नायक बना दिया. कास्ट केआंकड़ों और जातिगत समीकरणों के अनुसार, नीतीश कुमार को लोकसभा चुनावों में यह सफलता नहीं मिलनीचाहिए थी. अगर जातिगत समीकरण पर चुनाव हुए होते, तो उनके दल की स्थिति रामविलास पासवान और लालूप्रसाद की हुई होती. पर अपराध पर नियंत्रण के मुद्दे ने उन्हें यह अद्भुत ताकत और जनसमर्थन दिया है. इन चुनावों

में पूरे बिहार में लोगों ने जाति और धर्म से ऊपर उठ कर एक ही नारा दिया, अपराधियों से मिली मुक्ति और आजादीको हम पुन: अपराधियों के हाथ गिरवी रखने को तैयार नहीं हैं. नीतीश कुमार अपनी हर चुनावी सभा में सिर्फ यहीकहा करते थे, आपको साढ़े तीन वर्षों का यह राज पसंद है या पंद्रह वर्षों का पुराना राज? वह अपराध नियंत्रण याकिसी अपराधी का नाम तक नहीं लेते. अत्यंत शालीनता और विनम्रता से अपनी उपलब्धि पेश की और उन्हें यहजनसमर्थन मिला.

पुलिस में ईमानदार और सक्षम लोगों को उन्होंने ऊपर लाना शुरू किया. इसी क्रम में उन्होंने डीएन गौतमको डीजीपी बनाया, जो अपनी ईमानदारी और निष्ठा के कारण लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र दोनों के शासन काल में प्रताड़ित और उपेक्षित रहे.

नीतीश कुमार ने अपराध नियंत्रण के साथ-साथ पुलिस फोर्स को आधुनिक और पीपुल फ्रेंडली बनाने कीपहल भी की है. अनेक जरूरी इंस्टिट्यूशनस् बनाये जा रहे हैं. पुलिस के प्रशिक्षण पर खासतौर से जोर दिया जा रहाहै. पुलिस की नियुक्ति को पारदर्शी बनाने की पहल हुई. दो वर्ष पहले 11000 सिपाहियों और 2000 सबइंस्पेक्टरों की भर्ती की वीडियो रिकार्डिंग हुई, जिसमें कहीं घूस का कोई आरोप नहीं लगा. बिहार के लिए यह बड़ीघटना थी. यह इंस्टिट्यूशनल चेंज की कोशिश सरकार ने की है.

भ्रष्टाचार सबसे गंभीर चुनौती है, यह नीतीश कुमार बार-बार कहते रहे हैं. इसलिए सत्ता में आते हीविजिलेंस विभाग को बहुत सक्रिय किया. आइएएस से लेकर अनेक बड़े अफसर गिरफ्तार हुए.भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियानवर्ष 1996 से 2005 के बीच 45 घूसखोर सरकारी कर्मचारी गिरफ्तार हुएवर्ष 2006 में 60 ट्रैप केस में 68 गिरफ्तारी़वर्ष 2007 में 108 ट्रैप केस में 126 गिरफ्तारी़वर्ष 2008 में 185 ट्रैप केस में 224 गिरफ्तारी़वर्ष 2009 में 39 ट्रैप केस में 48 (तीन जून तक.)

अब नीतीश सरकार यह कानून बनाने की तैयारी में है कि भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति कैसे सरकारी कब्जे मेंआये. एक तरफ कानून का राज वापस स्थापित करने, प्रशासन की कार्यशैली और संस्कृति बदलने की कोशिशहुई, तो दूसरी ओर बिहार के इंफ्रास्ट्रकचर को ठीक करने का अभियान चला. नयी सरकार ने सड़क मरम्मत औरनिर्माण में 2556 करोड़ रूपये खर्च किये हैं.

वर्ष 2006-07 – 334.54 करोड़ रुपये खर्च कर 705 कि.मी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत .वर्ष 2007-08 – 308.23 करोड़ रुपये खर्च कर 685 किमी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत .वर्ष 2008-09 – 266 करोड़ रुपये खर्च कर 580 किमी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत .

पथ निर्माण विभाग में भी नीतीश कुमार ने अत्यंत ईमानदार अफसर को सचिव बनाया. पहले डर से इंजीनियर और सड़क ठेकेदार काम नहीं कराते थे, क्योंकि उन्हें अपहरण का खौफ था. भय से बड़े-बड़े टेंडर कोई नहीं लेता था, क्योंकि अपराधी राजनेता या सांसद के लोग ही ये ठेके अपनी गिरफ्त में रखते थे. 2003-04 में 120 सिविल इंजीनियर और रोड कांट्रेक्टर अपहृत हुए थे. इसके बाद से एक इंजीनियर या रोड कांट्रेक्टर के

अपहरण की घटना नहीं हुई है. इससे सड़कों के निर्माण में तेजी आयी. सड़क निर्माण से गया वगैरह जैसे कईनक्सली इलाकों में बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गयीं हैं. इससे नक्सली आंदोलन पर प्रतिकूल असर पड़ा है. वर्ष 2004 में जिस नेशनल हाइवे पर 120 किमी की यात्रा करने में छह घंटे लगते थे. आज 2009 में उसी समय में लगभग साढ़े तीन सौ किमी की यात्रा संभव है. इस तरह इस सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में भी कई चीजों में पहल की. गन्ना मिल बिहार का पुराना कारोबार रहा है. उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश सरकार ने की है. परउसमें अभी आशातीत सफलता नहीं मिली है क्योंकि उसके अनेक प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास लंबित है.

सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार की सरकार ने पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (पीडीएस ) को नये सिरेसे ठीक करने की कोशिश की. इसके लिए कई प्रशासनिक कदम उठाये ताकि भ्रष्टाचार रोक सके. पर इस कार्यक्रममें अनेक गंभीर खामियां मिली और अभी तक यह दुरूस्त नहीं हो पाया है. इसकी मूल जड़ में है कि लगभग 75लाख लोग ही गरीबी रेखा से नीचे हैं, ऐसा केंद्र सरकार मानती है. पर नीतीश कुमार का कहना है कि उन्होंने इसकाप्रामाणिक तथ्य एकत्र कराया है. गरीबों की यह संख्या डेढ़ करोड़ है. जब तक केंद्र सरकार से डेढ़ करोड़ लोगों कोअनाज नहीं मिलता, तब तक यह मामला नहीं सुलझनेवाला. अब नीतीश कुमार बार-बार यह बात कह रहे हैं किसही गरीबों की संख्या आइडेंटीफाई कर उनको सरकारें सीधे राहत उनके बैंक एकाउंट में डाल दे. कैश दे, काइंडनहीं. उनका सुझाव है कि चुनाव आयोग की तरह एक ऑटोनोस बॅाडी बनायी जाये. वह सब्सिडी में खर्च हो रहेपैसों को सीधे गरीबों तक पहुंचाये ताकि बिचौलियों को रोका जा सके. यह मांग लेकर वह लगातार केंद्र के पास जाते

रहे हैं.स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी सरकार ने कारगर कदम उठाये. सरकारी अस्पतालों को ठीक किया. जहां पहले मवेशी चरते थे, घासें उग आयीं थी, उन अस्पतालों को ठीक किया गया. अब चिकित्सा केंद्रों में पर्याप्त सुधार साफदिखाई देता है. वर्ष 2006 के पहले प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों में औसतन 39 मरीज आते थे. अब प्रतिमाह 4500मरीज इलाज के लिए आते हैं. दूर गांव-देहात के लोगों के लिए आसानी से एंबुलेंस उपलब्ध होता है. फोन करें, एंबुलेंस आकर मरीज को अस्पताल तक ले जायेगी. उसके पैसे का भुगतान करना होगा, जो सामान्य है.

इसी तरह संस्थागत प्रसव (इंस्टिट्यशनल डिलेवरी) की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. 2006 – 07 में25 हजार संस्थागत प्रसव की संख्या थी. 2007-08 में यह 8.34 लाख हो गयी और 2008-09 में 11 लाख.स्कूलों के इंफ्रास्ट्रकचर ठीक करने के लिए सीधे पैसे दिये गये. प्राइमरी स्कूलों में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की भरती हुईहै. गरीब लड़कियों को साइकिल देने का बड़े पैमाने पर अभियान चला. इससे स्कूल जानेवालों की संख्या बढ़ी है.बिहार से बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा या मेडिकल-इंजीनियरिंग या आइटी की पढ़ाई के लिए बच्चे बाहर जातेहैं. अनुमान है कि साल में इस तरह बिहार से न्यूनतम पांच-सात सौ करोड़ रूपये बाहर जाते हैं, कैपिटेशन फीस,शिक्षा खर्च वगैरह के रूप में. नीतीश सरकार ने सत्ता संभालते ही तुरंत प्रबंधन, इंजीनियरिंग, लॉ वगैरह के संस्थानोंको खोलने का अभियान चलाया है. सत्ता संभालते ही उन्होंने दो महीने के अंदर पटना में एक मशहूर इंजीनियरिंगकॉलेज खुलवाया. इस तरह लगभग 24 बड़े संस्थान बिहार में खुले हैं.

जो नये संस्थान खुले

1.तीन नये सरकारी मेडिकल कालेज – पावापुरी, मधेपुरा और बेतिया, आइजीआइएमएस .

2. निजी क्षेत्र में नया मेडिकल कॉलेज – सासाराम .

3. चार नये इंजीनियरिंग कालेज – सीतामढ़ी, गया, चंडी व मोतिहारी़

4. नौ आइआइटी़

5. आइआइटी पटना़

6. निफ्ट का सेंटर (पटना में)

7. चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान

8. चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय

9. बीआइटी की पटना शाखा

10 उद्यान महाविद्यालय

इसके अलावा इस सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुन: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की पहल की है. उल्लेखनीय है कि नालंदा विश्वविद्यालय विश्व इतिहास का नाम रहा है. इस अभियान से पूर्व राष्ट्रपति डॉ.कलाम, डॉ.अमर्त्य सेन, लार्ड मेघनाथ देसाई वगैरह जुड़े हुए हैं. सिंगापुर, जापान के लोग भी इससे जुड़े हैं. हाल हीमें अमर्त्य सेन बिहार आये. उनके साथ लार्ड मेघनाथ देसाई, सिंगापुर के विदेश मंत्री वगैरह भी थे. नालंदा जाकरउनलोगों ने विश्वविद्यालय की जमीन देखी. यह काम प्रगति पर है. इस तरह चार बड़े संस्थानों की योजना इससरकार ने बनायी है जिनपर काम चल रहा है.

जो प्रस्तावित हैं

1. नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय

2. आर्यभट्ट˜ विश्वविद्यालय

3. दो पारा मेडिकल कॉलेज

4. दंत चिकित्सा महाविद्यालय

यह सब करते हए नीतीश कुमार ने जनता से सीधा संपर्क बनाये रखा है. वह वर्षों से जनता दरबार का आयोजन करते रहे हैं. जिसमें पूरे राज्य के लोग आकर उन्हें अपनी समस्या बताते हैं. आवेदन देते हैं. और उनपर कार्रवाई होती है. तीन महीने पहले विकास यात्रा उन्होंने आरंभ की. गांव-गांव घूमना और वहीं रहना. इस यात्रा में उन्हें जो अनुभव हुए, उसे साफ-साफ कहा भी. माना कि भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती है, यह भी कहा कि उनकीसरकार इसके खिलाफ और तेज और कठोर अभियान चलायेगी.

नीतीश सरकार का दुर्भाग्य यह है कि उसे हर साल अकल्पनीय प्राकृतिक विपदा का सामना करना पड़ता है. इस बार कोसी की बाढ़ ने तो प्रलय की स्थिति पैदा कर दी. शायद ही देश के किसी हिस्सें में ऐसी प्राकृतिक विपदा हाल के वर्षों में देखने को मिली है. इस प्राकृतिक विपदा का मैनेजमेंट जिस तरह से इस सरकार ने किया,वह अद्भुत था. नीतीश कुमार ने खुद यह काम अपने हाथ में ले रखा था. वह रोज इन इलाकों में जाते थे. लोगों केलिए ऐसा मैनेजमेंट अकल्पित था. चुनाव में इसका प्रमाण मिला. इस इलाके से सभी संसदीय सीटों पर (5 सीटें)एनडीए को विजय मिली और यह जीत भी भारी अंतर से, मामूली अंतर से नहीं. अगर बिहार में जाति के आधार परचुनाव होते, तो इस इलाके की सभी सीटें लालू प्रसाद जी की होतीं. यह मंडल आयोग के जनक बी पी मंडल का

इलाका है. लालू प्रसाद का गढ़ रहा है. कोसी के प्रलयंकारी बाढ़ से पांच जिलों का भूगोल प्रभावित हो गया है. जिंदगीउजड़ गयी थी. पर इस बीच भी व्यवस्था बेहतर रहने की वजह से हाई स्कूलों की परीक्षा में कोसी के छात्रों नेउल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है.बिहार में सत्ता में आते ही नीतीश कुमार ने डिजास्टर मैनेजमेंट की बात शुरू की.संस्था स्तर पर बिहार में कभी इस पर चर्चा नहीं हुई. हालांकि बिहार बाढ़ से हर वर्ष अभिशप्त रहने वाला राज्य है.यहां भयावह भूकंप भी आते रहे हैं. इस तरह नीतीश कुमार ने बाढ़ और भूकंप या नेशनल केलामिटी को लेकरसंस्थागत स्तर पर सिस्टम बनाने की पहल की. वह बार-बार बिहार की बाढ़ को लेकर केंद्र के पास गये क्योंकिबिहार की बाढ़ का स्रोत नेपाल से है. इस भीषण बाढ़ में वह सर्वदलीय समिति लेकर प्रधान मंत्री से मिले. पर इसदिशा में कुछ हो नहीं पाया है. कोसी की बाढ़ में लालू प्रसाद भी बहुत सक्रिय रहे. इस बाढ़ को लेकर भी राजनीति

हुई. उन्होंने बार-बार कहा केंद्र से सारी चीजें हम राहत के तौर पर भिजवा रहे हैं. चुनाव हारने के बाद लालू प्रसादने यह कहा भी है कि केंद्र से राहत और सेना मैंने भिजवाई पर मुझे वोट नहीं मिले. दरअसल पहले हर बार की राहतमें बड़े पैमाने पर लूट होती थी. राहत सामग्री ब्लैक मार्केट में जाती थी. उजड़े लोगों के बीच सुनियोजित ढ़ंग सेव्यवस्था नहीं होती थी. लाखों लोगों के लिए एक ही किचेन होता था. महामारी फैलती थी. पढ़ायी की व्यवस्था नहींहोती थी. इस बार हर चीज इतनी तरतीब और व्यवस्थित ढ़ंग से हई कि लोगों को यकीन नहीं हुआ कि ऐसा भीसंभव है.

नीतीश कुमार ने अनेक एक्सपर्ट, अर्थशास्त्रियों और प्रमुख लोगों से बात कर, पहल कराकर एकदस्तावेज तैयार कराया है कि बिहार को आगे ले जाने के लिए केंद्र से क्यों विशेष दर्जा चाहिए? सत्ता में आने के दिनसे ही वह यह मांग उठाते रहे हैं. उन्होंने तब वित्तमंत्री को पत्र लिखा, प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा. यह लोकसभाचुनाव खत्म होने के बाद नीतीश कुमार ने यह मुकम्मल दस्तावेज पटना में जारी किया कि क्यों बिहार को विशेषदर्जा चाहिए? लार्ड मेघनाथ देसाई ने इस दस्तावेज का विमोचन किया. उन्होंने नीतीश कुमार के इस कदम औरमांग का समर्थन किया. चुनाव परिणाम के ठीक एक दिन पहले यह दस्तावेज जारी हुआ. नीतीश कुमार ने साफकहा, जो हमें विशेष राज्य का दर्जा देगा,केंद्र में हम उसको समर्थन देंगे. एक दिन बाद चुनाव परिणाम आने थे.कांग्रेस ने तुरंत अॅाफर दिया कि हम बिहार को विशेष दर्जा दिलायेंगे. इसके पहले शीला दीक्षित और कांग्रेस के कई

नेता सरकार बनाने में नीतीश कुमार से हो रही बातचीत का हवाला दे रहे थे. राहुल गांधी, नीतीश कुमार के काम कीप्रशंसा कर चुके थे. पर नीतीश कुमार ने लगातार इन बातों का खंडन किया था. अब वह बिहार का विशेष दर्जा देनेकी मांग को लेकर जनता के बीच घूम रहे हैं. इससे पहले बिहार को लेकर इस तरह की मांग कभी नहीं हुई. हुई तोजुबानों तक सीमित थीं. इसके लिए कोई प्रामाणिक अध्ययन, दस्तावेज या शोध नहीं था कि बिहार को क्यों विशेषदर्जा चाहिए? अब यह दस्तावेज तैयार है. इस तरह नीतीश कुमार का भावी पॉलिटिकल एजेंडा भी. सार संक्षेप हैकि वह बिहार में जाति की नहीं, बिहारी होने की राजनीति कर रहे हैं.

इन सब अलग मोचा पर काम करते हुए, नीतीश सरकार का मास्टर स्ट्रोक था, नया सामाजिक संतुलन (सोशल इंजीनियरिंग)बनाना. नीतीश सरकार ने लगभग 1.02 करोड़ अतिपिछड़ों (एक्सट्रीमली बैकवर्ड क्लासेस)की पहचान की है. उनका आयेाग बनाया है. इसी तरह पसमादा मुस्लिम, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं, उन्हें अनेकतरह की मदद और राहत देने का काम किया. स्थानीय निकाय चुनावों में 50 फीसदी अतिपिछड़ों को आरक्षणदिया. पंचायतों में 50 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की. बिहार इस तरह करने वाला देश का पहलाराज्य है. 20 फीसदी सीटें अतिपिछड़ों और सबसे गरीब मुसहरों के लिए आरक्षित की. मुस्लिम दरगाहों की बाउंड्रीबनाकर उनकी जमीन सुरक्षित रखने के लिए 700 करोड़ रूपये दिये. जो मुस्लिम लड़के या लड़कियां फर्स्टडिविजन में हाई स्कूल पास करते हैं, उन्हें एकमुश्त दस हजार रूपये की स्कालरशिप, गांव की स्कूल जानेवाली

लड़कियों को मुफ्त साइकिल, किशोर लड़कियों को अच्छा स्कूलड्रेस, बैग खरीदने के लिए 700 रूपये प्रतिवर्ष.इस तरह नीतीश कुमार ने राज्य में एक नया सामाजिक समीकरण ही गढ़ दिया है. अब वह मास के नेता बन गये हैं,जिसमें हर जाति और धर्म के लोग साथ हैं. उनका एक ही नारा है, नया बिहार बनाना है. उनकी पर्सनल क्रेडिबिलिटी भाई-भतीजावाद या परिवारवाद से बिल्कुल ऊपर होना, उन्हें अपार जनसमर्थन मिलने का एक प्रमुख कारण है.

चुनाव में पराजय के बाद लालू प्रसाद ने संकल्प लिया है कि वह बिहार में रहेंगे. रामविलास पासवान भी बिहार में ही घूम रहे हैं. लगभग डेढ़ वर्ष बाद विधानसभा चुनाव हैं. लालू प्रसाद और रामविलास पासवान मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. अब देखा जाना है कि बिहार की यह राजनीति नीतीश कुमार द्वारा तय एजेंडे पर होती है या चलती है या लालू प्रसाद और रामविलास पासवान कोई नया राजनीतिक एजेंडा ढ़ूंढ़ते हैं?

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