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सुचारु चले संसद

देश की जनता संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण इस उम्मीद में देखती है कि वहां उसके प्रतिनिधि और नेता उसकी समस्याओं के बारे में सवाल पूछ रहे होंगे, उसके जीवन में बेहतरी लानेवाले मुद्दे उठा रहे होंगे. लेकिन, बीते कुछ वर्षों से उसकी इस उम्मीद को अकसर निराशा ही हाथ लगी है. सदन की […]

देश की जनता संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण इस उम्मीद में देखती है कि वहां उसके प्रतिनिधि और नेता उसकी समस्याओं के बारे में सवाल पूछ रहे होंगे, उसके जीवन में बेहतरी लानेवाले मुद्दे उठा रहे होंगे. लेकिन, बीते कुछ वर्षों से उसकी इस उम्मीद को अकसर निराशा ही हाथ लगी है. सदन की कार्यवाही के दौरान शोरगुल में जनहित के सवाल लगातार पीछे छूट रहे हैं. इन वर्षों में चुनाव के बाद पक्ष और विपक्ष में चेहरे भले बदल गये हों, पर संसद में हंगामा एक परंपरा सी बनती जा रही है.

इस साल संसद का मॉनसून सत्र तो पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ चुका है. ऐसे में यह सवाल सबके जेहन में है कि अगले हफ्ते से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पिछले सत्र की गलतियों से बचा जायेगा या नहीं? इस सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सहित कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराना सरकार के एजेंडे में है. वित्त मंत्री अरुण जेटली कई बार कह चुके हैं कि जीएसटी विधेयक आर्थिक सुधार की दिशा में सबसे बड़ा कदम है. हालांकि, जेटली अभी एक पारिवारिक आयोजन की तैयारियों में व्यस्त हैं. इसी सिलसिले में वे राहुल गांधी से भी मिले हैं.

उधर, अकेले श्रम मंत्रालय इस सत्र में छह विधेयक पेश करने की तैयारी में है. इनमें बाेनस भुगतान विधेयक, बाल श्रम (संशोधन) विधेयक, लघु कारखाना (संशोधन) विधेयक और कर्मचारी भविष्य निधि (संशोधन) जैसे विधेयक शामिल हैं. श्रम एवं रोजगार मंत्री का कहना है कि ये विधेयक एनडीए सरकार की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ पहल के तहत सुधारों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने के प्रयासों का हिस्सा हैं. लेकिन, सरकार की जिम्मेवारी सिर्फ विधेयक तैयार करने की नहीं, बल्कि विपक्ष को भरोसे में लेकर सदन को सुचारु रूप से चलाने की भी है.

इसके प्रयास दिखावटी नहीं होने चाहिए. उधर, विपक्ष की जिम्मेवारी है कि देशहित के विधेयकों पर सकारात्मक रुख अपनाये, साथ ही देश के समक्ष मौजूद सवालों को भी संसद में उठाये. अपनी इस जिम्मेवारी के तहत कई विपक्षी दलों ने एकजुट होकर असहिष्णुता पर बहस का नोटिस पहले ही दे दिया है. रक्षा और मीडिया क्षेत्र में एफडीआइ के नये नियमों को लेकर भी विपक्ष की ओर से विरोध की तैयारी हो रही है. ऐसे में जरूरी है कि दोनों पक्ष एक साथ मिल-बैठ कर एक-दूसरे की बातों और चिंताओं पर खुले मन से गौर करें, जिससे संसदीय कार्यवाही को सुचारु के साथ-साथ अधिक रचनात्मक बनाया जा सके. उम्मीद करनी चाहिए कि संसद सत्र से पहले पारंपरिक रूप से होनेवाली सर्वदलीय बैठक से इसके लिए शुभ संकेत निकलेंगे.

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