भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य कई अनचाहे कारणों से टेंशन लेकर बैठ जाता है और इसी के चंगुल में फंसा रहता है. हर छोटी बात पर टेंशन लेना, स्ट्रेस हो जाना भविष्य में कई बिमारियों का कारण भी बन जाती है.
टेंशन, तनाव, अवसाद और चिंताएं, नाम चाहे जो हो लेकिन काम सिर्फ एक ही है, मन को विचलित करना और बिमारियों को दवात देना. टेंशन से न सिर्फ सेहत पर अप्रत्यक्ष बल्कि प्रत्यक्ष और गंभीर प्रभाव भी पड़ते हैं. इसका ताज़ा उदहारण हालिया हुए शोध में सामने आया है.
एक ताजा शोध के अनुसार, टेंशन के प्रति ज्यादा संवेदनशील या आशंका से घिरे रहने वालों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण अस्थमा के लक्षण बढ़ जाते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि टेंशन कम करने के लिए दिए जाने वाला इलाज अस्थमा के मरीजों के फेफड़ों की बीमारी से निपटने में सहायता कर सकता है.
इस अध्ययन अनुसार, जब व्यक्ति को टेंशन के साथ अस्थमा की बीमारी भी होती है तो स्थिति अधिक जटिल और खतरनाक हो जाती है. ऐसे में मरीजों को अस्थमा पर नियंत्रण करने में ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है.
अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कॉलेज के 101 ऐसे बच्चों को शोध में शामिल किया जिन्हें अस्थमा की शिकायत थी. शोध के दौरान प्रतिकूल परिस्थिति में ज्यादा संवेदनशील या सशंकित रहने वालों में अन्य की तुलना में अस्थमा के लक्षण अधिक गंभीर पाए गए.