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संत जलाराम बापा की जयंती की तैयारी

संत जलाराम बापा की जयंती की तैयारीजलाराम कुटी, गुजराती सनातन समाज तथा सूरत गुजराती समाज में 18 को होंगे भव्य आयोजन (फ्लैग)संवाददाता. जमशेदपुर18 नवंबर को संत जलाराम बापा की 216 वीं जयंती मनायी जायेगी. इस अवसर पर बिष्टुपुर स्थित जलाराम कुटी, गुजराती सनातन समाज तथा सूरत गुजराती समाज में भव्य आयोजन किये जायेंगे. जलाराम कुटी […]

संत जलाराम बापा की जयंती की तैयारीजलाराम कुटी, गुजराती सनातन समाज तथा सूरत गुजराती समाज में 18 को होंगे भव्य आयोजन (फ्लैग)संवाददाता. जमशेदपुर18 नवंबर को संत जलाराम बापा की 216 वीं जयंती मनायी जायेगी. इस अवसर पर बिष्टुपुर स्थित जलाराम कुटी, गुजराती सनातन समाज तथा सूरत गुजराती समाज में भव्य आयोजन किये जायेंगे. जलाराम कुटी में श्री जलाराम सत्संग मंडल की ओर से दिनभर समारोह चलेगा. शुरुआत सुबह 6:30 बजे प्रभात फेरी (नगर संकीर्तन) से होगी. दिन के 11:30 बजे से गुजराती सनातन समाज में नारायण भोजन का आयोजन किया जायेगा. इसके बाद (दोपहर 12:00 बजे से 2:30 बजे तक) महाप्रसाद वितरण होगा, जिसमें खिचड़ी, कढ़ी एवं शाक का प्रसाद खिलाया जायेगा. यह आयोजन गुजराती सनातन समाज परिसर में होगा. शाम सात बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसमें भजन, रास-गरबा, झांकी आदि की प्रस्तुति होगी. रात्रि 9:30 बजे पुरस्कार वितरण आरंभ होगा. इसी तरह बिष्टुपुर के सूरत गुजराती समाज स्थित जलाराम मंदिर में भी भव्य समारोह का आयोजन किया जायेगा. सूरत गुजराती समाज बिष्टुपुर स्थित सूरत गुजराती समाज में 18 नवंबर को सुबह 7 बजे प्रभात फेरी मंदिर से निकलेगी इसके बाद श्री जालाराम बापा की पूजा, अर्चना होगी. पूर्वाह्न 11:30 बजे महाप्रसाद का वितरण किया जायेगा. अपराह्न 3:30 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा. कौन थे संत जलाराम बापा जलाराम बापा का जन्म सन् 1799 में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और मां का नाम राजबाई था. बापा की मां धार्मिक महिला थी, जो साधु-संतों की सेवा करती थी. उनकी सेवा से प्रसन्न होकर संत रघुवीर दास जी ने आशीर्वाद दिया कि उनका दूसरा प़ुत्र जलाराम ईश्वर तथा साधु-भक्ति और सेवा की मिसाल बनेगा. 16 साल की उम्र में श्री जलाराम का विवाह वीरबाई से हुआ.18 साल की उम्र में जलाराम बापा ने फतेहपुर के संत श्री भोजलराम को अपना गुरु स्वीकार किया. गुरु ने गुरुमाला और श्री राम नाम का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के लिए कहा, तब जलाराम बापा ने सदाव्रत नाम की भोजनशाला बनायी जहां 24 घंटे साधु-संत तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया जाता था. सन् 1934 में भयंकर अकाल के समय मां वीरबाई एवं बापा ने 24 घंटे लोगों को खिला-पिलाकर लोगों की सेवा की. सन् 1935 में मां ने एवं सन् 1937 में बापा ने प्रार्थना करते हुए अपना शरीर त्यागा.

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