कांच ही बांस के बहंगिया नवादा (नगर). कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाये…, केरवा जे फरेला घवद से सुगा देलहे हुठियाय, मारवौ रे सुगवा धनुष से सुगवा गिरे मुरछाई…., जल्दी-जल्दी उग हो सुरुज देव, भइल अरघ के बेर…., आदित्य होई न सहाय, देवी होई न सहाय…. जैसे छठ माता के गीतों से पूरा वातावरण गूंज रहा है. छठ में शामिल होने के लिए घरों में सभी परिवार के सदस्य जुटे हैं. वैसे परिवार के सदस्य जो बाहर रहकर अपने रोजी रोटी कमाते है वह भी छठ के समय अपने घर आये हैं. परिवारों व समाज को जोड़ने का सबसे बड़ा उदाहरण छठ पर्व देखने को मिल रहा है. लोक आस्था के इस महापर्व को सभी के साथ मिल कर मनाने का अपना ही मजा है. छठ गीत विभिन्न माध्यमों से गली मुहल्लों में गूंज रही है. छठ के पवित्र गीतों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो रहा है. घरों में छठव्रती के साथ मिलकर अन्य महिलाएं प्रसाद बनाते समय व अन्य मौकों पर छठ गीत गुनगुना रही है. छठ गीतों का अपना ही महत्व है.
कांच ही बांस के बहंगिया
कांच ही बांस के बहंगिया नवादा (नगर). कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाये…, केरवा जे फरेला घवद से सुगा देलहे हुठियाय, मारवौ रे सुगवा धनुष से सुगवा गिरे मुरछाई…., जल्दी-जल्दी उग हो सुरुज देव, भइल अरघ के बेर…., आदित्य होई न सहाय, देवी होई न सहाय…. जैसे छठ माता के गीतों से पूरा […]
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