बाजारवाद में खत्म हो गए पारिवारिक मूल्य – प्रो अरुण (तसवीर भी है)आइआइसीएम का 22 वां स्थापना दिवस वरीय संवाददातारांची : जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ अरुण ने कहा कि बाजारवाद में पारिवारिक मूल्य खत्म हो गये हैं. अब कोई अपने संस्थान, परिवार व राष्ट्र के लिए त्याग नहीं करता. लोग अपने फायदे में लगे हैं. प्रोफेसर अरुण शनिवार को आइआइसीएम के 22वें स्थापना दिवस पर इंडियाज ग्रोथ प्राॅस्पेक्ट : रोल ऑफ कोल सेक्टर, विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है. कृषि, उद्योग, निर्यात के क्षेत्र में गिरावट आयी है. रुपये, कोयला और तेल के मूल्य गिरे हैं. पिछले छह साल में योजना मद में देश में छह हजार करोड़ रुपये की कमी आयी है. निवेश और बजट घटा है. इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में सुधार है, लेकिन सामाजिक असमानता बढ़ी है. अमीर बढ़े हैं, गरीबी भी बढ़ी है. कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या भी बढ़ी है. आजादी के 66-67 साल बाद भी हम अपनी मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं. विदेशी निवेश हमारी कमियों को पूरा नहीं कर सकता. चाह कर भी हम कुल जीडीपी का 10-12 फीसदी से अधिक विदेशी निवेश नहीं कर सकते. नीचे स्तर पर क्रय शक्ति नहीं बढ़ा पा रहे हैं. सरकार आज भी विकास की योजना ऊपर से नीचे के लिए ही बना रही है. जबकि1967-68 के सूखा के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति के माध्यम से देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया. इससे पूर्व संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ सत्येंद्र किशोर ने कहा कि सीमित संसाधनों में भी आइआइसीएम मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहा है. संस्थान ने भूमि अधिग्रहण और कांट्रैक्ट मैनेजमेंट का नया कोर्स प्रारंभ किया है. प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, कांट्रैक्ट मैनेजमेंट, हॉस्पिटल मैनेजमेंट में सर्टिफिकेट कोर्स चला रहा है. कार्यक्रम का संचालन सतीश सिन्हा ने किया. इस मौके पर कोल इंडिया के विभिन्न कंपनियों के सीएमडी सीएस झा,आरडी राय, पूर्व ईडी प्रो सुदीप घोष,आरएन सिंह, सीसीएल के डीपी आरएस महापात्रा भी मौजूद थे. विकास का विकेंद्रीकरण जरूरीप्रोफेसर कुमार ने कहा कि विकास के लिए ऊर्जा जरूरी है. इस क्षेत्र में 1810 में यूरोप में जो तकनीक थी, वह हमारे देश में 1950 में इस्तेमाल होती थी. विकास का विकेंद्रीकरण करना होगा. छोटे-छोटे शहर विकसित करने होंगे. इससे बड़े शहरों पर हो रहे बेतरतीब खर्च को रोका जा सकेगा. प्रोफेसर कुमार ने कहा कि तकनीक हमारी बौद्धिक क्षमता को कम कर रही है. इससे लोगों की सोचने-समझने की शक्ति भी कम हो गयी है. संगठित और असंगठित क्षेत्र में आज भी विषमता है.
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बाजारवाद में खत्म हो गए पारिवारिक मूल्य – प्रो अरुण (तसवीर भी है)
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