टीकाकरण का उद्देश्य शरीर में किसी खास रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना है. इसलिए यह वयस्कों के लिए भी जरूरी होता है, ताकि शरीर रोगों से लड़ने के लिए तैयार रहे और रोग से बचाव हो.
चिकनपॉक्स वैक्सीन : यह टीका वयस्कों को चिकनपॉक्स से बचाने में मददगार है. चिकनपॉक्स एक संक्रमण है जिसमें शरीर पर लाल दाने हो जाते हैं. यदि बचपन में वैक्सीन न लगी हो, तो इस उम्र में टीका लगवाना चाहिए.
60 से अधिक उम्र में
इस उम्र के लोगों को सीजनल फ्लू का टीका जरूरी है, क्योंकि फ्लू से प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और अन्य बीमारियां भी शरीर में घर करने लगती हैं. इस उम्र के लिए कुछ अन्य टीके निम्न हैं-
निमोनिया वैक्सीन : यह वैक्सीन शरीर को न्यूमोकोक्कल डिजीज से बचाता है. इसके अलावा फेफड़े और ब्लड स्ट्रीम के इन्फेक्शन से बचाने के लिए भी यह वैक्सीन काफी उपयोगी है.
जोस्टर वैक्सीन : यह वैक्सीन सिंग्ल्स रोग से बचाता है. इसमें स्किन पर रैशेज पड़ जाते हैं. इसे हरपिज जोस्टर भी कहते हैं. यह 60 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों को ज्यादा होती है. यह बीमारी वायरस के दोबारा शरीर में पनपने से होती है.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर
बच्चों को लगाये जानेवाले प्रमुख टीके
बच्चों के लिए कई टीके जरूरी होते हैं, जैसे-बीसीजी टीबी से बचाने के लिए दिया जाता है. पोलियो ड्रॉप्स पोलियो वायरस से बचाता है. यह वायरस बच्चों को विकलांग बना देता है. सरकार और लोगों के अथक प्रयास से हाल ही में भारत को पोलियोमुक्त घोषित कर दिया गया है. हेपेटाइटिस बी वैक्सीन हेपेटाइटिस वायरस के कारण होनेवाले पीलिया से बचाने के लिए दिया जाता है. डीपीटी वैक्सीन देने से तीन रोगों से बचाव होता है. यह डिप्थीरिया, पटरुसिस (कुकुर खांसी) और टेटनस से बचाता है. इसके अलावा आजकल एक पेंटावेलेंट टीका भी आ गया है. इस एक टीके में पांच टीके मिले होते हैं. पहला डीपीटी, जिसमें तीन टीके होते हैं, चौथा हेपेटाइटिस बी और पांचवा एचआइबी होता है, जो मेनिंजाइटिस और इन्फ्लुएंजा से बचाव के लिए दिया जाता है. इसके अलावा रोटावायरस का टीका भी बच्चों को दिया जाता है. यह ओरल वैक्सीन है, जो अलग-अलग डोज में उपलब्ध है. यह बच्चों को डायरिया से बचाता है. न्यूमोकोक्कल वैक्सीन निमोनिया से बचाव के लिए दी जाती है. इन सभी टीकों को 6, 10 और 14 हफ्ते के अंतराल पर दिया जाता है.
9वें महीने में बच्चे को मिजिल्स का टीका दिया जाता है. यह टीका बच्चे को खसरा से बचाव के लिए दिया जाता है. इस रोग में बच्चे के शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल जाते हैं और रैशेज पड़ जाते हैं. इसके अलावा बच्चों में बुखार और सर्दी-खांसी के लक्षण भी दिखने लगते हैं. नौवें महीने में ही बच्चों को एमएमआर (मिजिल्स, मंप्स और रुबेला) वैक्सीन भी दिया जाता है. रुबेला वायरस के कारण गरदन में एक प्रकार की गांठ हो जाती है. यह रोग यदि मां को होता है, तो इससे होनेवाले शिशु में हृदय रोग की आशंका बढ़ जाती है. 12वें महीने में हेपेटाइटिस ए का टीका दिया जाता है. 15वें महीने में बच्चों को चिकेन पॉक्स का टीका दिया जाता है. इस रोग के कारण बच्चों में कभी-कभी मेनिंजाइटिस, ओटाइटिस मीडिया (कान में इन्फेक्शन), निमोनिया, पेंक्रियाज में सूजन, टेस्टिस या ओवरी में सूजन हो सकती है. इससे बचाव के लिए वेरिसेल्ला वैक्सीन दी जाती है. 18वें महीने में इसका बूस्टर डोज भी दिया जाता है. दो साल के बाद बच्चों को टायफायड का टीका भी दिया जाता है. टायफाइड का इन्फेक्शन भी शरीर में फैल कर खतरनाक हो जाता है.
रखें ध्यान
वैक्सीन को शेड्यूल में देना जरूरी होता है, अन्यथा इनके प्रभाव के कम होने की आशंका होती है. वैक्सीन नर्स या डॉक्टर से दिलवाएं. डॉक्टर बच्चे की हालत देखते हुए तय करते हैं कि उसे वैक्सीन देना है या नहीं. डॉक्टर वैक्सीन देने के बाद के प्रभावों से भी भली-भांति परिचित होते हैं. यदि बच्चों को एंटीबायोटिक दी गयी हो, तेज बुखार हो, पतला शौच हो रहा हो, तो वैक्सीन नहीं दी जाती है. कुछ वैक्सीन से साइड इफेक्ट के रूप में बुखार भी आ सकता है, जिसकी दवा दिलानी चाहिए. टीका देने के बाद बच्चे को करीब एक घंटे के बाद ही मां का दूध पिलाया जाना चाहिए.
वैक्सीन का रिकॉर्ड मेंटेन करें
वैक्सीन का कोल्ड चेन हमेशा मेंटेन होना चाहिए. असल में वैक्सीन में कुछ जीवित बैक्टीरिया होते हैं, जो ठंडी परिस्थितियों में जीवित रहते हैं. गरम होने के बाद वे नष्ट हो जाते हैं. अत: उन्हें ठंडा रखना जरूरी है. कभी-कभी कंन्फ्यूजन में टीके अधिक भी पड़ सकते हैं. हालांकि इससे कोई नुकसान नहीं है. कौन-से वैक्सीन दिये गये और कौन-से दिलाने बाकी हैं, इसका रिकॉर्ड माता-पिता को शिशु के हेल्थ कार्ड में मेंटेन रखना चाहिए. यदि दो डोज निर्धारित हैं और एक डोज एक्स्ट्रा पड़ जाये, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
बातचीत : अजय कुमार
डॉ अमित कुमार मित्तल
सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी होली
फैमिली हॉस्पिटल, पटना