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बिहार में भाजपा आक्रामक के बजाय, रक्षात्मक हो गयी

झारखंड भाजपा अध्यक्ष और कोडरमा से सांसद डॉ रवींद्र राय ने कहा रांची : झारखंड भाजपा अध्यक्ष और कोडरमा से सांसद डॉ रवींद्र राय ने मंगलवार को कहा कि बिहार में दुर्भाग्य से भाजपा आक्रामक के बजाय रक्षात्मक हो गयी और इसका पूरा लाभ महागंठबंधन के नेताओं ने उठा लिया. राय ने कहा कि वास्तव […]

झारखंड भाजपा अध्यक्ष और कोडरमा से सांसद डॉ रवींद्र राय ने कहा
रांची : झारखंड भाजपा अध्यक्ष और कोडरमा से सांसद डॉ रवींद्र राय ने मंगलवार को कहा कि बिहार में दुर्भाग्य से भाजपा आक्रामक के बजाय रक्षात्मक हो गयी और इसका पूरा लाभ महागंठबंधन के नेताओं ने उठा लिया.
राय ने कहा कि वास्तव में बिहार के सत्ताधारी नीतीश कुमार व लालू प्रसाद को रक्षात्मक होना चाहिए था, लेकिन वहां तो उल्टा ही हो गया और सत्ताधारी पार्टी के नेता आक्रामक हो गये और हम जवाब व सफाई देते रह गये.
समाचार एजेंसी भाषा से उन्होंने कहा : नीतीश और उनकी सरकार को घेरना हमारी रणनीति होनी चाहिए थी, लेकिन कुछ मुद्दों पर हम बेवजह घिर गये और फिर उन्हीं की सफाई देने में हमारी ऊर्जा व्यर्थ हो गयी.
संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा से जुड़े बयान का समर्थन करते हुए डॉ रवींद्र राय ने कहा : संघ प्रमुख ने कोई भी गलत बात नहीं कही थी और वास्तव में भाजपा नेताओं को इसके समर्थन में खड़ा होना चाहिए था. उन्होंने दावा किया कि यह भाजपा की रणनीतिक चूक रही कि उसने संघ प्रमुख के बयान पर बचाव की मुद्रा अपना ली और सफाई देते रह गयी. उल्टे संघ प्रमुख के बयान का पार्टी को खुलकर समर्थन करना चाहिए था.
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ प्रमुख ने विभिन्न वर्गों में मिल रहे आरक्षण के लाभ को केवल उसके लिए योग्य व्यक्ति तक ही सीमित किये जाने की बात कही थी. उन्होंने आरक्षण व्यवस्था खत्म करने की बात नहीं कही थी.
लेकिन इस मुद्दे पर लालू प्रसाद भ्रम फैलाने में सफल रहे. राय ने स्पष्ट कहा : भाजपा के बचाव के मुद्रा में आने से उसके मतदाता का मनोबल कमजोर हुआ, जो नहीं होना चाहिए था. यह पूछे जाने पर कि क्या इसके लिए भाजपा नेतृत्व जिम्मेवार नहीं था? राय ने कहा, इस रणनीतिक असफलता के लिए परिस्थितियां जिम्मेदार हैं, कोई व्यक्ति नहीं जिम्मेदार है.
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गोमांस के मुद्दे पर चुनाव के ऐन मौके पर एक व्यक्ति की हत्या हो गयी और सोची-समझी साजिश के तहत इसके लिए एक वैचारिक आंदोलन खड़ा किया गया, जो बिलकुल गलत था, क्योंकि ऐसी घटनाएं पहली बार नहीं हुई थी. इस घटना की घोर निंदा की जानी चाहिए, लेकिन इसके लिए जैसा आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की गयी, वह पूरी तरह अनुचित था.
उन्होंने दावा किया कि कुछ माह बाद बिहार की जनता को महागंठबंधन के लिए मतदान करने पर पश्चाताप करना पड़ेगा, क्योंकि वहां ऐसे दलों का आपस में गंठबंधन हुआ है, जो अपने दिल की गहराइयों से आपस में एक-दूसरे से घृणा करते थे और यह घृणा कभी कम नहीं हो सकती है.
उन्होंने कहा कि जिस महागंठबंधन ने बिहार के चुनाव में जीत दर्ज की है, वह समरस होकर सत्ता नहीं चला सकती है. इस विरोधाभास का जनता को नुकसान उठाना पड़ सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश के चुनावों में केंद्रीय नेतृत्व को प्रादेशिक नेताओं को भी और तरजीह देना चाहिए. जिसके अच्छे परिणाम हो सकते हैं.

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