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25 हजार से अधिक लोगों ने नोटा दबाया

25 हजार से अधिक लोगों ने नोटा दबायासबसे अधिक निर्मली विधानसभा क्षेत्र में 06699 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल कियासभी विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार का अंतर अधिक था, इसलिए इस नोटा से किसी भी प्रत्याशी को फर्क नहीं पड़ाप्रतिनिधि, सुपौलसंपन्न विधानसभा चुनाव में जहां जिले के 08 लाख से अधिक मतदाताओं ने विभिन्न प्रत्याशियों के […]

25 हजार से अधिक लोगों ने नोटा दबायासबसे अधिक निर्मली विधानसभा क्षेत्र में 06699 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल कियासभी विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार का अंतर अधिक था, इसलिए इस नोटा से किसी भी प्रत्याशी को फर्क नहीं पड़ाप्रतिनिधि, सुपौलसंपन्न विधानसभा चुनाव में जहां जिले के 08 लाख से अधिक मतदाताओं ने विभिन्न प्रत्याशियों के पक्ष में मत डाल कर उनके प्रति अपना विश्वास जताया, वहीं 25563 मतदाताओं ने चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को नकारते हुए नोटा का बटन दबा कर अपना विरोध जताया. जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में सबसे अधिक निर्मली विधानसभा क्षेत्र के 06699 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया. वहीं नोटा का बटन दबाने वाले सबसे कम मतदाता पिपरा विधानसभा क्षेत्र में रहे. यहां नोटा के पक्ष में कुल 3959 मत पड़े. छातापुर विधानसभा क्षेत्र में 4041, त्रिवेणीगंज में 6555 तथा सुपौल विधानसभा क्षेत्र में 4309 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया. गौरतलब है कि जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में कुल 52 प्रत्याशी खड़े थे. इनमें सुपौल, पिपरा एवं त्रिवेणीगंज विधानसभा क्षेत्र में नौ-नौ, छातापुर में 11 एवं निर्मली में 14 प्रत्याशी अपना किस्मत आजमा रहे थे. मजे की बात यह है कि नोटा ने इन विधानसभा क्षेत्रों में कई जगह चौथा व पांचवां स्थान प्राप्त किया. हालांकि सभी विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार का अंतर काफी अधिक था. इसलिए इस नोटा से किसी भी प्रत्याशी को कोई फर्क नहीं पड़ा. अन्यथा यह मत किसी भी प्रत्याशी का खेल बिगाड़ सकता था. बहरहाल गत विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार नोटा बटन के हुए अधिक प्रयोग से यह बात साफ हो गयी है कि चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों के विरुद्ध आम मतदाताओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. ऐसे में चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों को इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है. नोटा दबाने वाले लोगों की मानें, तो चुनाव में पेशेवर राजनीतिज्ञों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है. राजनीति जिनका पेशा बन चुकी है. ऐसे लोगों का अधिकतर समाज सेवा से कोई ताल्लुकात नहीं होता और न ही ये लोग समाज की समस्या व अपनी जवाबदेही के प्रति संवेदनशील होते हैं. लिहाजा अच्छे व समाज सेवा के प्रति तत्पर रहने वाले लोगों को आगे आना चाहिए, ताकि राजनीति के वर्तमान स्वरूप में बदलाव लाया जा सके.

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