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महेश्वर, सुरेंद्र व रामविचार का खत्म हुआ वनवास

महेश्वर, सुरेंद्र व रामविचार का खत्म हुआ वनवास2010 में भाजपा प्रत्याशी वीणा देवी से हारे थे महेश्वर 2005 में हार के बाद रामविचार राय 10 वर्ष तक रहे सत्ता से बाहर 2010 में विस चुनाव में हार के बाद भी हिम्मत नहीं हारे थे सुरेंद्र वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरबिहार विधानसभा चुनाव 2015 कई मायने में इस […]

महेश्वर, सुरेंद्र व रामविचार का खत्म हुआ वनवास2010 में भाजपा प्रत्याशी वीणा देवी से हारे थे महेश्वर 2005 में हार के बाद रामविचार राय 10 वर्ष तक रहे सत्ता से बाहर 2010 में विस चुनाव में हार के बाद भी हिम्मत नहीं हारे थे सुरेंद्र वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरबिहार विधानसभा चुनाव 2015 कई मायने में इस जिले के नेताओं के लिए खास बन गया है. किसी का राजनीतिक वनवास हो गया है तो कई नेताओं को राज सिंहासन मिला है. राजनीतिक रूप से वनवास झेल रहे कई नेताओं के लिए यह चुनाव संजीवनी साबित हुआ है. इस चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद सत्ता में इनकी पकड़ मजबूत होगी. इनमें गायघाट विधानसभा के राजद प्रत्याशी महेश्वर प्रसाद यादव, औराई विधानसभा के प्रत्याशी डॉ सुरेंद्र कुमार व साहेबगंज विधानसभा के प्रत्याशी रामविचार राय शामिल हैं. ये तीनों की दस साल के बाद फिर से विधानसभा में वापसी हो गयी है. गायघाट विधानसभा के प्रत्याशी महेश्वर प्रसाद यादव का राजनीतिक इतिहास काफी पुराना है. 1985 में पहली बार चुनाव लड़े थे तो मात्र 500 वोट से पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1995 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते. आनंद मोहन को पराजित कर विधानसभा में पहुंचे. वर्ष 2000 में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े. यहां से जनता दल ने देवेंद्र प्रसाद यादव को चुनाव लड़ाया था. वर्ष 2005 में राजद से टिकट मिलने के बाद जदयू के प्रत्याशी अशोक सिंह को हराया था. फिर, यह सीट भाजपा के खाते में चली गयी. वर्ष 2010 में इस पर भाजपा ने वीणा देवी को उम्मीदवार बनाया था. वो यहां से चुनाव जीत गयीं और महेश्वर प्रसाद यादव चुनाव हार गये. इसके बाद फिर 2015 के विस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी वीणा को 3600 मतों से पराजित कर दिया. राजद के साहेबगंज प्रत्याशी रामविचार राय का इतिहास भी कुछ एेसा ही है. जनता दल के टिकट पर रामविचार राय वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सत्ता में पहुंचे थे. वर्ष 2000 में भी पार्टी ने टिकट दिया. चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचे. मंत्री भी बने. लेकिन वर्ष 2005 से हार का सिलसिला शुरू हुआ. यह सिलसिला 2015 में थम गया है. वर्ष 2005 में राजद ने इन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन चुनाव हार गये थे. वर्ष 2010 में भी चुनाव हार गये थे. 10 वर्ष बाद राजनीतिक वनवास से लौट गये हैं. इन्होंने भाजपा के प्रत्याशी राजू कुमार सिंह राजू को पराजित कर दिया है. औराई से राजद प्रत्याशी डॉ सुरेंद्र कुमार जदयू विधायक अर्जुन राय के लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद राजद के टिकट पर उप चुनाव लड़े. उप चुनाव में वर्ष 2009 में जीत हासिल की. एक वर्ष तक विधायक रहे. वर्ष 2010 में राजद के टिकट पर फिर चुनाव लड़े, लेकिन इन्हें भाजपा प्रत्याशी रामसूरत राय ने पराजित कर दिया था. फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी. राजनीति से जुड़े रहे. राजद ने इन्हें 2015 में टिकट देकर औराई का प्रत्याशी बनाया. इस बार चुनाव में जीत दर्ज कर सत्ता में पहुंच गये हैं.

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