डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
अकसर सरकारी कर्मचारियों को उनके कर्तव्यों की याद तो सभी दिलाते हैं, पर उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कोई आगे नहीं आता. निर्दोष व्यक्तियों की निर्मम हत्या करनेवाले आतंकवादियों तक के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जी-जान एक कर देनेवाले बुद्धिजीवी भी सरकारी कर्मचारियों को सदा गालियां देते ही पाये जाते हैं. सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देकर भ्रष्टाचारी बनाने में भरपूर योगदान देनेवाली आम जनता भी दूध से धुल कर उनके भ्रष्ट होने का राग अलापने लगती है.
इसीलिए कुछ जागरूक कर्मचारियों ने एक अखिल भारतीय कर्मचारा (जी हां, कर्मचारा) संघ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों द्वारा बेचारे लोगों का काम करने के बदले ऊपरी आमदनी का चारा चर सकने के उनके अधिकारों की रक्षा करना है. संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि हमें भी अमेरिका जैसे विकसित देशों का अनुसरण करना चाहिए, जहां 50 डॉलर तक की रिश्वत को उपहार समझा जाता है.
पिछले दिनों इस संघ की एक बैठक में जाने का मौका मिला. बैठक में ऊपर की कमाई में निपुण बीसेक व्यक्ति गंभीर चर्चा कर रहे थे, जिसका ठोस यह था कि जिस प्रकार मानवाधिकारों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त है, उसी प्रकार सरकारी कर्मचारियों के पदाधिकारों को भी संरक्षण मिलना चाहिए. एक ने कहा कि घूसखोरी सरकारी कर्मचारियों का अधिकार है.
उन्हें तो कर्मचारी नाम दिया ही इसलिए गया है, ताकि वे कर्म के बदले चार पैसे की घूस ले सकें. गीता में भगवान कृष्ण के कथन की नयी व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि हे भारतीय कर्मचारियों, कर्म करना न करना तुम्हारे ही अधिकार में है- कर्मण्येवाधिकारस्ते, जिसे बिना घूस का फल लिये कभी न करना- मा फलेषु कदाचन! एक अन्य कर्मचारी की दलील थी कि जब भ्रष्टाचारी चुनाव तक जीत जाते हैं, तो भ्रष्टाचार का हंगामा खड़ा करना कहां तक उचित है?
जब नेताओं और मंत्रियों की निरंतर ऊपर चढ़ती ऊपरी कमाई को अवैध नहीं माना जाता, तो कर्मचारियों की ऊपरी कमाई को क्यों? दूसरे ने कहा कि जब रिश्वत देने और लेनेवाले दोनों राजी, तो क्या करेगा काजी? तीसरे ने घूस को पर्क्स में शामिल किये जाने की मांग करते हुए ग्रेड के अनुसार घूस की सीमा निर्धारित किये जाने की जरूरत बतायी. एक उत्साही युवक बोला कि वक्त आ गया है, जब हमें ‘एशिया वॉच’, ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ जैसी संस्थाओं की तर्ज पर एक स्वतंत्र संस्था बनानी चाहिए, जिसका नाम ‘पदाधिकार वॉच’ हो.
यह संस्था एक व्यापक जनजागरण अभियान चला कर घूसखोर कर्मचारियों का उत्पीड़न रोके और दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध उसी तरह की कार्रवाई किये जाने की मांग करे, जैसी मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए होती है.
सबने करतल-ध्वनि से इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया और आनन-फानन में ‘पदाधिकार वॉच’ की स्थापना हो गयी. खाकसार को उसका प्रवक्ता बनाया गया है और पाठकों से अनुरोध है कि वे इस लेख को उक्त संस्था का विजन-डॉक्यूमेंट समझें.