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नवीनता अतिआवश्यक
जो नियम और कानून तात्कालिक सामाजिक स्थिति पर पूर्णतया आधारित हैं, उन्हें देश और काल की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार अवश्य बदलना चाहिए. तभी समाज की प्रगति सुनिश्चित हो पायेगी. अगर हम पुरातन नियमों में ही बंधे रहे, तो हमारे समाज की प्रगति नहीं हो सकती. यही कारण है कि आधुनिक युग में पुराने समयों […]
जो नियम और कानून तात्कालिक सामाजिक स्थिति पर पूर्णतया आधारित हैं, उन्हें देश और काल की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार अवश्य बदलना चाहिए. तभी समाज की प्रगति सुनिश्चित हो पायेगी. अगर हम पुरातन नियमों में ही बंधे रहे, तो हमारे समाज की प्रगति नहीं हो सकती.
यही कारण है कि आधुनिक युग में पुराने समयों के कुछ नियमों का पालन संभव नहीं. हां, केवल इतना हो सकता है कि हम उनके अभिप्राय को समझ सकते हैं, परंतु अक्षरश: उनका पालन नहीं कर सकते.
समाज विकास कर रहा है. अपनी विकास-यात्रा के क्रम में यह ऐसे कई नियमों को पार कर जाता है, जो इसके विकास की एक विशेष अवस्था में मान्य एवं सहायक थे. अब अनेक नवीन परिस्थितियां अस्तित्व में आ गयी हैं, जिनके बारे में पुरातन स्मृतिकारों ने चिंतन नहीं किया था. अब लोगों से उन प्राचीन, अप्रचलित नियमों का पालन करने को कहना व्यर्थ है. हमारा आधुनिक समाज काफी बदल चुका है.
इस युग की अावश्यकताओं के अनुरूप अब एक नवीन स्मृति का आना अत्यावश्यक है. किसी अन्य ऋषि को आज एक नवीन, समयानुकूल धर्मसंहिता अवश्य प्रस्तुत करनी चाहिए.
– स्वामी शिवानंद सरस्वती
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