सम्मान लौटानेवाले साहित्यकारों को खारिज नहीं कर सकते हैंफिराक ने कहा था- जिनको शक हो/वो कर ले खुदाओं की तलाश/ हम तो इनसान को/दुनिया का खुदा कहते हैं. कल मैंने एक सिरफिरा पोस्ट पढ़ा, जिसमें ऐसे सारे लेखकों की किताबों को जला कर नष्ट कर देने की बात की गयी थी, जिन्होंने असहिष्णुता के सवाल पर अपने सम्मान लौटा दिये थे. दरअसल यही काम कभी हिटलर ने जर्मनी में किया था, जहां असहमति का मतलब ध्वंस होता था. इसलिए बात सिर्फ दाभोलकर, पनसारे और कलबुर्गी की नहीं है. हमलोग एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर व्यक्ति को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का हक होता है. हो सकता है कि हमारे बीच से काेई मूर्ति पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में विश्वास नहीं करता हो, उसके लिए यह सब अंधविश्वास हाे, तो इसका यह मतलब नहीं कि आप उसे अपनी धर्मगत घृणा का शिकार बनायेंगे और अपनी असहमति को असहिष्णुता में बदल देंगे. इसलिए यह तो सच है कि देश का माहौल बिगड़ा है आैर इसे बिगाड़ने में विभिन्न सरकारी बयानों ने अहम भूमिका निभायी है. इसलिए इसे ठीक करने का जिम्मा भी उन्हीं का है, जिन्होंने इसे बिगाड़ा है.आप इधर के वक्तव्यों पर ध्यान दें तो इन लेखकों या बुद्धिजीवियों को तथाकथित कहा जा रहा है. जैसे कि वे समाज में एक धब्बे की तरह हों. जबकि यह सर्वविदित है कि ये सारे लेखक या बुद्धिजीवी मिडियोकर नहीं हैं. समकालीन साहित्य और समाज में इनका दखल है और इन्हें किसी भी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. अब गाल बजाने के लिए हमारे संस्कृति मंत्री यह भले ही कहते रहें कि इन्हें कौन जानता है. पर इससे उन लेखकों का कुछ नहीं घटता, आप जरूर बौने होते हैं. सोचने की बात है कि आखिर कोई भी नाहक क्यों उद्वेलित होगा, क्यों अपने सम्मान लौटाता फिरेगा! कहीं तो कुछ ऐसा है जो उन्हें चुभ रहा है, जो उन्हें विवश कर रहा है कि इस समय के खिलाफ उन्हें खड़ा होना है. उनका जमीर धिक्कार रहा है, जबकि वह नहीं चाहते कि भारत की छवि एक अनुदार और असहिष्णु राष्ट्र की बने. क्योंकि वह अपने देश को बहुत प्यार करता है और उनकी कृतियों में देश का अक्स ही झलकता है.चूंकि आप सत्ता में है और प्रजापालक माने जाते हैं. इसलिए आपको अपना अहंकार आैर गुरूर छोड़ कर इनकी भावनाओं का आदर करना चाहिए. उनके घावों पर मरहम लगाने की जिम्मेवारी आपकी बनती है. अापको उन्हें विश्वास में लेकर यह बताना चाहिए कि ऐसा क्यों है और यह भी कि आप व्यवहार में भी एक सहिष्णु राष्ट्र हैं, पर आपकी सरकार चुप है, वह तो अपने समय की हलचल को ही राख कर देना चाहती है. अगर ऐसा ही रहा तो आप देश को एक फासिस्ट अंधेरे की ओर बढ़ने से नहीं रोक सकते. अरविंद कुमारप्रोफेसर, पीजी, हिंदी विभाग
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सम्मान लौटानेवाले साहत्यिकारों को खारिज नहीं कर सकते हैं
सम्मान लौटानेवाले साहित्यकारों को खारिज नहीं कर सकते हैंफिराक ने कहा था- जिनको शक हो/वो कर ले खुदाओं की तलाश/ हम तो इनसान को/दुनिया का खुदा कहते हैं. कल मैंने एक सिरफिरा पोस्ट पढ़ा, जिसमें ऐसे सारे लेखकों की किताबों को जला कर नष्ट कर देने की बात की गयी थी, जिन्होंने असहिष्णुता के सवाल […]
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