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सिटी बस से सरकार को 3.87 करोड़ का घाटा
सरकार झारखंड सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बना कर राज्य के दूसरे शहरों में सिटी बस चलाने की तैयारी में, जबकि रांची : राज्य सरकार ने रांची, जमशेदपुर और धनबाद सिटी बस चला कर 3.87 करोड़ रुपये का घाटा उठाया है. सरकार अब झारखंड सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बना कर राज्य के दूसरे शहरों में भी सिटी बस […]
सरकार झारखंड सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बना कर राज्य के दूसरे शहरों में सिटी बस चलाने की तैयारी में, जबकि
रांची : राज्य सरकार ने रांची, जमशेदपुर और धनबाद सिटी बस चला कर 3.87 करोड़ रुपये का घाटा उठाया है. सरकार अब झारखंड सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बना कर राज्य के दूसरे शहरों में भी सिटी बस चलाना चाहती है. इसके लिए 60 नयी बसें खरीदने की तैयारी की जा रही है.
केंद्र सरकार ने जेनएनयूआरएम के तहत रांची, जमशेदपुर और धनबाद में सिटी बस चलाने की योजना स्वीकृत की थी. इसके तहत कुल 37.23 करोड़ की लागत से कुल 250 बसों की खरीद की जानी थी. इनमें से रांची और धनबाद में 100-100 बसें और जमशेदपुर में 50 बसें चलायी जानी थीं. केंद्र द्वारा स्वीकृत इस योजना की कुल लागत 37.30 करोड़ रुपये थी. इसमें से केंद्र का हिस्सा 23.90 करोड़ रुपये था.
राज्य सरकार को सिर्फ 13.40 करोड़ रुपये खर्च करना था. बसों की खरीद के लक्ष्य के मुकाबले राज्य सरकार ने सिर्फ 190 बसें खरीदी. इसमें रांची और धनबाद के लिए 70-70 और जमशेदपुर के लिए 50 बसें खरीदी गयी थी. काफी वाद विवाद के बाद सरकार ने झारखंड पर्यटन विकास निगम(जेटीडीसी) के माध्यम से सिटी बसों को चलाने का फैसला करते हुए बसों को उसके हवाले कर दिया. साथ ही जेटीडीसी को इसके नफा और नुकसान की जिम्मेवारी नहीं दी. जेटीडीसी ने 2011-12 से 2014-15 तक बसों को चलवाया. इस दौरान उसे 3.78 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिसकी भरपाई सरकार ने की. जेटीडीसी को इन पांच सालों में सिर्फ एक ही साल मुनाफा हुआ.
आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2010-11 में ही बसों से 2.59 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी, जबकि उस पर 2.59 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जेटीडीसी के अनुसार रांची में औसरन 27 प्रतिशत, जमशेदपुर में 56 से 103 प्रतिशत और धनबाद में 70 से 102 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था.
जेटीडीसी ने ड्राइवर और खलासी की जरूरत पूरी करने के लिए मेसर्स एएसके सर्वसेज और मेसर्स राइडर के साथ एकरारनामा किया था. इसके तहत ड्राइवर और खलासी उपलब्ध नहीं कराने पर इन कंपनियों पर प्रति दिन 200 रुपये की दर से दंड लगाया जाना था. इन कंपनियों द्वारा ड्राइवर और खलासी उपलब्ध नहीं कराये जाने की वजह से 190 में से औसतन 36 बसें ही प्रति दिन चलती थी.
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