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छात्रों का असंतोष
केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्र पिछले कई दिनों से आंदोलनरत हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विगत सात अक्तूबर को नॉन-नेट स्कॉलरशिप बंद करने का निर्देश जारी किया था, जिसे छात्रों के जोरदार विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था. लेकिन, मानव संसाधन मंत्रालय ने इस छात्रवृत्ति की समीक्षा के लिए एक पैनल के गठन की […]
केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्र पिछले कई दिनों से आंदोलनरत हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विगत सात अक्तूबर को नॉन-नेट स्कॉलरशिप बंद करने का निर्देश जारी किया था, जिसे छात्रों के जोरदार विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था. लेकिन, मानव संसाधन मंत्रालय ने इस छात्रवृत्ति की समीक्षा के लिए एक पैनल के गठन की भी घोषणा की है.
मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि अब इस छात्रवृत्ति को पैनल के सुझावों के मुताबिक चुनिंदा छात्रों को ही दिया जायेगा. अब तक यह केंद्रीय विश्वविद्यालय के हर उस शोध छात्र को दी जाती है, जिसे यूजीसी की अन्य छात्रवृत्ति नहीं मिलती है. वर्तमान में एमफिल छात्र को पांच तथा पीएचडी शोधार्थी को आठ हजार रुपये प्रतिमाह दिये जाते हैं.
देश भर में ऐसे छात्रों की संख्या 35 हजार के आसपास है. नेट-जेआरएफ स्कॉलरशिप पानेवाले छात्र तकरीबन नौ हजार हैं और उन्हें 25 हजार रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति मिलती है. छात्रों की यह भी मांग है कि मुद्रास्फीति के अनुरूप छात्रवृत्ति में भी बढ़ोतरी की जाये. छात्रवृत्ति के संबंध में मंत्रालय और यूजीसी की ओर से स्पष्टता के अभाव से सशंकित छात्रों का आंदोलन जोर पकड़ रहा है.
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उठायी गयी कई नीतिगत पहलें विवादित रही हैं. पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट में अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर कई विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के चयन तक पर सवाल उठ चुके हैं. कुछ समय पूर्व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वरिष्ठ प्रशासकों ने स्वायत्त शैक्षणिक संस्थानों में मानव संसाधन मंत्रालय के अवांछित हस्तक्षेप का विरोध किया था. दूसरी ओर, कई राष्ट्रीय संस्थान ऐसे हैं, जहां पूर्णकालिक कुलपति या निदेशक के पद रिक्त हैं.
कुछ दिन पहले ही केंद्रीय संस्था वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ने अपने अधीन चलनेवाली प्रयोगशालाओं और शोध केंद्रों को निर्देश दिया है कि वे अपने खर्च के आधे हिस्से का इंतजाम स्वयं करें, क्योंकि उनको दिये जानेवाले अनुदान में भारी कटौती की जा रही है.
इस आदेश में यह भी कहा गया है कि उनके शोध केंद्र सरकार की नीतियों के अनुरूप होने चाहिए. इस परिस्थिति में नॉन-नेट छात्रों का यह आरोप बेबुनियाद नहीं है कि सरकार उच्च शिक्षा के प्रति अपनी जिम्मेवारियों से बचना चाह रही है. अब यह सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह नीतिगत स्पष्टता से इन चिंताओं का समाधान करे, क्योंकि उच्च शिक्षा की बेहतरी के बिना देश के विकास की आकांक्षाएं पूरी नहीं हो सकती हैं.
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