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महंगे दीप से जगमगायेगी इस बार की दीपावली

महंगे दीप से जगमगायेगी इस बार की दीपावली फ्लैग…त्योहार. मिट्टी की कीमतों में हुआ इजाफा, बनानेवालों का भी रुझान हुआ कमबढ़ती महंगाई के चलते कुम्हार दीये बनाने में नहीं लेते हैंप्रतिनिधि, भभुआ (सदर)दीपावली के दौरान घर-घर में जगमगानेवाले दीयों की गौरवशाली परंपरा आज भी कायम है. दीपों का त्योहार दीपावली जहां सुख शांति और समृद्धि […]

महंगे दीप से जगमगायेगी इस बार की दीपावली फ्लैग…त्योहार. मिट्टी की कीमतों में हुआ इजाफा, बनानेवालों का भी रुझान हुआ कमबढ़ती महंगाई के चलते कुम्हार दीये बनाने में नहीं लेते हैंप्रतिनिधि, भभुआ (सदर)दीपावली के दौरान घर-घर में जगमगानेवाले दीयों की गौरवशाली परंपरा आज भी कायम है. दीपों का त्योहार दीपावली जहां सुख शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे प्रकाश के पर्व की भी संज्ञा दी गयी है. इस त्योहार को अंधकारमय जीवन उजाला भर देने का भी उत्सव कहा जाता है. इन सारी कवायदों के बावजूद इस त्योहार में मिट्टी की दीयों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. साथ ही उन कलाकारों के परिश्रम व भावनात्मक संदेश को भी नहीं भुलाया जा सकता, जो इन दीयों को बनाते हैं. रामायणकाल से चली आ रही है दीये जलाने की परंपराकहा जाता है कि भगवान श्री राम जब लंका फतह कर अयोध्या वापस लौटे थे, तो अयोध्या के लोगों ने पूरे नगर को दीपों से सुसज्जित कर दिया था. तभी से देश में दीपावली के दिन भगवान श्री राम के वनवास से वापस लौटने की खुशी व माता लक्ष्मी के आगमन पर दीपोत्सव मनाया जाने लगा. प्रारंभिक काल में मिट्टी के दिये ही एकमात्र दीपावली मनाने का साधन हुआ करते थे. आज भी ज्यादातर लोग इसी पारंपरा का पालन करते हैं.शहर में दीयों के लिए नहीं मिल रहे मिट्टी महंगाई का असर दीयों पर भी पड़ने की संभावना है. हालात यह है कि कभी दीपावली के दीपों को बनाने के लिए कुम्हार महीनों पहले से जुट जाते थे, अब बढ़ती महंगाई के चलते कुम्हार इस काम में रुचि नहीं लेते हैं. शहर के शक्तिनगर में चाक चलानेवाले राजू प्रजापति बताते हैं कि पहले के दौर में मिट्टी आसानी से उपलब्ध हो जाती थी. अब दीयों के लिए मिट्टी ऊंचे दाम पर खरीदनी पड़ रही है. रामायण प्रजापति ने बताया कि दीपावली के दौरान उपयोग में आनेवाले दीयों को एक खास प्रकार की मिट्टी से बताया जात है. इसमें लचीलापन होता है. अब यह मिट्टी शहर के आसपास नहीं मिलती इसे गांव से महंगे दामों पर मंगाया जा रहा है. मिट्टी कला से जुड़े कलाकार मिट्टी के तमाम घरेलू उपयोगवाले बरतनों के अलावा दीपों का निर्माण बड़ी श्रद्धा और संकल्प के साथ करते हैं. पिछले वर्षों जहां दीपावली के दौरान बिकनेवाली दीपों की तादाद लाखों हुआ करती थी. वहीं बढ़ती महंगाई के चलते यह हजारों में सिमट कर रह गयी है. इसका कारण महंगाई बताया जा रहा है. मिट्टी की कमी भी इसके लिए अहम वजह मानी जा रही है. 2010-11 में एक रुपये में चार मिट्टी के दीये आते थे. 2012 में दो रह गये और अब एक रुपये का एक दिया. दो रुपये का एक दीपक मिल रहा है. …………….फोटो……………..दीये बनाते कलाकार

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