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बात विकास की, नजर जाति पर
मधेपुरा कार्यालय : जिले की चार विधानसभा सीटों पर पांच नवंबर को मतदान है. चारों विधानसभा क्षेत्र से 60 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं. 2010 के चुनाव में जदयू को तीन व राजद को एक सीट मिली थी. उस समय भाजपा और जदयू के बीच गंठबंधन था. लेकिन इस बार समीकरण बदला हुआ है. […]
मधेपुरा कार्यालय : जिले की चार विधानसभा सीटों पर पांच नवंबर को मतदान है. चारों विधानसभा क्षेत्र से 60 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं. 2010 के चुनाव में जदयू को तीन व राजद को एक सीट मिली थी. उस समय भाजपा और जदयू के बीच गंठबंधन था. लेकिन इस बार समीकरण बदला हुआ है.
मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी ने भी जिले की सभी चारों सीटों पर प्रत्याशी उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है. हर दल और गंठबंधन के बागी मुकाबले को त्रिकोणीय की जगह चतुष्कोणीय बनाने में जुटे हैं. इलाका बाढ़ प्रभावित है, लेकिन चुनाव में कही उसकी चर्चा नहीं हो रही है. मतदाता विकास की बात कर रहे हैं. सभी पार्टियां और प्रत्याशी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं, लेकिन जातिगत समीकरण को भी फिट करने में लगे हैं. बहरहाल, इस चुनावी महासंग्राम में महागंठबंधन, एनडीए तो कहीं तीसरा मोरचा एक दूसरे के लिए परेशानी खड़ी कर सकते है. वहीं बागी भी खेल बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.
इनपुट : विजय कुमार
प्राथमिकता में नहीं हैं प्रमुख मुद्दे
इस सीट पर जदयू के सिटिंग विधायक व बिहार सरकार के राजस्व व भूमि सुधार मंत्री नरेंद्र नारायण यादव लगातार चार बार से विधायक हैं. जदयू ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया है. मधेपुरा से पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी से जय प्रकाश सिंह चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
वहीं एनडीए प्रत्याशी के रूप में लोजपा के चंदन सिंह भी मैदान में है. इसके साथ ही निर्दलीय व अन्य दलों के प्रत्याशी मैदान में है.
क्षेत्र में सभी पार्टियां विकास के नाम पर मतदाताओं को अपने पाले में करने में जुटी हैं, लेकिन जातिगत समीकरणों को भी साधा जा रहा है. इलाके में बाढ़ की समस्या स्थायी है. लेकिन, चुनाव में इसपर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. खराब सड़कें, बिजली और स्वास्थ्य किसी की प्राथमिकता में नहीं है.
दम दिखा रहे हैं निर्दलीय उम्मीदवार
जदयू के कब्जे में यह सीट है. यहां की विधायक रेणु कुशवाहा पार्टी छोड़ कर भाजपा के टिकट से समस्तीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. हालांकि महागंठबंधन बनने के बाद क्षेत्र की राजनीति में बदलाव दिख रहा है.
महागंठबंधन से जदयू प्रत्याशी के रूप में निरंजन मेहता मैदान में हैं, लेकिन राजद के पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री रविंद्र चरण यादव आरजेडी का दामन छोड़ कर एनडीए प्रत्याशी के रूप में भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं जनअधिकार पार्टी से श्वेत कमल भी मैदान में है. हालांकि यहां एक पार्टी से दूसरे पार्टी में पाला बदलने से चुनावी समीकरण में बदलाव आया है. जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो चुकी है. कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों की स्थिति काफी मजबूत है.
ऐसे में यहां त्रिकोणीय संघर्ष से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि, क्षेत्र में किसानों की समस्या से लेकर सड़क, शिक्षा, बिजली एनएच की स्थिति, नगर पंचायत की स्थिति को देखते हुए मतदाताओं पर विकास का मुद्दा हावी नजर आ रहा है. लेकिन खास लोगों की भूमिका भी स्पष्ट जान पड़ती है. ऐसे में देखना है कि उम्मीदवार विकास के मुद्दे को नंबर वन बनाते है या पूर्व के जातीय आधार को यह वक्त ही बतायेगा.
सभी के पास अपने-अपने तर्क
2010 के विधान सभा चुनाव में सिर्फ मधेपुरा से राजद के उम्मीदवार प्रो चंद्र शेखर विजयी हुए थे. इस बार महागंठबंधन प्रत्याशी के रूप में राजद से चंद्रशेखर को ही उम्मीदवार बनाया गया है. 2010 के चुनाव में प्रो चंद्रशेखर एनडीए प्रत्याशी रमेंद्र कुमार यादव रवि को हराये थे. लेकिन इस बार एनडीए से भाजपा प्रत्याशी विजय कुमार विमल हैं. वहीं जनअधिकार पार्टी से प्रो अशोक कुमार हैं. यहां त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना बनती दिख रही है.
महागंठबंधन एनडीए में कड़े मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं. लेकिन, जनअधिकार पार्टी के उम्मीदवार मुकाबले को तीसरा कोण देने में सफल होते दिख रहे हैं. ऐसे में देखना है कि किसका पलड़ा भारी रहेगा. यह तो पांच नवंबर को मतदान के बाद ही पता चलेगा. फिलवक्त चुनावी घमासान शुरू हो चुका है.
विकास के मुद्दे पर गोलबंद हो रहे वोटर
यह विधानसभा सीट सुरिक्षत क्षेत्र है. यहां जदयू के विधायक रमेश ऋ षिदेव इस बार भी महागंठबंधन प्रत्याशी के रूप में जदयू के उम्मीदवार है. 2010 के विधान सभा चुनाव में रमेश ऋषिदेव राजद के उम्मीदवार अमित भारती को हरा कर विजयी हुए थे. इस बार अमित भारती पप्पू यादव के जन अधिकार पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में है.
वहीं एनडीए से हम की मंजु देवी हैं. ऐसे में यहां त्रिकोणीय संघर्ष से इनकार नहीं किया जा सकता है. सुरिक्षत क्षेत्र होने के कारण वोटरों का रुझान उम्मीदवार पर निर्भर करता है. ग्रामीण बहुल इलाका होने के कारण आवागमन की असुविधा, पुल-पुलिया का अभाव, देहात में बिजली के नहीं रहने से लोग परेशान हैं.
और अब विकास करने वाले प्रत्याशियों को ही तरजीह देने का मन बना रहे है. लेकिन राजनीतिक समीकरण के उपर विकास हावी होगा, यह मतदान के बाद ही पता चल पायेगा. फिलहाल क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है.
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