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जुकरबर्ग, डिजिटल इंडिया व केरल भवन
उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के प्रबल-समर्थक फेसबुक के संस्थापक-सीइओ मार्क जुकरबर्ग जिस सुबह दिल्ली में अपने भारत-दौरे के कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे थे, यहां के ज्यादातर राष्ट्रीय अखबारों-चैनलों में सबसे बड़ी खबर थी- ‘केरल भवन में बीफ पर भारी हंगामा’. बुधवार को यह खबर दिन भर छायी रही […]
उर्मिलेश
वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के प्रबल-समर्थक फेसबुक के संस्थापक-सीइओ मार्क जुकरबर्ग जिस सुबह दिल्ली में अपने भारत-दौरे के कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे थे, यहां के ज्यादातर राष्ट्रीय अखबारों-चैनलों में सबसे बड़ी खबर थी- ‘केरल भवन में बीफ पर भारी हंगामा’. बुधवार को यह खबर दिन भर छायी रही और शाम को ज्यादातर चैनलों ने इसे प्राइमटाइम चर्चा का विषय बनाया.
हंगामे की जड़ में थी- स्वघोषित ‘हिंदूसेना’. ‘सेना’ का प्रमुख किसी विष्णु गुप्त नामक युवक को बताया गया. इस घटनाक्रम को लेकर दिन भर दिल्ली पुलिस, केरल सरकार और केंद्र सरकार के बीच तीखे संवाद जारी रहे.
राज्य के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने तो दिल्ली पुलिस द्वारा केरल भवन पर ‘छापा मारने’ के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी को विरोध पत्र भी भेजा. उस दिन न तो संबद्ध पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई और न ही उक्त सेना के प्रमुख के खिलाफ. देर शाम कई चैनलों के प्राइमटाइम में उक्त ‘सेना प्रमुख’ को अतिथि-वक्ता के रूप में देख कर कुछ लोगाें की तरह मैं भी स्तब्ध था. इस विवादास्पद चरित्र के खिलाफ कई मामले लंबित हैं, पर दिल्ली पुलिस ने उसी की शिकायत पर दिल्ली स्थित केरल भवन पर छापा मारा. फिर उसी को बड़े न्यूज चैनलों ने शाम को अतिथि-वक्ता के रूप में बुलाया. क्या सरकारी निकाय और सामाजिक संस्थान अपनी जिम्मेवारी और राष्ट्र-राज्य की छवि को लेकर इस कदर बेपरवाह हो गये हैं?
इस घटनाक्रम पर मैं जुकरबर्ग, यूरोप-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया या अफ्रीका से भारत-दौरे पर आये हजारों विदेशी पर्यटकों की निजी भावना नहीं जानता, लेकिन निश्चय ही ये चीजें भारत की छवि बिगाड़ती हैं. इस वक्त दिल्ली में जुकरबर्ग, अफ्रीका महाद्वीप के सभी प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्ष, बड़े राजनयिक और व्यापारी भी आये हुए हैं.
भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में 54 अफ्रीकी देश भाग ले रहे हैं. लेकिन ‘हिंदूसेना’ की ‘कृपा’ से भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की खबरें हाशिये पर खिसक गयीं. अखबारों-चैनलों में लगातार दो दिन इस ‘सेना’ की ‘कीर्तिगाथा’ चल रही थी. इसके चलते बुधवार को बिहार चुनाव की खबरें भी कुछ दब गयीं.
केरल भवन की घटना से कई बड़े सवाल उठते हैं. अनेक गणमान्य लोगों और संस्थानों के खिलाफ उग्र बर्ताव और उन पर हमले करनेवाली हिंदसेना की शिकायत पर क्या दिल्ली पुलिस को केरल भवन पर ‘छापा मारना’ चाहिए? केरल सरकार ने इसे गैरकानूनी छापामारी कहा.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करनेवाली दिल्ली पुलिस मंगलवार को केरल भवन कैंटीन जाकर उसके द्वारा परोसी जानीवाली थालियों के ब्यौरे लेने लगी कि उसमें हिंदूसेना की शिकायत के अनुसार ‘बीफ’ है या नहीं? कैंटीन मालिक ने साफ किया कि बीफ की आपूर्ति पूरी तरह वैध है. लेकिन हिंदूसेना आदि देर शाम तक चिल्लाते रहे कि केरल भवन में ‘अधर्मी’ लोग ‘राष्ट्रद्रोह’ कर रहे हैं. क्या इन कट्टरपंथियों को यह नहीं मालूम कि ‘बीफ’ का मतलब सिर्फ गोमांस नहीं होता, भैंस-भैंसे-बैल समेत इस वंश के अन्य जानवरों के मांस भी इसमें शुमार हैं.
भैंसे-भैंस आदि का मांस केरलवासियों के एक बड़े हिस्से का लोकप्रिय भोज्य है और इस पर कोई पाबंदी नहीं है. इसे अज्ञान कहें या खतरनाक मुहिम कि इन उन्मादी ‘राष्ट्रभक्तों’ को यह भी नहीं मालूम कि केरल, बंगाल और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में ‘बीफ’ के तहत आनेवाले सभी श्रेणी के मांस के कारोबार पर कोई पाबंदी नहीं है. इसके लिए लाइसेंसधारी स्लाटर-हाउसेज भी इन राज्यों में बने हैं. जहां तक खाने का सवाल है, कुछ निषिद्ध स्थलों को छोड़ कर पूरे देश में भोज्य के रूप में इस तरह के मांस के उपयोग पर कोई बंदिश नहीं है. क्या दिल्ली पुलिस को ये जानकारी नहीं है? अगर है, तो वह हिंदूसेना की शिकायत पर वहां क्यों गयी? अगर वह एहतियातन गयी, तो फौरन उसने हिंदूसेना के उपद्रवियों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया? घटना के काफी समय बाद ही कुछ उपद्रवियों की गिरफ्तारी क्यों हो सकी?
वह भी तब, जब केरल के मुख्यमंत्री ने केंद्र के समक्ष कड़े शब्दों में अपना विरोध जताया. क्या इससे हिंदू नामधारी उग्र सोच के संगठनों की विभेदकारी और हिंसक गतिविधियों का सच नहीं उजागर होता? आखिर केंद्रीय राजनेता और एजेंसियां इन पर मेहरबान क्यों हैं? पुणे की ‘सनातन संस्था’ हो या दिल्ली-यूपी-हरियाणा की ‘हिंदूसेना’, इन पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जिस तरह भाजपा-विहिप-संघ के प्रवक्ता टीवी बहसों में इन संगठनों का बचाव करते हैं, उससे यह साफ है कि सरकारी एजेंसियां योजना के तहत ऐसी संस्थाओं को छूट दे रही हैं.
दूसरा अहम सवाल है, केंद्र-राज्य रिश्तों का. क्या स्थानिक आयुक्त की इजाजत या उन्हें विश्वास में लिये बगैर दिल्ली पुलिस का केरल भवन, जो दिल्ली में केरल सरकार के सचिवालय का विस्तार है, में प्रवेश उचित था? ऐसी कार्रवाई क्या देश के संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य रिश्तों में खतरनाक पेंच नहीं पैदा करती?
तीसरा और अंतिम सवाल. क्या हिंदूसेना, बजरंग दल, सनातन संस्था या और भी तरह-तरह के कट्टरपंथी मंचों के तेज उभार और उनके द्वारा अंजाम दिये जा रहे घटनाक्रमों से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि, पूंजी निवेश की गति, व्यापारिक संबंध विस्तार की मुहिम और विदेशी पर्यटकों की संख्या नहीं प्रभावित हो रही है? क्या ऐसे घटनाक्रमों से संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के भारतीय दावे की गंभीरता कम नहीं होगी? अपने पिछले भारत-दौरे से लौट कर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने वाशिंगटन से जारी अपने बयान में भारत के अंदर बढ़ती असहिष्णुता और कट्टरता को रोकने की प्रधानमंत्री मोदी से अपील करके भारत की मौजूदा सरकार की सांप्रदायिक सद्भाव नीति पर गंभीर सवाल उठाया था.
सवाल सिर्फ ओबामा की टिप्पणी का नहीं, पूरी दुनिया में भारत और भारतीय समाज की छवि का है. अब तो देश के बड़े लेखक, कलाकार, फिल्मकार और वैज्ञानिक भी तेजी से बढ़ती हिंदुत्ववादी कट्टरता और असहिष्णुता के विरोध में उतर आये हैं. फिर हिंदुस्तान, हिंदुस्तानियों और आम हिंदुओं के हितों और छवि पर चोट करते ऐसे ‘हिंदुत्व’ से किसका भला होगा?
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