इंदौर : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने बस में बैठे 15 यात्रियों को जिंदा जलाने के मामले में तीन बस कर्मचारियों को निचली अदालत के फांसी की सजा सुनाये जाने के फैसले को बरकरार रखा, जबकि बस मालिक को सुनायी गयी उम्रकैद की सजा निरस्त कर दी. न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति जेके जैन ने इस मामले में निचली अदालत के तरण सोनी, दिलीप शर्मा और राजकुमार कुशवाह को सजा-ए-मौत सुनाये जाने के निर्णय को बरकरार रखने का फैसला कल सुनाया. इसके साथ ही, खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ तीनों मुजरिमों की अपील खारिज कर दी.
बहरहाल, उच्च न्यायालय ने बस मालिक नरेश कुमार दोशी को आरोपों से बरी करते हुए उसे निचली अदालत की सुनायी गयी आजीवन कारावास की सजा निरस्त कर दी. कुमार के वकीलों ने अपने मुवक्किल के बचाव में अदालत के सामने तर्क रखा कि बस जलाये जाने के दौरान वह मौका-ए-वारदात पर मौजूद ही नहीं था. बडवानी की एक विशेष अदालत ने इस मामले में एक निजी बस के चालक सोनी, कंडक्टर शर्मा और क्लीनर कुशवाह को भारतीय दंड विधान की धारा 302 (हत्या) और अन्य सम्बद्ध धाराओं में 13 सितंबर 2013 को फांसी की सजा सुनायी थी.
मामले में बस मालिक दोशी को उम्रकैद का दंड सुनाया गया था. बडवानी जिले में दो बसों के कर्मचारियों के बीच सवारियां बैठाने को लेकर 21 अगस्त 2011 को विवाद हुआ था. इस विवाद में एक बस के कर्मचारियों ने दूसरी बस को सेंधवा कस्बे के पास जबरन रुकवाकर उस पर पेट्रोल छिडका और आग लगा दी थी. इससे बस में बैठे में 15 यात्रियों की मौत हो गयी और 19 अन्य बुरी तरह झुलस गये थे.