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लालू व नीतीश ने दलितों, पिछड़ों का हक मारा : नंदकिशोर
पटना : भाजपा के वरिष्ठ नेता व विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा है कि 25 साल के राज में मात्र आठ बार ही बीपीएसी की परीक्षाएं हुईं, अगर परीक्षा हुई होती तो लोगों को नौकरी मिलती और आरक्षण का लाभ मिलता. दोनों भाईयों ने […]
पटना : भाजपा के वरिष्ठ नेता व विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा है कि 25 साल के राज में मात्र आठ बार ही बीपीएसी की परीक्षाएं हुईं, अगर परीक्षा हुई होती तो लोगों को नौकरी मिलती और आरक्षण का लाभ मिलता. दोनों भाईयों ने दलितोें व पिछड़ों के हक को मारा. तीन लाख पद रिक्त हैं. प्राथमिक से लेकर कॉलेज तक में 4 लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं.
राज्य के लोग कभी माफ नहीं करेंगे. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार इसका उत्तर दें. यादव मंगलवार को भाजपा कार्यालय में पत्रकारों से बात कर रहे थे. उन्होंने तीसरे चरण में 40 सीट पर जीत का दावा किया. इस मौके पर विधायक प्रेमरंजन पटेल व विधान पार्षद संजय मयूख, सुरेश रुंगटा व अजफर शमसी मौजूद थे.
यादव ने कहा कि तथाकथित महागंठबंधन का झूठ का पहाड़ ढहने से उनके अंदर घोर निराशा है. जदयू और गंठबंधन पूरी तरह झूठ व निंदा के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक दल को विकास से मतलब नहीं है. दूसरा विकास का मतलब घोटाला व भ्रष्टाचार समझता है. तीसरा दोनों को लेकर विकास करेगा. इनके सभी दावे की हवा निकल गयी है. आरक्षण के सवाल पर पीएम के बयान के बाद गंठबंधन के सपने चूर- चूर सो गये. उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि गंडामन में जो बच्चे मरे वह बिहारी नहीं थे क्या.
कुरसी बचाने के लिए पैर में चोट के बाद विधानसभा गये, लेकिन बीमार बच्चों को देखने पीएमसीएच तक नहीं गये. विशेष पैकेज का मजाक उड़ाया. उन्होंने नीतीश कुमार को चुनौती देते हए कहा कि उनको प्रधानमंत्री से बहस करने की कुबत नहीं है. पहले उनसे वे फरिया लें. वे बहस करने को तैयार हैं.
भाजपा नेता ने कहा कि बिजली पर नीतीश कुमार ने पलटी मारी. झूठ के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं. महागंठबंधन में हार का हाहाकार मचा हुआ है. कोई महातांत्रिक है तो कोई तंत्र- मंत्र का सहारा ले रहा है. आठ नवंबर को सत्ता विलाप के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. यादव ने कविता से नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है. उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है. वे जो चलते थे तो शेर के चलने का गुमान होता था. उनको भी पांव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा.
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