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बड़े व पैरवी वाले अफसरों पर कार्रवाई में सुस्ती

बड़े व पैरवी वाले अफसरों पर कार्रवाई में सुस्तीछोटे और बगैर पहुंच वाले अफसर जल्द हो जाते हैं दंडितशकील अख्तर, रांचीराज्य में भ्रष्टाचार सहित अन्य आरोपों में फंसे बड़े और पहुंच वाले अफसरों पर कार्रवाई करने में जरूरत से ज्यादा देरी होती है. छोटे और बगैर पहुंच वाले अफसर जल्द दंडित हो जाते हैं. मरने […]

बड़े व पैरवी वाले अफसरों पर कार्रवाई में सुस्तीछोटे और बगैर पहुंच वाले अफसर जल्द हो जाते हैं दंडितशकील अख्तर, रांचीराज्य में भ्रष्टाचार सहित अन्य आरोपों में फंसे बड़े और पहुंच वाले अफसरों पर कार्रवाई करने में जरूरत से ज्यादा देरी होती है. छोटे और बगैर पहुंच वाले अफसर जल्द दंडित हो जाते हैं. मरने से पहले तक अखिल भारतीय सेवा के अफसरों पर विभागीय कार्यवाही का पूरा नहीं होना, प्राथमिकी की अनुमति नहीं मिलना और छोटे अफसरों को कम से कम समय में बरखास्त होने की कार्रवाइयां इसके उदाहरण हैं. प्राथमिकी की अनुमति नहीं ,14 साल बाद विभागीय कार्यवाहीवित्तीय वर्ष 2001-02 में आइएएस अधिकारी आलोक गोयल पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे थे. इसमें एक ही यात्रा के लिए दो बार यात्रा भत्ता लेने और फर्नीचर आदि की खरीद व इससे जुड़ी फाइलों के साथ ही फर्नीचर का भी कार्यालय से गायब होने के आरोप शामिल थे. समाज कल्याण निदेशक के रूप में कार्यरत रहने के दौरान उन पर यह आरोप लगे थे. तत्कालीन कल्याण सचिव(वर्तमान विकास आयुक्त)की रिपोर्ट के बाद इस मामले में निरगानी जांच का आदेश दिया गया था. निरगानी ने प्रारंभिक जांच के बाद एक ही यात्रा के लिए दो बार यात्रा भत्ता लेने सहित अन्य आरोपों को सही पाया. वर्ष 2009 में निगरानी आयुक्त को भेजी गयी रिपोर्ट में यह लिखा कि सामग्रियों का खरीद के लिए मेसर्स कैलाश स्टोर्स को 19970 रुपये का भुगतान दिखाया गया है. हालांकि स्टोर के मालिक ने भुगतान मिलने से इनकार किया है. फर्नीचर खरीद के लिए दिल्ली फर्नीचर को 41,543 रुपये और प्लास्टिक सेंटर को 10,958 रुपये का भुगतान किया गया है. निरगानी ने इस मामले में आलोक गोयल का खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी थी. पर तत्कालीन निगरानी आयुक्त राज बाला वर्मा ने प्राथमिकी दर्ज करने का अनुमति नहीं दी. उन्होंने इस मामले में विभागीय कार्यवाही चलाने की अनुशंसा की. सरकार ने सितंबर 2015 में विभागीय कार्यवाही का आदेश दिया. वित्त विभाग के प्रधान सचिव अमित खरे को संचालन पदाधिकारी बनाया गया. उन्होंने नोटिस जारी कर आलोक गोयल को छह नवंबर तक अपना पक्ष पेश करने क अंतिम मौका दिया है.मरने तक विभागीय कार्यवाही पूरी नहींअखिल भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के अफसर प्रशांत आलोक और विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी थी. विभागीय कार्यवाही के दौरान ही इन दोनों अधिकारियों की मौत हो गयी. इसकी वजह से उन्हें किसी तरह का दंड नहीं मिल सका. आइएफएस अधिकारी प्रशांत आलोक के खिलाफ दो विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी थी. विभिन्न प्रकार की अनियमितताओं के वजह से इस अधिकारी के खिलाफ वर्ष 2003 और 2008 में अलग-अलग विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी थी. हालांकि इस अधिकारी की मौत की वजह से सरकार ने सितंबर 2015 में विभागीय कार्यवाही बंद कर दी . इस अधिकारी के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में वर्ष 2009 में थाने में प्राथमिकी भी दर्ज की गयी थी. आइएफएस अधिकारी विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ तीन विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी थी. विभिन्न प्रकार की अनियमितताओं के आरोप में वर्ष 1998, 2001 और 2003 में विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी थीं. हालांकि अक्तूबर 2014 में उनकी मौत की वजह से तीनों विभागीय कार्यवाही बंद कर दी गयी. इस अधिकारी पर निगरानी थाने में भी वर्ष 1995 में एक प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. इसके अलावा वर्ष 1998 में लातेहार थाने में दो प्राथमिकी दर्ज थी.एक आरोपी बरखास्त, दूसरा तीन तीन पद पर काबिज रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार(आरआरडीए) में हुए नक्शा घोटाले के एक आरोपी को सरकार ने बरखास्त करने फैसला किया है. जबकि दूसरे को तीन-तीन पद का प्रभार दे रखा है. आरआरडीए में हुए नक्शा घोटाले का जांच सीबीआइ ने की थी. न्यायालय के आदेश का बाद शुरू हुई इस जांच में सीबीआइ जिन लोगों को आरोपी बनाया उसमें राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मनौवर आलम और जल संसाधन विभाग के सहायक अभियंता राम कुमार सिंह का नाम भी शामिल था. सीबीआइ ने इन दोनों ही अधिकारियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था. मनौवर आलम आरआरडीए में निगरानी अधिकारी के रूप में काम करते हुए पर गलत टिप्पणी लिख कर ‘ होटल ली लेक’ को सरकारी जमीन कब्जा करने में मदद पहुंचाने का आरोप था. इन आरोपों के मद्देनजर 2012 में विभागीय कार्यवाही शुरू करने के बाद अक्तूबर 2015 में सरकार ने इस अधिकारी को बरखास्त करने का फैसला किया. दूसरी तरफ जेल से बाहर आने का बाद इंजीनियर राम कुमार सिंह को निलंबन मुक्त कर जिला अभियंता के रूप में पदस्थापित किया गया. तत्कालीन जल संसाधन मंत्री अन्नपूर्णा देवी की सहमति के बाद उसे मंत्री के गृह जिला कोडरमा में जिला अभियंता बनाया गया. फिलहाल यह इंजीनियर चतरा में जिला अभियंता के पद पर पदस्थापित है. वह कोडरमा में एनआरइपी के कार्यपालक अभियंता और झालको हजारीबाग के एरिया मैनेजर के अतिरिक्त प्रभार में है.

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