9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मंत्रियों की बदजुबानी कौन रोके?

शीतला सिंह संपादक, जनमोर्चा हरियाणा के बल्लभगढ़ में दलितों के दो बच्चों के जल कर मरने के फलस्वरूप देश में विरोध का वातावरण बना है. जलाया तो पूरे घर को जा रहा था. बच्चों के पिता जितेंद्र के भी दोनों हाथ और कुछ अंग जले हैं. वह असहायताबोध से ग्रस्त होकर कह रहा है कि […]

शीतला सिंह
संपादक, जनमोर्चा
हरियाणा के बल्लभगढ़ में दलितों के दो बच्चों के जल कर मरने के फलस्वरूप देश में विरोध का वातावरण बना है. जलाया तो पूरे घर को जा रहा था. बच्चों के पिता जितेंद्र के भी दोनों हाथ और कुछ अंग जले हैं. वह असहायताबोध से ग्रस्त होकर कह रहा है कि हमें फिर जला दिया जायेगा, इसलिए हम यहां रहना नहीं चाहते.
दूसरी ओर केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री का कहना है कि ‘क्या कुत्ते को मारे जाने की जिम्मेवारी भी केंद्र सरकार पर ठोक दी जायेगी’ और अपनी सफाई में वे सारा दोष पत्रकारों पर मढ़ देते हैं. उनका कहना है कि ऐसे पत्रकारों की सही जगह पागलखाना है.
नेता तो यह कह सकते हैं कि हमने तो ऐसा कहा नहीं, सुननेवाले ने गलत सुना, हमारे खिलाफ गवाह झूठ या द्वेषवश बयान दे रहे हैं. तो क्या एक पत्रकार ने जो कुछ प्रस्तुत किया है, वही दंड देने के लिए साक्ष्य बन जायेगा? देश के पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अलावा किसी अन्य संवैधानिक अधिकारों से तो लैस किया नहीं गया है, वे पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा में भी शामिल नहीं किये गये हैं. संविधान या किसी कानून में पत्रकारों के संरक्षण का कोई अलग से प्रावधान विद्यमान नहीं है. ऐसे में जब केंद्रीय मंत्री भी उन्हें पागलखाने भेजने को कहें, तो सवाल यह उठता है कि सही कौन है?
समय-समय पर गलत बयान देने, ऊपर से डांटे जाने पर माफी मांग लेने की रस्म अदा करनेवाले नेताओं में संवैधानिक दायित्व का पता ही नहीं होगा, तो वे उसकी रक्षा कैसे करेंगे? विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा समय-समय पर बेतुके और महत्वहीन, दूसरे के दिलों को तोड़नेवाले और सामाजिक अशांति फैलानेवाले बयानों को किस रूप में देखा जाये? सरकारें उन्हीं की हैं, इसलिए दंड के लिए तभी न्यायालय आ सकते हैं, जब कोई शिकायत और साक्ष्य जुटाने में समर्थ हो.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माझी, जो इस समय भाजपा के सहयोगी के रूप में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हैं, का कहना है कि वीके सिंह जैसे लोग सामंती सोच के हैं, इसलिए उनके मुंह से ऐसी बातें निकलती हैं. लेकिन, गौर करें तो इस तरह का सामंती सोच किसी एक दल के नेताओं तक ही सीमित नहीं है. दलितों, कमजोरों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के संबंध में गैरजिम्मेवाराना बयानों का लंबे समय से जारी सिलसिला उसी का तो अंग है.
ब्राह्मण की हत्या के लिए तो राम को भी दोषी ठहराया जा सकता है, क्योंकि इस पर विचार करने की जरूरत नहीं है. जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रकाशित पत्रिका में छपता है कि गोमांस खानेवाले और गोहत्यारे की हत्या करना तो वेद विहित है, तब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसकी जड़ें कितनी गहरी हैं और निदान कितना मुश्किल.
यदि इस प्रश्न पर विचार को गौण भी मान लिया जाये कि किसकी धर्म की पुस्तक में क्या-क्या लिखा है, वह सरकार या उसकी एजेंसियों के लिए कितना पाल्य है, तब भी वैयक्तिक और सामाजिक जीवन को तो अलग करना ही पड़ेगा. किसी व्यक्ति की धार्मिक आस्था कहां और कितनी है, यह उसका वैयक्तिक प्रश्न है, लेकिन सामाजिक रूप से तो मान्य वही है, जो देश के संविधान में लिखा है.
लेकिन जब सरकार में शामिल लोग भी अपने ही गंठबंधन के खिलाफ विभिन्न विसंगतियों के प्रश्न पर सवाल उठाने लगें, तब प्रश्न और भी उठेंगे. व्यवस्था का नियमन व नियंत्रण करनेवाली राज्य नामक संस्था में ही आपस में यदि सामंजस्य नहीं होगा, तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि यह सुविधाओं का जमावड़ा है, सिद्धांतों का नहीं, जिसमें परस्पर लाभ उठाने की प्रवृत्ति ही प्रमुख है. ऐसे में इन्हें कौन नियंत्रित करेगा? इस रूप में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही सर्वोच्च निर्णायक होंगे. तब वे यह कह कर नहीं बच सकते कि उनकी सरकार के मंत्री को भी यह स्वतंत्रता है कि वे जब चाहे जैसा बयान दे दें और फिर जो चाहें सफाई प्रस्तुत कर दें.
मीडिया दूसरों पर दोष मढ़ कर मुक्त नहीं हो सकता. जब से मीडिया का व्यावसायिक स्वरूप प्रमुख होकर उभरा है, तब से पत्रकारों की पहचान भी स्वार्थों के आधार पर की जाने लगी है.
लोकतंत्र के मूल गुण और अधिकारों में समाचार पत्रों को अलग करके नहीं देखा जा सकता. इसलिए पागलखाने भेजने के बजाय यह सोचना होगा कि मीडिया और पत्रकारों को गलत कार्यों से कैसे रोका जाये. दूसरी ओर, यदि कोई नेता दलितों की तुलना कुत्ते से करे, तो उसके साथ क्या व्यवहार हो, यह निर्णय सत्ता के संचालकों को ही करना पड़ेगा, जिसके वे अंग हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें