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सच के लिए जान देने की जिंदा मिसाल है मुहर्रम

सच के लिए जान देने की जिंदा मिसाल है मुहर्रम फोटो – मधेपुरा – 17 कैप्शन – जिला मुख्यालय में विद्युत कार्यालय के सामने स्थित इमामबाड़ा में लगे निशान – 24 अक्तूबर यानी उर्दू तिथि के अनुसार दसवीं तिथि को मनायी जाती है मुहर्रम प्रतिनिधि, मधेपुराआशूरा के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना […]

सच के लिए जान देने की जिंदा मिसाल है मुहर्रम फोटो – मधेपुरा – 17 कैप्शन – जिला मुख्यालय में विद्युत कार्यालय के सामने स्थित इमामबाड़ा में लगे निशान – 24 अक्तूबर यानी उर्दू तिथि के अनुसार दसवीं तिथि को मनायी जाती है मुहर्रम प्रतिनिधि, मधेपुराआशूरा के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है. इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की मिसाल है. इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था. मधेपुरा जामा मसजिद के विद्वान मो मेहरू कहते हैं कि करबला, इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है. यहां चला युद्ध 10 अक्तूबर 680 (10 मुहर्रम 61 हिजरी) को समाप्त हुआ था. इसमें एक तरफ 72 (शिया मत के अनुसार 123 यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे) और दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी. हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे. उधर यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद के हाथों में थी. हुसैन इब्ने अली इब्ने अबी तालिब हजरत अली और पैगंबर हजरत मुहम्मद की बेटी फातिमा के पुत्र थे. उनका जन्म 8 जनवरी 626 ईस्वी सऊदी अरब के मदीना में हुआ था. हिजरी सन के मुताबिक यह तिथि 3 शाबान 4 हिजरी है. मुहर्रम महीने के दसवें दिन को ह्यआशुराह्य कहते हैं. आशुरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे घरवाले और उनके सथियों को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था. मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है. इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है. सन 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान मे एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्म्द साहब के नाती तथा यजीद के बीच हुआ. इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हजरत इमाम हुसैन की हुई. लेकिन जाहिरी तौर पर यजीद के कमांडर ने हजरत इमाम हुसैन और उनके सभी 72 साथियों को शहीद कर दिया था. इसमें उनके छह महीने की उम्र के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थे. तब से तमाम दुनिया के न सिर्फ मुसलमान बल्कि दूसरी कौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उनकी याद करते हैं. इमाम और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध मे भाग न ले सके थे, बचे रहे. — हिजरी सन का पहला महीना है — मुहर्रम इस्लामी वर्ष यानी हिजरी सन का पहला महीना है. हिजरी सन का आगाज इसी महीने से होता है. इस माह को इसलाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है. एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं. यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं. कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह की किश्ती को किनारा मिला था. शहर के करबला मैदान में लगेगा मेलामधेपुरा. जिला मुख्यालय में मुहर्रम में ताजिया मिलान करबला मैदान में होता है. यहां जंगी करतब भी दिखाते हैं और मेला का आयोजन भी होता है. शहर के विभिन्न इमामबाड़ों में तैयारी शुरू कर दी गयी है. कमेटी द्वारा सभी इमामबाड़ों का समन्वय किया जाता है. शुक्रवार की सुबह चार से सात बजे तक पुरानी बाजार स्थित राम रहीम रोड में चौकी मिलन किया गया. टीपी कॉलेज शहीद शंकर स्मारक स्थल से ताजिया अपने-अपने इमाम बाड़ा चले गये. शुक्रवार की रात दो बजे से रविवार की सुबह सात बजे तक राम रहीम रोड में ताजिया मिलन जारी रहा. यहां जंगी और झरनी ने खेल दिखाया. दिन के दो बजे सभी ताजिया गोल बना कर टीपी कॉलेज चौक होते हुए पुरानी बाजार मसजिद चौक पर एकत्रित होंगे. यहां से फकीर टोला, भिरखी स्थित इमामबाड़ा पहुंच कर पुराना कब्रिस्तान स्थित करबला मैदान पहुंचेंगे. यहां शाम तक खेल तमाशा होगा. करबला मैदान पर पारंपरिक तौर पर जिला एवं पुलिस प्रशासन के अधिकारी पहुंचते रहे है. इसके बाद खिलाडि़यों को पुरस्कार से नवाजा जायेगा. पहली तिथि से शुरू हो जाता है मुहर्रम प्रभात खबर टोली, मधेपुरा. इसलाम के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में उर्दू की पहली तिथि को चांद के दिखने के साथ ही मुर्हरम पर्व शुरू हो जाता है. इमामबाड़ों में मजलिसों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. इसी पहली तिथि से ही जिले के विभिन्न प्रखंडों में मुहर्रम की तैयारी शुरू कर दी जाती है. सोमवार की रात इमामबाड़ों में मिट्टी जमा करने की रस्म की गयी थी. मंगलवार की रात केलकटी की रस्म अदा की गयी थी. इस रस्म में इमामबाड़ों में केले के पेड़ लगाये गये थे. गुरूवार की दोपहर से मर्सिया पढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया था. इमामबाड़ों पर निशान लगा दिये गये थे. 24 अक्टूबर को पड़ने वाली दसवीं तिथि को पहलाम है. इस दिन ताजिया निकाल कर मिलान किया जाता है. निर्धारित स्थलों पर मिलान होने के बाद मेला का आयोजन किया जाता है. हजरत इमाम हसन हुसैन की शहादत की याद में मनाये जाने वाले पर्व मुहर्रम पर ताजिया और निशान निकाल कर शहादत को सलाम किया जाता है.

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