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पढ़िए, बिहार चुनाव पर बक्सर जिले की ग्राउंड रिपोर्ट

आरके नीरद बक्सर में विधानसभा की चार सीटें हैं. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में चारों सीटों पर राजग के उम्मीदवार जीते थे. बक्सर में इस बार मुकाबला राजग और महागंठबंधन के बीच होने के आसार है. दोनों गंठबंधन स्थानीय समीकरण के मद्देनजर वोटरों के बीच जा रहे हैं. लेकिन, वाम पार्टियों का भी यहां […]

आरके नीरद

बक्सर में विधानसभा की चार सीटें हैं. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में चारों सीटों पर राजग के उम्मीदवार जीते थे. बक्सर में इस बार मुकाबला राजग और महागंठबंधन के बीच होने के आसार है. दोनों गंठबंधन स्थानीय समीकरण के मद्देनजर वोटरों के बीच जा रहे हैं. लेकिन, वाम पार्टियों का भी यहां जनाधार है. वह मुकाबले को तीसरा कोण दे रही हैं. बसपा का भी अपना कैडर वोट इस इलाके में है.उसके प्रत्याशी भी परिणाम प्रभावित कर सकते हैं. एक रिपोर्ट.

बक्सर धर्मयुद्ध और सत्तायुद्ध की ऐतिहासिक भूमि है. शास्त्र और शस्त्र दोनों से इसकी पहचान है. यहां के राजघरानों की कहानियां सुनने और सुनाने की प्रथा पुराने कौतुहल और आत्मगौरव के भाव बोध के साथ अब भी जिंदा है. वोटरों की सूची में गृहस्थ भी हैं, वैरागी भी. लिहाजा यहां की राजनीतिक जागरूकता का स्तर बड़ा ऊंचा है. जिले में विधानसभा की चार सीटें हैं, जिनके लिए तीसरे चरण में, 28 अक्तूबर को वोट डाले जायेंगे. सीटें भले चार हों, राजनीतिक समीकरण की दृष्टि से इस जिले की चुनावी अहमियत अधिक सीटों वाले कई जिलों से ज्यादा है.

तीसरे चरण में जहां चुनाव होना है, उनमें बक्सर ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां सबसे ज्यादा 31 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. बाहुबली भी चुनाव मैदान में हैं और ऊंचे राजनीतिक रसूख वाले भी. इन उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने से मुकाबला दिलचस्प है. ऊपरी तौर पर यही दिख रहा है कि महागंठबंधन और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन जातीय समीकरण, बाहुबल, भितरघात और बगावत की खुली राजनीति से वोटों का समीकरण लगातार बन-बिगड़ रहा है. इसका लाभ थर्ड फ्रंट को मिल सकता है. वाम दलों का भी जिले में अच्छा जनाधार है और सभी सीटों पर उसने अपने उम्मीदवार दिये हैं, लेकिन बक्सर में उनकी चुनावी एकता टिकी नहीं रह सकी. यहां भाकपा के भगवती प्रसाद श्रीवास्तव और माकपा के धीरेंद्र चौधरी मैदान में हैं.

इस बार चार में से तीन विधायकों को बेटिकट किया गया है. भाजपा ने अपने दोनों महिला विधायकों, ब्रrापुर की दिलमणी देवी और बक्सर की प्रो सुखदा पांडेय का टिकट काट दिया है. ब्रह्मपुर से उसने भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को और बक्सर से प्रदीप दूबे को उम्मीदवारी दी है. जदयू ने भी डुमरांव से डॉ दाऊद अली का टिकट काट कर ददन सिंह यादव को दे दिया है. केवल राजपुरा में जदयू के संतोष कुमार निराला ऐसे विधायक हैं, जिन्हें पार्टी ने फिर मौका दिया है. पिछले चुनाव में यहां की सभी चार सीटें भाजपा-जदयू को मिली थीं.

दोनों ने को बराबर-बराबर यानी दो-दो सीटें मिली थीं. गंठबंधन के नये समीकरण की बात करें, तो एनडीए और महागंठबंधन दोनों की यहां दो-दो सीटें हैं. इस बार भाजपा तीन सीटों ब्रह्मपुर, बक्सर और राजपुरा (सु) से चुनाव लड़ रही है. एक सीट डुमरांव उसने रालोसपा को दिया है. महागंठबंधन में जदयू ने खुद को उन्हीं दो सीटों डुमरांव और राजपुर तक सीमित रखा है, जिन पर उसे पिछले चुनाव में जीत मिली थी. बाकी दो में से एक सीट ब्रrापुर राजद को और दूसरी बक्सर कांग्रेस को मिली है. (इनपुट : बक्सर से विजय शंकर)

ब्रह्मपुर : बागियों से मिल रही चुनौती
ब्रह्मपुर सीट पर महागंठबंधन और एनडीए, दोनों को बागी नेताओं की चुनौतियां मिल रही हैं. भाजपा ने सीटिंग एमएलए दिलमणी देवी का टिकट काट कर विवेक ठाकुर को दिया है. दोनों एक ही जाति से हैं. लिहाजा जातीय समीकरण के तहत पार्टी ने बड़ा खतरा नहीं उठाया है, लेकिन दिलमणी देवी और उनके समर्थकों के बागी तेवर का उसे सामना करना पड़ रहा है. टिकट कटने से नाराज दिलमणी देवी ने जदयू का दामन थाम लिया है और उसके पक्ष में खुल कर प्रचार कर रही हैं. वहीं महाबंठबंधन में राजद ने पूर्व विधायक अजीत चौधरी की जगह शंभु यादव को उम्मीदवारी दी है. उन्हें लालू प्रसाद के करीबी होने का लाभ मिला है. पेशे से व्यवसायी शंभु यादव की जमीनी तौर पर क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. जातीय वोटों के अलावा महागंठबंधन के घटक दलों के समर्थकों और व्यवसायी वर्ग से संबंधों का लाभ मिलने का उन्हें भरोसा है. वहीं अजीत चौधरी बसपा के टिकट से उन्हें चुनौती दे रहे हैं. चौधरी चार बार विधायक रह चुके हैं. क्षेत्र में उनका भी अच्छा प्रभाव माना जाता है. वह मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हुए हैं. उनके अभियान से राजद को नुकसान हो सकता है. वामपंथ से अयोध्या सिंह माले के उम्मीदवार हैं. यहां कुल 13 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

वोटर- 312748
2010 में जीतीं : दिलमणी देवी (भाजपा)
इस बार 13 प्रत्याशी
महागंठबंधन-शंभुनाथ यादव (राजद)
एनडीए-विवेक ठाकुर (भाजपा)
अन्य- धीरेंद्र चौधरी (माकपा)

डुमरांव : बागी ने मुकाबले को रोचक बनाया
डुमरांव विधानसभा सीट पर महागंठबंधन को जदयू के निवर्तमान विधायक दाऊद अली से बड़ी चुनौती मिल रही है. पिछले चुनाव में यह सीट जदयू को मिली थी. इस बार भी उसका उम्मीदवार चुनाव मैदान में है, लेकिन उसने नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के ठीक पहले सीटिंग एमएलए का टिकट काट कर ददन सिंह यादव को उम्मीदवारी दे दी. इससे नाराज दाऊद अली जनाधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) मैदान में हैं. इस बागी तेवर से महागंठबंधन को परेशानी में डाल सकता है. एनडीए ने यह सीट रालोसपा को दी है और उसने रास बिहारी सिंह को उतारा है. पिछले चुनाव में राजपूत वोट जदयू को मिला था. सिंह के रालोसपा से उम्मीदवार होने के कारण इस वोट का रुख बदल सकता है. वहीं ददन सिंह यादव का अपना प्रभाव बड़ा है, यहां वाम दलों के वोटों में बिखराव होता नहीं दिख रहा. इस लिहाज से माले की सुशीला देवी भी मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटी हुई हैं.

वोटर- 312748
2010 में जीते : डा दाऊद अली (जदयू)
इस बार 16 प्रत्याशी
महागंठबंधन-ददन सिंह यादव (जदयू)
एनडीए- राम बिहारी सिंह (रालोसपा)
अन्य- सुशीला देवी (माले)

राजपुर (सु): अति पिछडों के वोट पर सबको भरोसा
राजपुर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित विधानसभा सीट है. इस सीट से पिछली बार जदयू के संतोष कुमार निराला जीते थे. पार्टी ने उन पर एक बार और भरोसा किया है, जबकि भाजपा ने विश्वनाथ राम को उम्मीदवारी दी है. निराला 2010 में पहली बार विधायक बने थे. राम पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. अति पिछड़ों के वोट पर बसपा को भी भरोसा है. उसने लालजी राम को मैदान में उतारा है. सपा भी यहां राजग-महागंठबंधन की लड़ाई को तीसरा कोण देने के लिए पूर्व विधायक छेदीलाल साह को उम्मीदवार बनाया है. माले के रामाशंकर सिंह भी वाम मोर्चे के साझा उम्मीदवार हैं और अपने आधार मतों को बिखरने से रोकने में जुट गये हैं. निर्दलीय आजाद पासवान भी किस्मत आजमा रहे हैं. वह जिले के अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं, जो जेल में रह कर चुनाव लड़ रहे हैं. प्रचार में उन्होंने अपनी ताकत लगा दी है.

वोटर- 326241
2010 में जीते : जितेंद्र राय (राजद)
इस बार 14 प्रत्याशी
महागंठबंधन-संतोष कु निराला (जदयू)
एनडीए- विश्वनाथ राम (भाजपा)
अन्य- रामाशंकर राम (माले)

बक्सर : तीसरा कोण बना रही बसपा
बक्सर विधानसभा सीट से सबसे ज्यादा 31 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले चुनाव में यह सीट भाजपा को मिली थी. इस बार उसने यहां सीटिंग एलएमए प्रो सुखदा पांडेय का टिकट काट कर प्रमोद दुबे को मैदान में उतारा है. दुबे आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं. हालांकि पार्टी के इस फैसले से प्रो पांडेय के समर्थकों में नाराजगी है. यह भाजपा के लिये परेशानी खड़ी कर रहा है. कांग्रेस ने संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी को टिकट दिया है. तिवारी इस इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उन्हें महागंठबंधन के समर्थन वाले वोटों पर उम्मीद है. वहीं बसपा ने सरोज राजवार को इस सीट से उतार कर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश की है. इस विधानसभा क्षेत्र में रजवार जाति के करीब 20 हजार वोटर हैं और सरोज उनके बीच से अकेला उम्मीदवार हैं. उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे होने के कारण यहां बसपा का प्रभाव है. पूर्व में हृदय नारायण सिंह इस पार्टी के यहां से विधायक रह चुके हैं. समरस समाज पार्टी के बबन सिंह कुशवाहा, माकपा के धीरेंद्र चौधरी और भाकपा के भगवती प्रसाद श्रीवास्तव भी चुनावी नतीजे की दिशा तय करने में जुटे हुए हैं.

वोटर- 124492
2010 में जीतीं: प्रो सुखदा पांडेय (भाजपा)
इस बार 31 प्रत्याशी
महागंठबंधन- संजय कु तिवारी (कांग्रेस)
एनडीए- प्रदीप दुबे (भाजपा)
अन्य- सरोज रजवार (बसपा)

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