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राजनीति समझने में बच्चे हो गये सयाने
झारपुर से सकरी जानेवाली पांच बजे की लोकल समय से खुलती है. ट्रेन में बैठते ही हरना के कन्हैया से मुलाकात होती है. पीठ पर स्कूल बैग लिये कन्हैया अपने बड़े भाई कौशल कुमार झा के साथ गांव जा रहे हैं. कौशल इंटर में पढ़ते हैं, जबकि कन्हैया कक्षा आठ में. वो हॉस्टल में रहते […]
झारपुर से सकरी जानेवाली पांच बजे की लोकल समय से खुलती है. ट्रेन में बैठते ही हरना के कन्हैया से मुलाकात होती है. पीठ पर स्कूल बैग लिये कन्हैया अपने बड़े भाई कौशल कुमार झा के साथ गांव जा रहे हैं. कौशल इंटर में पढ़ते हैं, जबकि कन्हैया कक्षा आठ में. वो हॉस्टल में रहते हैं.
राजनीतिक समझ दोनों को है. इनके पिता झंझारपुर में पेशकार हैं. राजनीति पर चर्चा शुरू होते ही दोनों कमला नदी के पुल की बात उठा देते हैं. कहते हैं, बड़ी लाइन बनने में यही बाधा है. सामने बैठे मुकेश यादव भी हामी भरते हैं. कहते हैं, बड़ी परेशानी होती है, आने-जाने में.
ट्रेन में बैठे ज्यादातर लोग झंझारपुर बाजार से रोजमर्रा का सामान लेकर अपने घरों को जा रहे हैं. ट्रेन की रफ्तार दस से पंद्रह किलोमीटर प्रतिघंटा के बीच होगी. कुछ देर ट्रेन आगे बढ़ती है, तो सभी लोग कौतूहल से देखने लगते हैं. कहते हैं, कमला नदी पर रेल पुल नहीं बन पा रहा है.
इसी वजह से बड़ी लाइन का काम आगे नहीं बढ़ रहा है. ट्रेन ऐतिहासिक पुल से गुजर रही है, जिससे ट्रेन तो गुजरती ही है. इससे मोटर-गाड़ियां व पैदल भी लोग जाते हैं. अपने आप में अनोखा पुल, जब ट्रेन आती है, तो खुद-ब-खुद मोटरगाड़ियों पर सवार लोग रुक जाते हैं और जैसे ही ट्रेन गुजरती है. लोगों का आना-जाना फिर शुरू हो जाता है.
इसी बीच मुलाकात तिलक लगाये नंदन कुमार से होती है. दरभंगा के विभूतनपुर के रहनेवाले नंदन नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं. कहते हैं, इस बार के चुनाव में बिहार के विकास का सवाल है.
नंदन विशेष राजनीतिक दल से सहानुभूति रखते हैं और कहते हैं कि वो ही विकास कर सकता है. इसके लिए नंदन के पास अपने तर्क हैं. ट्रेन इसी बीच लोहना पहुंच जाती है. यहीं पर मोहन कुमार से मुलाकात होती है. खेती करनेवाले मोहन के बच्चे मुंबई में नौकरी करते हैं. मोहन कहते हैं विकास के काम हो रहे हैं. सब तो अच्छा काम कर रहे हैं.
पास में बैठे धीरेंद्र कुमार कहते हैं हर क्षेत्र में काम हुआ है. सड़क, बिजली, स्वास्थ्य व शिक्षा. इसी बीच प्रीति कुमारी कहती हैं, हमको साइकिल मिली है. हम उसी से पढ़ने स्कूल जाते हैं. रेखा देवी बाजार करने के लिए लोहना से झंझारपुर गयी थीं. वो भी ट्रेन के धीरे होते ही उतरने की तैयारी करने लगती हैं. राजनीति पर कुछ नहीं बोलती हैं.
ट्रेन में कक्षा नौ में पढ़नेवाली श्रुति कुमारी व उसके भाई दीपांशु से मुलाकात होती है. दोनों ने वोट देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करनेवाली रैली में भाग लिया है. तनु श्री बीए में पढ़ती हैं. वो भी चुनाव में वोट डालने को लेकर उत्साहित हैं. ट्रेन में संयोग से हम लोग उस डिब्बे में हैं, जिसमें बल्ब जल रहा है.
अन्य डिब्बों में अंधेरा है. नंदन बताते हैं कि रात से समय ट्रेन में सफर करना मुश्किल होता है. इसी बीच ट्रेन मंडन मिश्र हॉल्ट पर पहुंचती हैं, जहां से सूरज परिवार के साथ ट्रेन में बैठते हैं. सूरज जयपुर के होटल में काम करते हैं. साथ में मां व परिवार के अन्य सदस्य हैं.
सूरज की मां अपना नाम नहीं बताती हैं, लेकिन ये कहती हैं कि इंदिरा आवास मिला था, लेकिन एक ही किस्त मिली, जिससे मकान पूरा नहीं हुआ. इंदिरा आवास लेकर ग्रामीण समस्याओं तक पर सूरज व उसके परिजन बात करते हैं. ये लोग गंगा स्नान करने के लिए सिमरिया जा रहे हैं. सकरी से दूसरी ट्रेन पकड़ेंगे. बातचीत के दौरान ही ट्रेन सकरी जंकशन के आउटर पर ट्रेन पहुंचती है.
यहां पर बड़ी व छोटी दोनों लाइन है. इसकी वजह से ट्रेन की रफ्तार काफी कम हो जाती है. पास में बैठे लोग कहते हैं. ट्रेन का ट्रैक बदलना मुश्किल होता है. इसीलिए स्पीड कम की गयी है. अगले कुछ मिनटों में ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुंच जाती है और बीस किलोमीटर लंबी यात्र लगभग 1.40 घंटे में पूरी होती है.
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