राम करते हैं खेती, दशरथ को भी करना होता है घर के काम(सबकी फोटो आयी है) फ्लैग::: ऐसी है रामलीला के कलाकारों की निजी जिंदगीलाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर दिन भर सांसारिक जीवन की भागदौड़ के बाद रात को देवताओं जैसा शुद्ध-सात्विक आचरण अत्यंत कठिन कार्य है. लेकिन, ऐसा ही कठिन जीवन जीना पड़ता है रामलीला के कलाकारों को. उक्त बातें साकची रामलीला मैदान में चल रही रामलीला के कलाकारों के साथ हुई लंबी बातचीत के क्रम में उभर कर सामने आयीं. मध्य प्रदेश के रीवा जिलांतर्गत ग्रामीण क्षेत्र हनुमंता तहसील के करह पहाड़ी गांव से आये अखिल भारतीय सर्वमंगला आदर्श रामलीला मंडल के कलाकारों ने संघर्षमय जिंदगी के साथ ही रामलीला, उसके मंचन आदि में आ रहे बदलावों पर खुल कर बातचीत की. समय : दिन 3:35 बजेस्थान : साकची रामलीला मैदान स्थित रामलीला मंडप. दृश्य : रात में राजा दशरथ के दरबार या राजा जनक की पुष्पवाटिका के रूप में सजा दिखने वाला स्टेज अभी रामलीला मंडली के कलाकारों का खुला शयन कक्ष बना हुआ है. राजा दशरथ और कुंभकर्ण एक दरी पर गहरी निद्रा में लीन हैं. रामजी हनुमानजी को जगाने की कोशिश कर रहे हैं. मंडली के बाकी सदस्य भी जहां-तहां निद्रा के पाश में जकड़े हुए हैं. रावण मंच पर रखी कुर्सी पर बैठे मंडली के सामान की रखवाली कर रहे हैं. रावण (रावण की भूमिका निभाने वाले चक्रपाणि पांडेय) पूछने पर बताते हैं कि मंडली के सदस्य दोपहर का खाना खाने के बाद सो रहे हैं, ताकि रात में तरोताजा होकर अपनी भूमिका ठीक से निभा सकें. बदली है रामलीला22 वर्षों से इसी रामलीला मंडली में विभिन्न भूमिकाएं निभाते आ रहे चक्रपाणि पांडेय बताते हैं कि अब तक मंडल देश के दो दर्जन राज्यों के अलावा नेपाल में भी रामलीला का मंचन कर चुका है. वे बताते हैं कि समय के साथ रामलीला में काफी परिवर्तन आया है. पहले रामलीलाएं देर रात तक चलती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. खास कर शहरी क्षेत्रों में रात्र 10:00 बजे तक लोग घर लौट जाते हैं. पहले रामलीलाओं के कलाकार अशिक्षित होते थे, जिससे उनके संवाद और उनके संप्रेषण में भी वह बात दिखती थी. आज शिक्षा का प्रसार होने से रामलीला के कलाकारों की भाषा भी सुधरी है. रामलीला पहले एक महीने तक चलती थी, लेकिन अाज मात्र दस दिनों में पूरी राम कथा का मंचन करना होता है. रामलीला के लिए आवश्यक सामान का मिलना भी कठिन हो गया है. परिधान, मंच सज्जा के सामान ही नहीं कलाकारों के वस्त्र भी मुश्किल से मिलते हैं. उनके लिए बनारस या मथुरा जाना पड़ता है. यही नहीं रामलीला में जो पर्दे प्रयोग में लाये जाते हैं उन पर परंपरा से रामकथा से संबंधित चित्र ही होते हैं, लेकिन आज ऐसे पर्दे बनते नहीं. उनके लिए कपड़े मंच की माप के अनुसार खरीद कर कलाकारों से खुद पेंटिंग करान होती है, जिसमें एक-एक पर्दे पर हजारों रुपये तक खर्च आता है. दशहरा से ही रामलीला मंचन का दौर आरंभ होता है, जो बरसात से ठीक पहले तक चलता है. इसके बीच में भी कई बार खाली समय मिलता है. पारिवारिक जीवन के बारे में पूछने पर श्री पांडेय तथा वहां उपस्थित अन्य कलाकारों ने भी बताया कि बीच-बीच में चार-छह दिनों का अवकाश मिलता है, उसी में वे घर जाकर परिवार के लोगों से मिल आते हैं. घर के जरूरी काम निपटा आते हैं. वैसे, उन्होंने बताया कि मंडली के सभी 20 कलाकार ग्रामीण कृषक पृष्ठभूमि से आते हैं. इसलिए, खाली दिनों में वे घर के कृषि संबंधी कार्यों में परिवार की सहायता करते हैं. आराम से कट रही है जिंदगी : चक्रपाणियह पूछने पर कि कैसी कट रही है जिंदगी, रावण की भूमिका निभाने वाले चक्रपाणि पांडेय ने कहा कि धर्म प्रचार के काम में लगे हैं. इसलिए, संतोष और आराम के साथ जिंदगी कटती है. रामलीला चल रही हो, तो उसमें खोये रहते हैं. न चल रही हो तो परिवार के काम में लग जाते हैं.पात्र के भाव हावी रहते हैं : भाईजीरामलीला में राम की भूमिका निभा रहे भाईजी की उम्र 22 वर्ष है. वे बताते हैं कि तीन साल से राम बन रहे हैं. अब तो सारे संवाद याद हो गये हैं. लेकिन, मंच पर आने के बाद जब तक चरित्र के अनुरूप भाव मन से नहीं निकलें, तो अभिनय में वह बात नहीं आ पाती. कोशिश रहती है कि भगवान राम के अनुरूप भाव के साथ ही अभिनय करूं. रामलीला के बाद घर में खेतीबाड़ी के कार्य में मदद करता हूं. घर में घर के काम करता हूं : श्यामसुंदरसीता की भूमिका निभा रहे श्यामसुंदर पांडेय बताते हैं कि वे खेतिहर परिवार से हैं. रामलीला में सीता (नारी पात्र) की भूमिका निभाने में बहुत कठिनाई नहीं होती, क्योंकि शुरू से इसी की शिक्षा मिली है. मंच पर आने के बाद पुरुष-स्त्री की बात गौण हो जाती है. परिवार के लोगों का सहयोग एवं समर्थन तो मिलता ही है, मंडली के वरिष्ठ कलाकारों से काफी कुछ सीखा है. इसका उपयोग मंच पर करने की कोशिश करता हूं. घर में किसान, मंच पर हनुमान : सूर्यमनमंच पर हनुमान के रूप में बड़े-बड़े कारनामे करने वाले सूर्यमन पांडेय बताते हैं कि घर में वे भी किसान ही होते हैं. रामलीला में हनुमान बनने के बाद घर और गृहस्थी की याद नहीं रहती. उस समय सिर्फ अपनी भूमिका और उसके भाव याद रखने पड़ते हैं, नहीं तो सब गड़बड़ हो जायेगा.मंच पर राजोचित भाव दिखाना होता है : चंचल गिरिराजा जनक बनने वाले चंदन गिरि मंच पर भले ही जगज्जननी माता सीता के पिता की भूमिका निभाते हों, लेकिन घर में तो अभिनय नहीं किया जाता. वहां घर के कामकाज निपटाते ही हैं. खेतीबाड़ी ही नहीं, घर के अन्य काम भी करते हैं, इसमें कोई संकोच नहीं. घर में तो घर का सदस्य ही होता हूं : हीरालाल मिश्राराजा दशरथ की भूमिका करने वाले रामलीला मंडली के संचालक हीरालाल मिश्रा मंडली के मुख्य निर्देशक भी हैं. कलाकारों को प्रशिक्षण देने के साथ ही अपनी भूमिका भी करनी होती है. पर अनुभव एवं अभ्यास से इसकी आदत सी हो गयी है. घर में तो बहुत कम ही समय दे पाता हूं, लेकिन जब भी घर पर रहूं, पूरी तरह घर का सदस्य होता हूं.
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