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मूल भावना से भटक, तो नहीं रही न्यास समिति!

मूल भावना से भटक, तो नहीं रही न्यास समिति! फोटो – मधेपुरा 07कैप्शन -आस्था का प्रतीक है सिंहेश्वर मंदिर (फाइल फोटो)प्रतिनिधि, सिंहेश्वरकिसी भी धार्मिक न्यास का मूल कार्य मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए श्रद्धालुओं की आस्था की अभिरक्षा करना होता है. विगत तीन दशकों में सिंहेश्वर मंदिर न्यास समिति की कार्यशैली में काफी बदलाव आ गया […]

मूल भावना से भटक, तो नहीं रही न्यास समिति! फोटो – मधेपुरा 07कैप्शन -आस्था का प्रतीक है सिंहेश्वर मंदिर (फाइल फोटो)प्रतिनिधि, सिंहेश्वरकिसी भी धार्मिक न्यास का मूल कार्य मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए श्रद्धालुओं की आस्था की अभिरक्षा करना होता है. विगत तीन दशकों में सिंहेश्वर मंदिर न्यास समिति की कार्यशैली में काफी बदलाव आ गया है. न्यास समिति के निर्णय मानवीय नहीं, बल्कि व्यवसायिक दृष्टिकोण से लिए जा रहे हैं. न्यास समिति अपनी मूल भावना से भटक रही है. — नहीं हुए उल्लेखनीय कार्य–विगत तीन दशकों में सिंहेश्वर मंदिर न्यास समिति ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है. मंदिर के अंदर पत्थर लगाये गये तो तत्कालीन प्रबंधक की कमीशनखोरी का मामला सामने आ गया. हालांकि न्यास की बैठक में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के निर्णय लिया गया लेकिन बाद में मामले को दबा दिया गया. — शौचालय का पर्याप्त प्रबंध नहीं— विगत तीन वर्ष में मंदिर के भीतरी भाग में टाइल्स लगाये गये. इसके कारण दर्जनों श्रद्धालुओं की हड्डियां टूट चुकी है. बाहरी परिसर में फर्श का पक्कीकरण किया गया. न्यास समिति कार्यालय और गांधी पार्क की चारदीवारी बनायी गयी. लेकिन पर्याप्त मात्रा में शौचालय और टॉयलेट के लिए कोई खास कवायद नहीं की गयी. नतीजतन 2.65 की लागत से बने मंदिर परिसर स्थित तालाब शिवगंगा का दक्षिण-पश्चिम कोना हमेशा दुर्गंध से भरा रहता है. — शुल्क कम करने पर हो विचार—अमेरिका में रह रहे भारतीय आप्रवासी दानादाता अद्यानंद सिंह ने मंदिर परिसर में दो धर्मशाला का निर्माण तथा एक धर्मशाला का जीणाोद्धार कराया. इन धर्मशालाओं में एक कमरे का एक दिन शुल्क 150 रुपये है. आधे धर्मशाला की एक दिन की बुकिंग पांच हजार में और पूरे धर्मशाला की बुकिंग शुल्क आठ हजार पांच सौ रुपये है. मंदिर न्यास समिति की ओर से पहले से तीन धर्मशाला का निर्माण कराया गया था. तीसरे धर्मशाला का जीर्णोद्धार कराये जाने के बाद यह जीर्णोद्धारकर्ता के नाम पर हो गया. मंदिर की ओर से निर्मित धर्मशाला में कमरे का शुल्क 25 रुपये प्रतिदिन है. ये धर्मशाला तुरंत भर जाते हैं. मंदिर में कोसी प्रमंडल सहित पूर्णिया प्रमंडल और मधुबनी, दरभंगा तथा नेपाल से भारी संख्या में श्रद्धालु हैं. शुल्क ज्यादा होने के कारण वे लोग पूरे परिसर में फर्श पर खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं.–शुद्ध पेय जल की हो व्यवस्था– न्यास समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए पेयजल की व्यवस्था के नाम पर केवल दो चापाकल है. जबकि दो दशक पहले तक मंदिर परिसर में एक वाटर टावर बना था. पीएचइडी की ओर से इस टावर में जलापूर्ति होती थी तबा नीचे श्रद्धालुओं के पानी पीने के लिए कई नल लगे थे. पेय जल की वैकल्पिक व्यवस्था किये बिना उसे तोड़ कर हटा दिया गया. — मूलभूत सुविधाएं तो जरूर हों—मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए कम शुल्क पर ठहरने की व्यवस्था, दिन भर के लिए आराम करने की निशुल्क व्यवस्था, शुद्ध पेय जल और साफ-सुथरे शौचालय, महिलाओं के लिए कपड़े बदलने की व्यवस्था तो मंदिर परिसर में होना ही चाहिए. अगर ये सामान्य सुविधाएं भी श्रद्धालुओं को न मिले तो न्यास समिति पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है.

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