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नेताजी की मृत्यु अब रहस्य नहीं!

कृपाशंकर चौबे एसोसिएट प्रोफेसर एमजीआइएचयू वर्धा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों के साथ बैठक के बाद नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की जो घोषणा की है, वह बेहद तात्पर्यपूर्ण है. जो काम पंडित नेहरू और उनके बाद की सरकारें नहीं कर पायीं, उसे मोदी सरकार करने जा […]

कृपाशंकर चौबे
एसोसिएट प्रोफेसर
एमजीआइएचयू वर्धा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों के साथ बैठक के बाद नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की जो घोषणा की है, वह बेहद तात्पर्यपूर्ण है. जो काम पंडित नेहरू और उनके बाद की सरकारें नहीं कर पायीं, उसे मोदी सरकार करने जा रही है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस 70 वर्ष से मृत्यु रहस्य के नायक बने हुए हैं. मानव सभ्यता के इतिहास में नेताजी पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने जन्म लिया किंतु मरे नहीं.
असाधारण जीवन की तरह असाधारण मृत्यु ने नेताजी के इर्द-गिर्द रहस्यों का जाल-सा बुन दिया है. नेताजी के नायकत्व के सम्मान की जगह जड़ प्रतिमाओं के देवत्व ने ले ली है. जांच आयोगों की भूलभुलैया में गोया नेताजी किसी जासूसी कथा के चरित्र बना कर रख दिये गये हैं.
18 अगस्त, 1945 को ताईहोकू में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई थी या नहीं, इसे लेकर लंबे समय से विवाद है. तीन-तीन जांच आयोग भी इस रहस्य को नहीं सुलझा सके. 1954 में बने शाहनवाज जांच आयोग और 1970 में बने खोसला जांच आयोग ने अपने-अपने निष्कर्ष में कहा था कि उक्त विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हुई थी, लेकिन 1999 में बने मुखर्जी जांच आयोग ने इन निष्कर्षों को मानने से इनकार कर दिया. मुखर्जी आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपते हुए यह आरोप भी लगाया था कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों ने बार-बार मांगे जाने के बावजूद कई दस्तावेज उसे नहीं मुहैया कराये.
अब तक दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किये जाने का आशय स्पष्ट था कि सरकार नेताजी की मृत्यु के सच से पर्दा नहीं उठाना चाहती थी. आखिर सरकार नेताजी के जीवन एवं उनके गायब होने से जुड़े दस्तावेजों को क्यों दबाये रखना चाहती थी? सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किये जाने और जांच आयोगों से सहयोग नहीं किये जाने के कारण ही नेताजी की मृत्यु का रहस्य आज भी कायम है.
पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को पिछले माह सार्वजनिक कर केंद्र सरकार पर यह दबाव बढ़ा दिया था कि वह अपने अधीन नेताजी के संबंधित 130 फाइलों को सार्वजनिक करे. बंगाल में सार्वजनिक हुई फाइलों से इसका खुलासा होता है कि आजादी के बाद भी नेताजी के परिजनों की जासूसी होती रही. यह सवाल पहले भी बार-बार उठता रहा है कि कांग्रेस सरकार ने नेताजी के परिवार वालों की जासूसी करवायी है. केंद्र सरकार की फाइलों के सार्वजनिक होने से ही इसका भी पता चलेगा कि नेताजी के परिजनों व रिश्तेदारों की जासूसी के पीछे ब्रिटिश सरकार और नेहरू के बीच क्या संधि हुई थी?
देश चाहता है कि नेताजी अब और अधिक दिनों तक मृत्यु रहस्य के नायक न रहें. खुलासा होना चाहिए कि नेताजी की मौत कैसे हुई थी. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर कहा जाता रहा है कि नेताजी 18 अगस्त, 1945 को हुई कथित विमान दुर्घटना के बाद भी जीवित थे और वे इस दौरान रूस में कैद थे. राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेज में बताया गया है कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को ताईवान में हुई, लेकिन ताईवान के सरकारी रिकाॅर्ड में 18 अगस्त, 1945 को किसी विमान हादसे की घटना का उल्लेख ही नहीं है.
मोदी सरकार ने नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया 23 जनवरी, 2016 से प्रारंभ किये जाने की घोषणा की है. यही क्या, विदेशों में भी मौजूद नेताजी से जुड़ी फाइलों को भी सार्वजनिक किये जाने के लिए भारत सरकार ने प्रयास करने का ऐलान किया है. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया संपन्न होने के बाद नेताजी के जीवन का अंतिम सच सामने आ सकेगा और इस तथ्य से भी पर्दा हट सकेगा कि नेताजी को दान की गयी विपुल संपत्ति का क्या हुआ.
नेताजी की अपील पर प्रवासी भारतीयों ने आजाद हिंद फौज को खुल कर दान किया था. आजाद हिंद फौज को दान में मिले करोड़ों रुपये की संपत्ति को किसने हड़प लिया? 1947 से लेकर 1955 के बीच पंडित नेहरू को चार कूटनीतिज्ञों ने नेताजी की संपत्ति के बारे में बताया, किंतु नेहरू मौन रहे. क्या आजाद हिंद फौज की संपत्ति को बैंक में किसी प्रभावशाली कांग्रेस नेता ने अपने नाम से जमा कराया था?
विदेशों से आइएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) की संपत्ति यह कह कर भारत लायी गयी कि एक ट्रस्ट बनाया जायेगा, किंतु किया गया ठीक उसके उलटा. उसे निजी एकाउंट में जमा कर दिया गया. इंडियन ओवरसीज बैंक में डेढ़ लाख पाउंड मूल्य का सोना जमा कराये जाने की बात कही जाती है. इस धन के रहस्य के साथ नेताजी की मृत्यु के रहस्य में क्या रिश्ता रहा है, इसे भी सुलझाने में केंद्र के पास मौजूद गोपनीय फाइलें मददगार हो सकती हैं.

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