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सुरसर नदी में पुल नहीं रहने का खामियाजा भुगत रहे ग्रामीण

छातापुर : वर्ष 2008 में आयी प्रलयंकारी कुसहा त्रासदी में सुरसर नदी पर बना काठ पुल ध्वस्त हो जाने के कारण प्रखंड के माधोपुर पंचायत की हजारों आबादी को आवागमन के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. एक तरफ जहां जिले भर में कई जगहों पर सड़कों का जाल बिछा हुआ है, वहीं माधोपुर […]

छातापुर : वर्ष 2008 में आयी प्रलयंकारी कुसहा त्रासदी में सुरसर नदी पर बना काठ पुल ध्वस्त हो जाने के कारण प्रखंड के माधोपुर पंचायत की हजारों आबादी को आवागमन के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है.

एक तरफ जहां जिले भर में कई जगहों पर सड़कों का जाल बिछा हुआ है, वहीं माधोपुर पंचायत की हजारों की आबादी को प्रतिदिन जान जोखिम में डाल कर नाव पर पार गमन करने को मजबूर हैं.

33 वर्ष पूर्व हुआ था पुल का निर्माण एस एच 91 से अररिया सीमा को जोड़ने वाली इस मुख्य सड़क के बीच सुरसर नदी पर वर्ष 1982 में विनोवा भावे के नाम पर राज्य का दूसरा सबसे बड़ा काठ पूल का निर्माण कराया गया था.

जो वर्ष 2008 में आये कोसी जल प्रलय मे ध्वस्त हो गया. इस पूल के निर्माण के लिए स्थानीय लोगों द्वारा सांसद से लेकर विधायक के चौखट तक का दरवाजा खटखटाया गया. लेकिन अब तक नतीजा सिफर रहा. एन एच 57 तथा प्रखण्ड मुख्यालय से चून्नी जाने वाली पथ मे नदी पर पूल बनाया गया.

लेकिन इस बीच तकरीबन 23 किलोमीटर कि दूरी में नदी पर एक भी पूल का निर्माण नही हो सका है. जिस कारण प्रखंड क्षेत्र के दर्जनों गांव के लोगों को अररिया सीमा में प्रवेश करने लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.

क्या है लोगों की शिकायत माधोपुर पंचायत के पूर्व मुखिया पति मो हसन अंसारी, मो मिन्नतुल्लाह, भीम शंकर चौधरी , सुरेंद्र भगत, खुर्शीद खान, मदन श्रीवास्तव, एजाजुल खां, ललन भुस्कुलिया आदि ने बताया कि 33 वर्ष पूर्व बना यह पूल कुसहा त्रासदी से पूर्व ही जर्जर अवस्था में था, जिसपर किसी तरह लोग सफर कर लेते थे.

नी यह पुल भी त्रासदी की भेंट चढ़ गया. तब से लेकर आज तक एक बड़ी आबादी को आवागमन की समस्या बनी हुई है. बीमार लोगों को चिकित्सा सुविधा के लिए भी भटकना पड़ता है. शादी विवाह हो या फिर अन्य आयोजन. स्थानीय लोगों को जरूरी कार्य के निष्पादन को लेकर प्रखंड मुख्यालय पहुंचने में भारी परेशानी उठानी पड़ रही है. साथ ही गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए अनावश्यक रूप से लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.

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