संयुक्त राष्ट्र : भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक एवं वित्तीय प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने का आह्वान किया है कि घोर गरीबी के बोझ तले दबी सभी महिलाएं सम्मानजनक जीवन जी सकें. संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के प्रथम सचिव मयंक जोशी ने महासभा में ‘थर्ड कमेटी’ के सत्र में कल ‘एडवान्समेंट ऑफ वूमन’ पर अपनी बात रखते हुए कहा ‘दुनिया भर में महिलाएं घोर गरीबी के बोझ तले दबी हैं.’ उन्होंने कहा ‘दुनिया भर में बढते सशस्त्र संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट और प्राकृतिक आपदाओं के चुनौती भरे समय में हमारे लिए यह जरुरी है कि समानता, गरीबी से मुक्त और निरंतर आगे बढती दुनिया के साथ-साथ सभी महिलाओं और लडकियों के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के लिए प्रयासों के वास्ते फिर से रणनीति बनाने और प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने की खातिर इस ऐतिहासिक अवसर का लाभ उठाएं.’
जोशी ने कहा कि आईटी सहित नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियां महत्वपूर्ण संसाधन हैं और इनके साथ सोशल मीडिया तथा इंटरनेट के उपयोग से हम लिंग आधारित रणनीतियों के विश्व भर में कार्यान्वयन में उल्लेखनीय सुधार कर सकते हैं. इस संबंध में उन्होंने कहा कि हिंसा, कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन, मानव तस्करी, बाल विवाह पर रोक और यौन अपराधों तथा शोषण से बच्चों की रक्षा सहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत में कई कानून हैं. जोशी ने कहा कि महिलाओं की सामाजिक तथा राजनीतिक आधिकारिता देश में समावेशी एवं सतत वृद्धि एवं विकास का अहम हिस्सा है.
संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के प्रथम सचिव मयंक जोशी ने कहा ‘अधिकार संपन्न होने का लक्ष्य हासिल करने के लिए महिलाओं को कानूनी शिक्षा कार्यक्रम में उनके कानूनी अधिकारों (जैसे संपत्ति पर अधिकार, गुजाराभत्ता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, रोजगार में समान व्यवहार का अधिकार, श्रम कानून, लिंग आधारित संवेदनशीलता आदि) के बारे में जागरुक किया जा रहा है.’ जोशी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का जिक्र किया जिसमें सुनिश्चित किया गया है कि सृजित किये गये आधे रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित रहें और उन्हें पुरुषों के समान ही वेतन मिले.
उन्होंने कहा कि जन धन योजना भी गरीबी और कर्ज से बेहाल हजारों महिलाओं के लिए आर्थिक सफलता के तौर पर साबित हो रही है. इस बीच, एपी की एक खबर में कहा गया है कि महिलाओं के मामले देखने वाली विश्व संस्था की महिला एजेंसी की प्रमुख फुमजिला लाम्बो गकुका ने एक ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के 15 साल पहले पारित होने के बावजूद शांति वार्ताओं में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम होने की आलोचना की है. 15 साल पहले पारित संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव में महिलाओं को शांति रक्षा एवं शाति निर्माण के हर स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने का आह्वान किया गया था.
फुमजिला ने कहा कि बढते सबूत बताते हैं कि सफलतापूर्वक शांति स्थापना के लिए महिलाओं की भागीदारी ऐसा प्रयास है जिसका अब तक बहुत ही कम उपयोग किया गया है. ‘द वॉयस ऑफ लीबियन वूमन’ संगठन की प्रमुख अला मुराबित ने सदस्य देशों पर ऐसे महत्वपूर्ण प्रयास की अनदेखी करने का आरोप लगाया जो कभी अत्यावश्यक नहीं रहा और यह है महिलाओं की भागीदारी.