लीमा (पेरु) : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विश्वबैंक समूह में भारत सहित अन्य विकासशील देशों की अंशधारिता बढाने पर जोर दिया है जो विश्व अर्थव्यवस्था में उनके हिस्से को परिलक्षित करे. इसके साथ ही उसने विश्व बैंक की पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि की मांग की है ताकि विकास के लिए ऋण की जरुरतों को पूरा किया जा सके. जेटली ने कहा कि आगे भी विकास के लिए कर्ज की मांग ऊंची बनी रहेगी. उन्होंने बैंक की एक रपट का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि 2018 के बाद अधिक ऋण का स्तर ऊंचा रखने में असमर्थता की बात स्वीकार की गयी है. विश्व बैंक की इकाई आईएफसी (इंटरनेशनल फाइनांस कार्पोरेशन) तो पहले ही पूंजी की कमी से दोचार है. इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 100 अरब डालर सालाना से अधिक की राशि जुटाना की अतिरिक्त चुनौती भी है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यहां विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की विकास समिति के पूर्ण अधिवेशन को संबोधित करते हुए यह जरुरत व्यक्त की. उन्होंने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए वित्तपोषण तथा योजनाओं के क्रियान्वयन में विश्व बैंक की भूमिका बढाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि भारत को उम्मीद है कि 2016 की सालाना बैठक तक विश्व बैंक की अंशधारिता में सुधार के लिए किसी गतिशील फार्मूले को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस फार्मूले में ‘विकासशील देशों की आवाज, भूमिका व वोटिंग भागीदारी बढाने वाले कारक शामिल होने चाहिए और यह फार्मूला वैश्विक जीडीपी में विकासशील देशों की बढी हिस्सेदारी को परिलक्षित करने वाला हो.’ जेटली ने कहा कि विश्व जीडीपी में विकासशील व ‘संक्रमण के दौर से गुजर रही’ अर्थव्यवस्थाओं का हिस्सा 2008-2009 में 39 प्रतिशत था जो कि 2013-15 में बढकर 49 प्रतिशत हो गया. यह समिति विकास संबंधी मामलों पर विश्वबैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की मंत्री स्तरीय समिति है जो विकास के मुद्दों पर सर्वसम्मत राय बनाने का प्रयास करती है.
भारत, बांग्लादेश और भूटान शीघ्र फल देने वाले देश
जेटली ने इस बैठक में भारत के साथ साथ श्रीलंका, बांग्लादेश व भूटान का प्रतिनिधित्व किया. जेटली ने कहा कि भारत, बांग्लादेश और भूटान शीघ्र फल देने वाले देश हैं और वे अपनी जनसंख्या संबंधी विशेषताओं का इस्तेमाल कर सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के कदम उठा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘कार्यकारी निदेशकों और विश्वबैंक को सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में वित्त की आवश्यकता का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना चाहिए. मुझे पक्का भरोसा है कि इस तरह के आकलन से विश्वबैंक समूह की पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता महसूस होगी ताकि विकास के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके.’ उन्होंने कहा, ‘मैं चाहूंगा कि ये संसाधन नये एवं अतिरिक्त स्रोतों से जुटाये जाएं न कि गरीबी व साझा समृद्धि के लिए दी जाने वाली सरकारी विकास सहायता को काटकर. आईबीआरडी (विश्वबैंक) की ओर से मिलने वाली वह सहायता जो गैर रियायती है और जो दानदाता देशों के संसाधनों से नहीं आती है, उसे 100 अरब डालर के प्रवाह में नहीं गिना जाना चाहिए.’ वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने ट्विटर पर कहा, ‘भारत ने दोनों संस्थाओं (विश्वबैंक व मुद्राकोष) की संचालन व्यवस्था में सुधार की मांग की है ताकि विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में विकासशील देशों की बढती हिस्सेदारी इन संस्थानों में परिलक्षित हो. वह भी विश्वबैंक-मुद्राकोष बैठक में शामिल होने आए हैं.
भारत की वृद्धि दर 7.5 फीसदी रहेगी
जेटली ने कहा, ‘हालांकि मैं यह जरुर कहना चाहूंगा कि हमारे क्षेत्र के देश वैश्विक नरमी के रुझानों के विपरीत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और उनकी आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षाकृत अच्छी रहेगी जिसमें भारत की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत, बांग्लादेश की 6.3 प्रतिशत, श्रीलंका की 6.5 प्रतिशत और भूटान की 7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.’ वर्ष 2015 के लिए महज 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान के साथ विकासशील देशों के लिए परिदृश्य कुल मिलाकर खराब हुआ है. वित्त मंत्री ने कहा, ‘विकासशील देशों के लिए सतत रूप से बढने और समृद्धि प्राप्त करने के लिए मजबूत एवं समावेशी वृद्धि दर हासिल करना जरुरी है. सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने एवं विश्वबैंक के दोहरे लक्ष्यों के लिए भी इस तरह की वृद्धि आवश्यक है.’ सतत विकास के लक्ष्यों को महत्वाकांक्षी करार देते हुए उन्होंने कहा कि इसको प्राप्त करने के लिए कर्ज और क्रियान्वयन की महत्वाकांक्षी योजनाओं की जरुरत है. विश्वबैंक को मानव संसाधन विकास, आर्थिक वृद्धि, रोजगार और सामाजिक भागीदारी पर काम करने की जरुरत है. जेटली ने कहा कि बहुपक्षीय विकास वित्त संस्थानों को निजी और सार्वजनिक स्रोतों से विकास के लिए व्यापक स्तर पर और दीर्घकालिक वित्त के प्रबंध के लिए और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने कहा कि विश्व बैंक द्वारा प्रस्तावित ‘पर्यावरण व सामाजिक व्यवस्था’ पर चर्चा के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रस्तावित व्यवस्था व्यावहारिक, क्रियान्वयन में सुविधाजनक तथा समय व साधन की दृष्टि से वहनीय हो.
आईएमएफसी की बैठक में जेटली ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर की चर्चा
एक आधिकारिक बयान के अनुसार, वित्त मंत्री जेटली ने कल मुद्राकोष की अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्त समिति (आईएमएफसी) के सीमित सत्र एवं मुद्राकोष व विश्व आर्थिक मंच द्वारा आयोजित विश्व के आर्थिक नेताओं की अनौपचारिक बैठक में भी हिस्सा लिया था. आईएमएफसी की बंद कमरे में हुई बैठक में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में गिरावट और बाजार में उतार-चढाव व जोखिमों पर चर्चा हुई. जेटली बाद में फाइनेंशियल टाइम्स और सिटीग्रुप द्वारा ‘मुद्रा अवस्फीति तथा बिखराव के दौर में वृद्धि और स्थिरता’ शीर्षक से आयोजित परिचर्चा में भी हिस्सा लिया. इस मौके पर वित्त मंत्री ने कहा कि भारत में आर्थिक परिस्थितियां काफी कुछ नियंत्रण में हैं, यद्यपि देश में दो साल से मानसून सामान्य से कम रहा है. उन्होंने कहा कि कच्चे तेल व जिंसों के दाम गिरने से भारत सरकार को बुनियादी ढांचे व सिंचाई सुविधाओं पर सार्वजनिक निवेश बढाने में मदद मिली है. उन्होंने चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 35 प्रतिशत वृद्धि का उल्लेख भी किया. उन्होंने कहा कि ढांचागत क्षेत्र में सरकारी निवेश बढने से निजी क्षेत्र का निवेश उत्प्रेरित हो रहा है, मुद्रास्फीति 15 महीनों में 11 प्रतिशत से घटकर 3.7 प्रतिशत पर आ गयी है. इससे बैंकों का कर्ज और पूंजी सस्ती करने में मदद मिली है.
राजकोषीय घाटा नियंत्रण में, एफडीआई भी मजबूत
जेटली ने कहा कि भारत राजकोषीय अनुशासन के रास्ते पर है और राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4 प्रतिशत तक सीमित रखने में कामयाब रहा है. उन्होंने कहा कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी मजबूत है. वित्त मंत्री ने विदेशी मीडिया में आई रपटों का हवाला देते हुए कहा कि पिछले छह महीनों में भारत नयी परियोजनाओं में निवेश का एक प्रमुख केंद्र रहा है जो देश के प्रति विदेशी निवेशकों के ऊंचे भरोसे का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि देश का विदेशी विनिमय बाजार और वित्तीय बाजार भी संतुलित है, जबकि हाल में विश्व स्तर पर बाजारों में काफी उठापटक रही है. जेटली ने सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों में सुधार के लिए उठाए जा रहे कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि सुधार का वातावरण अनुकूल है. देश में सहयोगपूर्ण संघवाद के बाद अब प्रतिस्पर्धी संघवाद का रुझान है जहां विभिन्न राज्य सरकारें महत्वपूर्ण सुधारों के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं ताकि उनके यहां कारोबारी माहौल का स्तर बेहतर दिखे, मंजूरियों में तेजी लायी जा सके और निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके. वित्त मंत्री ने कहा कि वस्तु एवं सेवाकर विधेयक और नया दिवालिया कंपनी विधेयक पारित कराना सरकार की उच्च प्राथमिकता है.
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