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लेखकों ने विरोध तेज किया, गणेश देवी और अमन सेठी ने भी साहित्य अकादमी लौटाया

नयी दिल्ली : गुजरात के लेखक गणेश देवी और अमन सेठी ले भी आज अपना साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार को लौटा दिया. इससे पहले पंजाब से तीन और प्रख्यात लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की आज घोषणा की, जबकि कन्नड लेखक अरविंद मलगत्ती ने संस्था की आम परिषद से इस्तीफा दे दिया है. इसके […]

नयी दिल्ली : गुजरात के लेखक गणेश देवी और अमन सेठी ले भी आज अपना साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार को लौटा दिया. इससे पहले पंजाब से तीन और प्रख्यात लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की आज घोषणा की, जबकि कन्नड लेखक अरविंद मलगत्ती ने संस्था की आम परिषद से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही ‘बढ़ती असिहष्णुता’ और ‘साम्प्रदायिक’ माहौल पर साहित्यकारों के बढ़ते विरोध में ये लोग भी शामिल हो गए.

तर्कवादी एमएम कलबुर्गी की हत्या पर साहित्य अकादमी की चुप्पी को लेकर साहित्यिकारों ने विरोध तेज कर दिया है, वहीं इसके अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि शीर्ष साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में है और कहीं भी किसी लेखक या कलाकार पर हमले की निंदा करती है. इसने संविधान में निहित ‘मूल धर्मनिरपेक्ष मूल्यों’ और ‘सभी के जीवन के अधिकार’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई.
प्रख्यात लेखक गुरबचन भुल्लर, अजमेर सिंह औलख और आत्मजीत सिंह ने नयनतारा सहगल, सारा जोसफ, उदय प्रकाश और अशोक वाजपेयी जैसे कई अन्य लेखकों की तरह अपना पुरस्कार लौटाने की आज घोषणा की. उन्होंने मांग की है कि अकादमी अपने सदस्य कलबुर्गी और अन्य तर्कवादियों की हत्या के खिलाफ तथा दादरी कांड के मद्देनजर साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ अपना बयान जारी करे. भुल्लर ने कहा कि वह देश के सामाजिक ताने बाने को बिगाडने की कोशिशों को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि वह देश में बनाए जा रहे साम्प्रदायिक माहौल को लेकर बहुत परेशान हैं और केंद्र सरकार एक धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक देश का प्रतिनिधि होने के तौर पर अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है.
भुल्लर ने कहा कि हाल के समय में देश के सामाजिक ताने बाने को बिगाडने की कोशिशों और एक कार्ययोजना के तहत साहित्य और संस्कृति को खासतौर पर निशाना बनाए जाने ने उन्हें चिंतित कर दिया है. पंजाब के बठिंडा में जन्में 78 वर्षीय भुल्लर को उनकी लघु कथा पुस्तक ‘अग्नि कलश’ को लेकर 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. प्रख्यात पंजाबी लेखक औलख ने कहा कि प्रगतिशील लेखकों, तर्कवादी लेखकों पर हमले और शिक्षा एवं संस्कृति के जबरन भगवाकरण से वह बहुत आहत हैं.
उन्होंने कहा कि वह देश में बनाए जा रहे साम्प्रदायिक माहौल से परेशान हैं और केंद्र सरकार धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक देश के प्रतिनिधि के तौर पर अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है. पंजाबी थियेटर की जानी मानी शख्सियत आत्मजीत सिंह ने आज कहा कि वह अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ महीनों से देश में साम्प्रदायिक वैमनस्य की घटनाओं से वह बहुत आहत हैं. अकादमी की और किरकिरी करते हुए अरविंद मलगत्ती ने प्रगतिशील विचारक एवं विद्वान कलबुर्गी की हत्या पर अकादमी की चुप्पी की निंदा की और इसकी आम परिषद से इस्तीफा दे दिया है.
मलगत्ती ने कहा कि कलबुर्गी, गोविंद पानसरे जैसी शख्सियतों की हत्या और दादरी में भीड़ द्वारा पीट…पीट कर एक व्यक्ति की जान लेने जैसी घटनाएं इस देश में संवैधानिक अधिकारों पर एक हमला है. अकादमी की आम परिषद में विभिन्न विश्वविद्यालयों के 20 प्रतिनिधियों में मलगत्ती भी शामिल हैं. हाल ही में शशि देशपांडे, के. सतचिदानंदन, पीके पराक्कडावु जैसी साहित्यिक शख्सियतों ने इसी तरह के कारणों का हवाला देते हुए अकादमी में अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था. इस बीच, कवि एवं आलोचक आदिल जुस्सावाला ने आज साहित्य अकादमी से लेखकों की अस्वीकार्य सेंसरिंग की निंदा करने की अपील की. उन्हें 2014 में अकादमी ने सम्मानित किया था.
जुस्सावाला ने अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को पत्र लिखा है. उधर, श्रीनगर में कश्मीरी विद्वानों के एक संघ ने अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला करने वाले प्रख्यात लेखकों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए आज शीर्ष साहित्यिक संस्था से बढ़ते साम्प्रदायिक उन्माद पर अपनी चुप्पी तोड़ने को कहा. उत्तर कश्मीर के 25 साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संगठनों की संस्था अदबी मारकाज कामराज (एएमके) के अध्यक्ष सुजात बुखारी ने यहां एक बयान में कहा, ‘‘वे अंतरआत्मा वाले लोग हैं और उन्होंने दिल की जुबान में बोला है.’

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