सुपौल : भूमंडली करण के दौर में कोसी की जनता इतनी जागरूक हो चुकी है कि स्थानीय राजनीति के साथ- साथ देश की राजनीति की समीक्षा करने का माद्दा रखती है.
इसे लेकर प्रत्येक मतदाता का सोच अलग है ही, वहीं विचार में भी विविधता देखने को मिल रही है. ऐसे में जनप्रतिनिधियों को अपनी डगर पार करना दुरूह व कठिन होता दिख रहा है.
देश की राजनीति में बिहार विधानसभा का चुनाव बहुत मायने रखता है. इसे लेकर राष्ट्रीय व अधिकसंख्य क्षेत्रीय पार्टियां पूरी ताकत लगा देती हैं, ताकि अपनी पहचान को स्थापित कर सकें. पर मतदाता सब जानते हैं.
चुनाव के अंतिम चरण में जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान कराया जाना है. मतदाताओं के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी करायी जा सके, इसके लिए चुनाव आयोग के निर्देशानुसार जिला प्रशासन द्वारा विभिन्न प्रकार के अभियान चला कर मतदाताओं को जागरूक भी किया जा रहा है.
कोसी की तबाही से त्रस्त अधिसंख्य मतदाता आज के चुनावी स्वरूप व उम्मीदवारों के विचार से अवगत हैं कि चुनाव जीतने के बाद विजयी प्रत्याशी स्थानीय समस्याओं के बारे में कितना सोचते हैं. भले ही चुनाव के समय उम्मीदवार दर्जनों कार्यकर्ताओं के साथ घर- घर जाकर मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट डालने के लिए रिझा लेते हैं,
लेकिन जिस तरीके से विभिन्न पार्टियों के आला कमान सहित शीर्ष नेताओं द्वारा विकास के मुद्दे से भटक कर बयानबाजी की जा रही है. इससे मतदाता हतप्रभ व हताश हैं.
प्रभात खबर द्वारा की गयी राय शुमारी में वोटरों ने जनप्रतिनिधियों के स्वरूप को इस प्रकार बयां किया.ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवक सदा शिव झा उर्फ पीके का मानना है कि सभी जनप्रतिनिधियों के बोल वचन एक समान ही रहते हैं. चुनाव खत्म होने के बाद जनप्रतिनिधि से तथाकथित लोगों का ही विकास होता आ रहा है.
इस कारण जनप्रतिनिधि व मतदाता के बीच दूरियां बढ़ती रही हैं. लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि को ऐसा नजरिया कतई नहीं रखना चाहिए. डॉ पुरुषोत्तम वर्मा ने कहा कि जनप्रतिनिधि को कभी भी वैमनस्यता, ईष्या व द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए. वर्तमान राजनीति में उम्मीदवार पर इसका व्यापक असर देखने को मिलता है.
मत का दान किया जाना वोटर की इच्छा पर निर्भर करता है. जनप्रतिनिधि को व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि सामूहिक विकास की बात करनी चाहिए.किसान जय शंकर ठाकुर का मानना है कि चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि कम से कम महीने में एक बार अपने क्षेत्र का भ्रमण करें, तो क्षेत्रवासियों के समक्ष कोई समस्या नहीं रहेगी.
जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी व स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ कर दें. क्षेत्र का विकास स्वत: हो जायेगा.किसान बेचन कामत ने बताया कि जनप्रतिनिधि ऐसा होना चाहिए, जो समाज में फैल रहे जातिवाद व कटुता के बीच सदभाव का माहौल पैदा करे. साथ क्षेत्र की मूलभूत समस्या पर विशेष रूप से ध्यान दे.
अमहा निवासी छात्र रोशन कुमार ने बताया कि जन प्रतिनिधि को शिक्षा व्यवस्था पर विशेष रुप से पहल करने की आवश्यकता है. वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि नौनिहालों को स्कूल में ससमय खाना मिले इस पर विभाग विशेष रूप से ध्यान दे रहा है, लेकिन प्रतिदिन बच्चों को कितना सिखाया गया इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. बेरोजगारी का दंश झेल रहे दीपक कुमार का मानना है कि जिले भर में हजारों युवा रोजगार को लेकर भटक रहे हैं.
जन परतिनिधि को चाहिए कि उद्योग लगवा कर रोजगार उपलब्ध करायें, जिससे क्षेत्र की दशा व दिशा बदल सके.व्यवसायी सत्तो सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधि प्रजातंत्र का मतलब समझें. भारतीय संविधान का पालन करते हुए क्षेत्र की समस्याओं पर पहल करें. लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का स्थान नौकरशाह से उपर है.
बरैल निवासी मुरारी झा का मानना है कि जनप्रतिनिधि को नि:स्वार्थ भाव से कार्य कर चाहिए. जनतंत्र में जनता की भूमिका अहम है. आज के दौर में जनप्रतिनिधि सत्ता सुख भोगने को लालायित हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.