कांग्रेस के महासचिव डॉ शकील अहमद ने कहा कि चुनाव में महागंठबंधन को बहुमत से ज्यादा सीटें मिलेंगी. कांग्रेस निराश नहीं है और वह अपनी अधिकतर सीटें जीतेगी. राजनीतिक मुद्दों पर उनसे बातचीत की मिथिलेश ने.
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य
किसी भी लड़ाई को हल्के में नहीं लेना चाहिए. हम कह सकते हैं कि महागंठबंधन का एज है, अपर हैंड है. हम चुनाव जीत रहे हैं. महागंठबंधन बहुमत के आंकड़े से अधिक सीटें लायेगा. हमारा सामाजिक समीकरण और सुदृढ हुआ है. दूसरा, भाजपा और आरएसएस के कुछ गंभीर और खतरनाक बयान ने जनता को महागंठबंधन के पक्ष में सोचने को मजबूर कर दिया है.
आरक्षण को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से लोगों के मन में एक बात बैठ गयी है कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार आयी तो आरक्षण को किसी न किसी बहाने समाप्त कर दिया जायेगा या कम कर दिया जायेगा. आरएसएस ही जननी है भाजपा की, जनसंघ की. यद्यपि भाजपा इस पर परदा डालने की कोशिश कर रही है. लेकिन कहावत है कि बंदूक से निकली गोली और मुंह से निकली बोली वापस नहीं होती.
महागंठबंधन में साझा प्रचार नहीं
साझा प्रचार हो रहा है. भाजपा और एनडीए यह गलत मैसेज देने की साजिश रच रही है कि कांग्रेस, जदयू और राजद के नेताओं में समन्वय नहीं है. कांग्रेस के नेता भी जदयू और राजद के उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. जदयू और राजद के नेता भी कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. यह व्यावहारिक है ही नहीं कि तीनों गंठबंधन के प्रमुख नेता सभी 243 सीटों पर प्रचार के लिए एक साथ जायें. कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने राजद और जदयू के साथ गांधी मैदान में आयोजित रैली में शिरकत की. राहुल गांधी की मीटिंग में भी जदयू और राजद के नेता शामिल हुए. अभी तीन अक्तूबर को सोनिया गांधी कहलगांव और वजीरगंज में आयी थीं. उस सभा में भी दोनों दल के नेता उपस्थित हुए. सोनिया और राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता हैं. उनके सामने देश के सभी राज्यों की पार्टी की समस्या रहती है. वैसे मुङो इस बात की उम्मीद है कि आने वाले चरणों में कहीं न कहीं एक मंच पर गंठबंधन के नेता दिख सकते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद व कांग्रेस में तालमेल था. तब भी अलग-अलग प्रचार हुआ था.
बिहार में कांग्रेस की उपलब्धि
प्रधानमंत्री की बात को बिहार के लोग अब उतनी गंभीरता से नहीं लेते, जितनी लोकसभा चुनाव के दौरान लिया करते थे. साधारण मसलों पर प्रधानमंत्री के जरूरत से ज्यादा बोलने तथा खास मुद्दों पर चुप्पी साध लेने से लोगों में उनके प्रति निराशा के भाव पैदा होने लगे हैं. 1990 के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं रही. नवंबर 2000 के बिहार से झारखंड के अलग हो जाने के पहले प्रदेश में जितने भी विकास के कार्य हुए, वह सब कांग्रेस की ही देन है. हाल के दिनों में बिहार में दो-दो केंद्रीय विश्वविद्यालय केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ही देन है. महात्मा गांधी सेतु भी इस कड़ी में है.
25 साल पहले अग्रणी, आज स्टेपनी
सह बात सही है कि 1990 के बाद कांग्रेस पार्टी शासन में नहीं रही. धर्म के आधार पर, वर्ग के आधार पर पार्टियां मजबूत होती गयीं. इससे कांग्रेस की ताकत में कमी आयी है. भागलपुर दंगे ने कांग्रेस की सेहत को बहुत प्रभावित किया. कांग्रेस हमेशा से इस बात को कहती आ रही है कि वह सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करती है, किसी एक धर्म और वर्ग को लेकर चलने में नहीं. कांग्रेस कमजोर हुई है पर निराश नहीं है. कांग्रेस को भरोसा है कि लोग उसकी तरफ लौट कर आयेंगे.
सोनिया पर पीएम का बयान
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कभी सरकारी पद पर नहीं रहीं. उन्होने प्रधानमंत्री का पद ठुकराया है. जनतंत्र में आपको अधिकार है कि आप किसी पर भी आरोप ला सकते हैं. मगर, जो सच्चाई है, जिसे लोग जानते हैं, वह कभी झूठ नहीं हो सकता. मैं पूरी जिम्मेवारी के साथ कहना चाहता हूं कि नरेंद्र मोदी से अधिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देनेवाला कोई दूसरा प्रधानमंत्री इस देश में नहीं हुआ.
गुजरात विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी पर मुख्यमंत्री रहते चालीस हजार करोड़ रु पये का लाभ एक व्यापारी मित्र को पहुंचाने का आरोप है. सीएजी की ही रिपोर्ट पर कांग्रेस गंठबंधन वाली केंद्र सरकार पर कोयला घोटाला, टू जी घोटाला और कॉमनवेल्थ घोटाला का आरोप लगा. जिस रिपोर्ट के दम पर हम भ्रष्ट हो गये, उसी रिपोर्ट के दम पर नरेंद्र मोदी कैसे बच सकते हैं. मोदी दुनिया के एकमात्र ऐसे शासनाध्यक्ष हैं, जिन्होंने अपने देश की विदेशों में आलोचना की है.
अध्यादेश, फिर लालू से समझौता
यूपीए सरकार ने दागियों को चुनाव से रोकने का जो अध्यादेश लाया था, वह सिर्फ लालू प्रसाद के खिलाफ नहीं था. बल्कि कांग्रेस के नेता रशीद मसूद के खिलाफ भी था. रशीद मसूद पर उस समय के भ्रष्टाचार के आरोप थे जब वह कांग्रेस में नहीं, बल्कि दूसरे दल में थे. राहुल गांधी का भ्रष्टाचार को लेकर अपना स्टैंड था, जिसे पार्टी ने स्वीकार किया. इससे दोनों दलों के बीच कोई तल्खी नहीं आयी. इसके तुरंत बाद लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस और लालू प्रसाद साथ-साथ आये.
जाति की राजनीति
बिहार में सबसे बड़ा खतरा सांप्रदायिकता है. कांग्रेस नहीं चाहती कि सांप्रदायिक तनाव उस चरम पर पहुंचे कि देश पर एक बार फिर विभाजन का खतरा उत्पन्न हो जाये.
ओवैसी व थर्ड फ्रंट से नुकसान
यह सही है कि इन पार्टियों को जो भी वोट आयेगा, वह महागंठबंधन को ही नुकसान पहुंचाने वाला होगा. ओवैसी की पार्टी से पहले कांग्रेस का समझौता रहा था. लेकिन, जब से उन्होंने अपनी भाषा बदली, कांग्रेस ने नाता तोड़ लिया.
41 में कांग्रेस कितनी सीटें जीतेगी
कांग्रेस अधिकतर सीटें जीतेगी. हम सभी सीटों पर गये नहीं, इसलिए नंबर के बारे में नहीं कह सकते. महागंठबंधन की सरकार बनेगी और हम अपनी अधिकतर सीटें जीतेंगे.
पांच कारण जीत के..
1. महागंठबंधन की एकता
2. विकास और अमन
3. प्रधानमंत्री द्वारा बिहार का अपमान किये जाने से एनडीए के प्रति वोटरों की नाराजगी
4. सांप्रदायिकता के मुद्दे पर राज्य की जनता महागंठबंधन के साथ
5. भाजपा के जाति कार्ड को लोग समझ गये हैं.